सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम सिनेमा में महिलाओं के शोषण के संबंध में जस्टिस हेमा समिति के समक्ष दिए गए बयानों पर पुलिस जांच रोकने से इनकार किया
Avanish Pathak
7 Feb 2025 2:52 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मलयालय सिनेमा इंडस्ट्री में महिलाओं के यौन शोषण के मामले में जस्टिस हेमा समिति के समक्ष गवाहों/पीड़ितों की ओर से दिए गए बयानों के आधार पर एफआईआर दर्ज करने के केरल हाईकोर्ट के निर्देशों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि एक बार संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना प्राप्त होने पर पुलिस अधिकारी कानून के तहत कार्रवाई करने के लिए बाध्य है और पुलिस की जांच करने की शक्तियों पर रोक लगाने का निर्देश नहीं दिया जा सकता।
फिल्म निर्माता साजिमोन परायिल और दो अभिनेताओं ने केरल हाईकोर्ट की ओर से पिछले साल अक्टूबर में जारी निर्देश को विशेष अनुमति याचिकाओं के जरिए चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका शुक्रवार को याचिका का निपटारा कर दिया।
पीठ ने कहा, "आपराधिक न्यायशास्त्र के तहत, एक बार सूचना प्राप्त होने पर या पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को संदेह होने पर कि कोई संज्ञेय अपराध किया गया है, वह धारा 176 बीएनएसएस के तहत निर्धारित कानून के अनुसार आगे बढ़ने के लिए बाध्य है। पुलिस को कानून के अनुसार आगे बढ़ने से रोकने का कोई निर्देश नहीं दिया जा सकता है।"
यह देखते हुए कि केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ जांच की निगरानी कर रही है, सुप्रीम कोर्ट ने उन व्यक्तियों के लिए यह खुला छोड़ दिया है, जिन्होंने हेमा समिति के समक्ष गवाही दी है और जिन्हें एसआईटी द्वारा कथित रूप से परेशान किया जा रहा है कि वे अपनी शिकायतें उठाने के लिए हाईकोर्ट जा सकते हैं। यदि ऐसी कोई शिकायत उठाई जाती है, तो हाईकोर्ट उनकी जांच करेगा। हाईकोर्ट यह भी जांच करेगा कि क्या एफआईआर एसआईटी द्वारा एकत्र की गई सामग्रियों के आधार पर दर्ज की गई हैं या उन्हें बिना किसी सामग्री के दर्ज किया गया है। हाईकोर्ट उन व्यक्तियों की शिकायतों पर भी गौर करेगा जिन्होंने जस्टिस हेमा समिति के समक्ष गवाही दी थी कि उन्हें एसआईटी के समक्ष गवाही देने के लिए अनावश्यक रूप से परेशान किया गया है या मजबूर किया गया है।
मौजूदा याचिका में 14 अक्टूबर, 2024 को हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा जारी निर्देश को चुनौती दी गई थी। जस्टिस हेमा समिति द्वारा दर्ज किए गए बयानों से संज्ञेय अपराधों का पता चलता है, इस पर गौर करते हुए हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि "समिति के समक्ष दिए गए बयानों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) की धारा 173 के तहत 'सूचना' के रूप में माना जाएगा और एसआईटी धारा 173 (3) बीएनएसएस के अधीन उसमें अपेक्षित आवश्यक कार्रवाई करेगी।"
हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती देते हुए फिल्म निर्माता साजिमोन परायिल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। बाद में, जस्टिस हेमा समिति के समक्ष पेश हुई दो महिला अभिनेताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कहा गया कि उन्होंने "शैक्षणिक हित" में बयान दिए थे और किसी भी आपराधिक कार्यवाही को शुरू करने के इरादे से नहीं।
उनमें से एक ने कहा कि उसके द्वारा दिए गए बयान अन्य महिलाओं द्वारा सामना किए गए शोषण के बारे में सुनी-सुनाई बातों पर आधारित थे और उनमें से कई आपराधिक जांच का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी को याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रख लिया था।

