सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन कैदी की जमानत को 2 महीने तक सीमित करने के हाईकोर्ट के आदेश की आलोचना की

Shahadat

3 July 2024 11:03 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन कैदी की जमानत को 2 महीने तक सीमित करने के हाईकोर्ट के आदेश की आलोचना की

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (2 जुलाई) को स्थापित कानूनी स्थिति को दोहराया कि अभियुक्त का त्वरित सुनवाई का अधिकार मौलिक अधिकार है। यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से निकटता से जुड़ा हुआ है। कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश की निंदा की जिसमें उक्त सिद्धांत की अनदेखी की गई और याचिकाकर्ता को केवल दो महीने के लिए जमानत पर रिहा कर दिया गया, जबकि मुकदमे को समाप्त होने में काफी समय लगेगा।

    कोर्ट उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा दिए गए जमानत आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। विवादित आदेश के अनुसार, याचिकाकर्ता को केवल दो महीने के लिए जमानत पर रिहा किया गया, जबकि यह ध्यान में रखा गया कि वह 11 मई, 2022 से हिरासत में है और अब तक केवल एक गवाह से पूछताछ की गई। याचिकाकर्ता पर लगाए गए आरोप NDPS Act की धारा 20(b)(ii)(c) के तहत भांग के संबंध में उल्लंघन के अपराध के लिए हैं।

    जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्जल भुयान की वेकेशन बेंच ने याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की जमानत अवधि को केवल दो महीने तक सीमित करके गलती की है। बेंच ने कहा कि यह याचिकाकर्ता के त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है।

    सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा,

    “हमारे विचार से यह गलत आदेश है। यदि हाईकोर्ट का विचार था कि याचिकाकर्ता के त्वरित सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन किया गया तो हाईकोर्ट को मुकदमे के अंतिम निपटारे तक याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का आदेश देना चाहिए था। हाईकोर्ट के पास जमानत की अवधि सीमित करने का कोई उचित कारण नहीं था।”

    हुसैन आरा खातून बनाम गृह सचिव, बिहार राज्य के ऐतिहासिक मामले में कानून के स्थापित सिद्धांत पर भरोसा करते हुए बेंच ने एसएलपी में नोटिस जारी किया।

    बेंच ने इस संबंध में कहा,

    “अब यह अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है कि त्वरित सुनवाई के अधिकार को संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है और यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से निकटता से जुड़ा हुआ है, जैसा कि इस न्यायालय ने हुसैनारा खातून और अन्य बनाम गृह सचिव, बिहार राज्य, पटना [1979 (3) एससीआर 532] में कहा है।

    उपर्युक्त के मद्देनजर, नोटिस जारी किया जाता है।

    केस टाइटल: किशोर करमाकर बनाम ओडिशा राज्य विशेष अपील अनुमति (सीआरएल) संख्या 8263/2024

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