'झूठे और भ्रामक विज्ञापनों का कोई ठोस आरोप नहीं' : पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ उत्तराखंड सरकार की शिकायत हाईकोर्ट ने खारिज की

Shahadat

14 Jun 2025 8:07 AM

  • झूठे और भ्रामक विज्ञापनों का कोई ठोस आरोप नहीं : पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ उत्तराखंड सरकार की शिकायत हाईकोर्ट ने खारिज की

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और इसके संस्थापकों, बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों के कथित प्रकाशन को लेकर दर्ज आपराधिक मामला खारिज कर दिया।

    उत्तराखंड के वरिष्ठ खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 की धारा 3, 4 और 7 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए 2024 में शिकायत दर्ज की थी। शिकायत में आयुष मंत्रालय से 2022 में प्राप्त पत्रों का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि मधुग्रीट, मधुनाशिनी, दिव्य लिपिडोम टैबलेट, दिव्य लिवोग्रिट टैबलेट, दिव्य लिवामृत एडवांस टैबलेट, दिव्य मधुनाशिनी वटी और दिव्य मधुग्रीट टैबलेट दवाओं को भ्रामक विज्ञापनों द्वारा प्रचारित किया गया।

    हाईकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद, रामदेव और बालकृष्ण द्वारा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 582 के तहत दायर याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें शिकायत पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हरिद्वार द्वारा उन्हें जारी किए गए समन को रद्द करने की मांग की गई थी। हाईकोर्ट ने पाया कि शिकायत में "दावे के मिथ्या होने का कोई सबूत नहीं है, न ही दावे के मिथ्या होने का कोई आरोप है और न ही इस बात का कोई वर्णन है कि यह किस तरह से भ्रामक है।"

    जस्टिस विवेक भारती शर्मा ने आदेश में इस प्रकार टिप्पणी की:

    "हालांकि, यह आरोप लगाया गया कि विज्ञापन भ्रामक थे, लेकिन घटनाओं या तरीके का कोई वर्णन नहीं है कि विज्ञापन किस तरह से भ्रामक थे। याचिकाकर्ता फर्म को केवल यह पत्र लिखना कि विज्ञापन को हटा दिया जाना चाहिए, यह स्पष्ट रूप से बताए बिना कि विज्ञापन में किया गया दावा झूठा था, याचिकाकर्ता फर्म पर मुकदमा चलाने का कारण नहीं देता है, वह भी तब, जब मिथ्या होने या इसके भ्रामक होने के बारे में विशेषज्ञों की कोई रिपोर्ट नहीं है।"

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "चूंकि इस बात का कोई आरोप नहीं है कि विज्ञापन झूठा और भ्रामक था, जिससे '1954 अधिनियम' की धारा 3, 4 और 7 के तहत दंडनीय अपराध बनता है, इसलिए ट्रायल कोर्ट के लिए संज्ञान लेने और याचिकाकर्ताओं को ट्रायल का सामना करने के लिए बुलाने का कोई अवसर नहीं है।"

    पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य को आयुष मंत्रालय के पत्रों के बावजूद विज्ञापनों के प्रकाशन को लेकर पतंजलि आयुर्वेद और उसकी सहयोगी कंपनी दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए फटकार लगाई थी। अब हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद राज्य द्वारा दायर शिकायत यह देखते हुए खारिज कर दी कि आरोपों का समर्थन करने के लिए कोई सामग्री नहीं है।

    गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य पतंजलि के खिलाफ अवमानना ​​मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर भरोसा नहीं कर सकता है और शिकायत का मूल्यांकन केवल इसमें उठाए गए आरोपों और उनका समर्थन करने वाली सामग्रियों के आधार पर किया जाना चाहिए।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "माननीय सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के प्रति अत्यंत सम्मान के साथ राज्य के डिप्टी एडवोकेट जनरल का तर्क गलत है। इस न्यायालय को यह देखना है कि राज्य द्वारा दायर शिकायत मामले पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हरिद्वार द्वारा पारित संज्ञान और समन का विवादित आदेश वैध, सही, उचित और कानूनी है या किसी अवैधता से ग्रस्त है। इस याचिका पर इस ट्रायल के आधार पर ही निर्णय लिया जाना है। BNSS की धारा 528 के तहत इस याचिका पर निर्णय लेते समय माननीय सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को आमंत्रित करना असंगत होगा।"

    न्यायालय ने यह भी कहा कि 2023 से पहले की घटनाओं के संबंध में दायर की गई शिकायत समय-सीमा पार कर चुकी है।

    न्यायालय ने कहा कि समन आदेश "न्यायिक विवेक के उपयोग से रहित" है।

    हाईकोर्ट ने इस संबंध में कहा,

    "अदालत में दायर शिकायत मामले के अनुसार, याचिकाकर्ताओं द्वारा कथित रूप से अधिकांश अपराध 15.04.2023 से पहले किए गए; इसका मतलब है कि संज्ञान लिए जाने की तारीख से एक साल से भी पहले। इसलिए CrPC की धारा 468 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा इन अपराधों का संज्ञान नहीं लिया जा सकता। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने सभी अपराधों के लिए संज्ञान लिया, जिसमें वह अपराध भी शामिल है, जिसका संज्ञान समय-सीमा के कारण नहीं लिया जा सका था, एक समग्र आदेश द्वारा। इसलिए संज्ञान का दिनांक 16.04.2024 का विवादित आदेश कानून की दृष्टि से गलत है और इसे कायम नहीं रखा जा सकता।"

    20 अपराधों के लिए दिनांक 16.04.2024 को संज्ञान लेने का समग्र आदेश अनियमित पाया गया।

    कहा गया,

    "दो साल से अधिक की अवधि में फैले तीन से अधिक अपराधों के लिए संज्ञान लेने और समन करने का समग्र आदेश कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है।"

    Case : M/s Patanjali Ayurved Ltd v State of Uttarakhand

    Next Story