मीडिया ट्रायल के ज़रिए अदालत को प्रभावित करने की कोशिश?: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल बलात्कार मामले पर फेसबुक पोस्ट को लेकर वकील को फटकार लगाई

Avanish Pathak

2 Aug 2025 1:48 PM IST

  • मीडिया ट्रायल के ज़रिए अदालत को प्रभावित करने की कोशिश?: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल बलात्कार मामले पर फेसबुक पोस्ट को लेकर वकील को फटकार लगाई

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 2025 के नैनीताल बाल यौन उत्पीड़न मामले में अभियुक्तों के बारे में (फेसबुक वीडियो और पोस्ट पर) सार्वजनिक टिप्पणी करने के एक वकील के आचरण पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें प्रस्तावित पुरुषत्व परीक्षण और मेडिकल रिपोर्ट पर टिप्पणी भी शामिल थी, जबकि मुकदमा अभी भी लंबित है। अदालत ने कहा कि इससे मामले पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है।

    गौरतलब है कि यह मामला 73 वर्षीय व्यक्ति (मोहम्मद उस्मान) से जुड़ा है, जिस पर 12 वर्षीय नाबालिग लड़की का यौन उत्पीड़न करने का आरोप है। एक हिंदू लड़की से जुड़ी इस कथित घटना ने इस साल अप्रैल में नैनीताल में सांप्रदायिक तनाव और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था।

    सुनवाई के दरमियान, जस्टिस राकेश थपलियाल ने वकील की खिंचाई की क्योंकि उन्होंने उनके आचरण पर सवाल उठाया था।

    उन्होंने मौखिक रूप से कहा, "आपने जो किया है, मुझे अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत कोई ऐसा प्रावधान दिखाइए जहां आपको ऐसा करने की अनुमति हो? क्या यह मीडिया ट्रायल चल रहा है?"

    सोशल मीडिया पोस्ट को गंभीरता से लेते हुए, न्यायालय ने अधिवक्ता से खुली अदालत में इसकी सामग्री पढ़ने को कहा। हालांकि, जैसे ही उन्होंने पढ़ना शुरू किया, जस्टिस थपलियाल ने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा, "आगे न पढ़ें, कोर्ट में कई महिला बार सदस्य भी बैठी हैं और उनके सामने वो चीज़ें पढ़ने लायक नहीं हैं।"

    इस स्तर पर, अधिवक्ता ने जवाब दिया कि उनका न्यायालय का अनादर करने का कभी इरादा नहीं था और उन्होंने बिना शर्त माफ़ी मांगी। हालांकि, न्यायालय उनकी बात से सहमत नहीं था। इसके अलावा, जब वकील ने यह बताकर अपने कार्यों को सही ठहराने की कोशिश की कि कई मीडिया हाउसों ने भी मामले पर रिपोर्ट की है तब जस्टिस थपलियाल ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, "लेकिन आप जर्न‌लिस्ट नहीं हो ना। आप अपना काम करिए, जर्नलिस्ट को अपना काम दीजिए। लेकिन आपने तो अब डैमेज कर दिया ना। कोर्ट कानून के मुताबिक मामले का फैसला करेगा। क्या आप कहने से फैसला करेंगे? आप कोर्ट को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं?"

    आरोपी उस्मान की ओर से पेश हुए वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने अदालत को बताया कि संबंधित वकील ने न सिर्फ़ वीडियो पोस्ट किए थे, बल्कि अपने वीडियो में आरोपी से जुड़ी एक मेडिकल रिपोर्ट की सामग्री की पुष्टि भी की थी।

    यह सुनकर जस्टिस थपलियाल ने वकील से पूछा कि उसने यह सब कहां से सीखा और कहा कि वह इस तरह का व्यवहार बर्दाश्त नहीं करेंगे।

    जब वकील ने फिर से बिना शर्त माफ़ी मांगी और अदालत को आश्वासन दिया कि वह ऐसा आचरण दोबारा नहीं दोहराएगा तो जस्टिस थपलियाल ने कानूनी प्रक्रिया और संयम के महत्व पर ज़ोर दिया, "अदालत की कार्यवाही हमेशा ऑर्डर से होती है। ऑर्डर निकालो, फिर छापो। ऑर्डर में जो चीज़ नहीं है वो क्यों छपते हो? बिना मेडिकल रिपोर्ट देखे ये सब क्यों छपा आपने? मेडिकल रिपोर्ट पढ़िए और बताइए जो आपने छपा वो सही था क्या?"

    एकल न्यायाधीश ने आगे कहा कि अदालती कार्यवाही मीडिया ट्रायल में नहीं बदलनी चाहिए।

    हालांकि अदालत का शुरू में यह विचार था कि मामले को बार काउंसिल को भेजा जाना चाहिए, फिर भी उसने मामले को छोड़ दिया और निम्नलिखित आदेश दिया, "वकील ने फेसबुक पोस्ट के लिए बिना शर्त माफ़ी मांगी है। वह यह भी वचन देते हैं कि भविष्य में वह फेसबुक पर ऐसी कोई भी पोस्ट नहीं करेंगे जो न्यायालय में निर्णय के लिए लंबित हो। वह यह भी वचन देते हैं कि वह अधिवक्ता अधिनियम का अध्ययन करेंगे और अधिवक्ता अधिनियम के अनुसार ही आचरण करेंगे।"

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