नाबालिग के गुप्तांगों को छूना बलात्कार नहीं, POCSO Act के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

20 Sept 2025 9:00 PM IST

  • नाबालिग के गुप्तांगों को छूना बलात्कार नहीं, POCSO Act के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 12 वर्ष से कम आयु की नाबालिग लड़की के गुप्तांगों को छूना मात्र भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375/376एबी के तहत बलात्कार या यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की धारा 6 के तहत प्रवेशात्मक यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं माना जाएगा।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसा आचरण POCSO Act की धारा 9(एम) के तहत परिभाषित "गंभीर यौन उत्पीड़न" के अपराध के साथ-साथ IPC की धारा 354 के तहत "महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने" के अपराध के समान होगा।

    बिना किसी प्रवेशात्मक कृत्य के नाबालिग के गुप्तांगों को छूना, POCSO Act की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध माना जाएगा। यदि पीड़िता की आयु 12 वर्ष से कम है तो ऐसा कृत्य गंभीर यौन उत्पीड़न माना जाएगा।

    जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने लक्ष्मण जांगड़े की अपील पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। लक्ष्मण जांगड़े को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376एबी और POCSO Act की धारा 6 के तहत 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

    पीड़िता 12 साल से कम उम्र की एक लड़की थी।

    मामले के रिकॉर्ड की जांच करने पर खंडपीठ ने पाया कि लगातार आरोप यह है कि आरोपी ने पीड़िता के गुप्तांगों को छुआ। साथ ही अपने गुप्तांगों को भी छुआ। इसके अलावा कोई और कृत्य नहीं हुआ।

    खंडपीठ ने कहा,

    "इस मामले को देखते हुए हम पाते हैं कि IPC की धारा 376एबी और POCSO Act की धारा 6 के तहत दोषसिद्धि बरकरार नहीं रखा जा सकती।"

    खंडपीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा की गई यौन उत्पीड़न की धारणा, जैसा कि हाईकोर्ट ने पुष्टि की, टिकने योग्य नहीं है, क्योंकि यह मेडिकल रिपोर्ट, पीड़िता द्वारा तीन मौकों पर दिए गए बयानों या उसकी माँ की गवाही से समर्थित नहीं है।

    अदालत ने माना कि साक्ष्यों के सामान्य अध्ययन से पता चलता है कि आरोपित अपराध न तो IPC की धारा 375 और न ही POCSO Act की धारा 3(ग) के प्रावधानों को पूरा करता है। तदनुसार, इन प्रावधानों के तहत दोषसिद्धि को रद्द कर दिया गया।

    आगे कहा गया,

    "साक्ष्यों और अभिलेख पर उपलब्ध अन्य सामग्रियों के सामान्य अध्ययन से पता चलता है कि ऐसे आरोपों से बना अपराध न तो IPC की धारा 375 और न ही POCSO Act की धारा 3(ग) के प्रावधानों को पूरा करता है। अतः, इस सीमा तक दोषसिद्धि बरकरार नहीं रखा जा सकती।"

    हालांकि, खंडपीठ ने पाया कि अभियुक्त द्वारा किए गए कृत्य सीधे तौर पर IPC की धारा 354 और POCSO Act की धारा 9(म) के अंतर्गत आते हैं। परिणामस्वरूप, दोषसिद्धि POCSO Act की धारा 10 सपठित IPC की धारा 354 के तहत अपराधों में संशोधित किया गया।

    तदनुसार, सजा को घटाकर धारा 354 के तहत पाँच वर्ष और POCSO Act की धारा 10 के तहत सात वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया गया, दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी। 50,000 रुपये का जुर्माना बरकरार रखा गया तथा निर्देश दिया गया कि इसे दो महीने के भीतर मुआवजे के रूप में पीड़ित को भुगतान किया जाए।

    Case : Laxman Jangde v State of Chhattisgarh

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