सुप्रीम कोर्ट का बॉम्बे हाईकोर्ट को जमानत आवेदनों पर शीघ्रता से निर्णय लेने का निर्देश, कहा- व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों पर निर्णय न करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन

Shahadat

27 Feb 2024 4:08 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट का बॉम्बे हाईकोर्ट को जमानत आवेदनों पर शीघ्रता से निर्णय लेने का निर्देश, कहा- व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों पर निर्णय न करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन

    सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को निर्देश दिया कि वह जमानत/अग्रिम जमानत से संबंधित मामले को जल्द से जल्द तय करने के लिए आपराधिक क्षेत्राधिकार का उपयोग करने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के सभी जजों को अपना अनुरोध बताएं।

    सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा,

    "इसलिए हम बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से अनुरोध करते हैं कि वे जमानत/अग्रिम जमानत से संबंधित मामले को यथासंभव शीघ्र तय करने के लिए आपराधिक क्षेत्राधिकार का उपयोग करने वाले सभी जजों को हमारा अनुरोध बताएं।"

    मौजूदा मामले में सात साल से अधिक समय तक हिरासत में रहने के कारण आरोपी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष जमानत याचिका दायर की। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने योग्यता के आधार पर आवेदन पर सुनवाई किए बिना आवेदक को ट्रायल कोर्ट से संपर्क करने के लिए कहा।

    हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आपराधिक अपील दायर की, जहां 29.01.2024 के पिछले आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत का फैसला करने के लिए हाईकोर्ट में निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग न करने पर चिंता व्यक्त की। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित आदेश रद्द करते हुए मामला हाईकोर्ट में बहाल कर दिया। इसके अलावा, इसने हाईकोर्ट से दो सप्ताह के भीतर गुण-दोष के आधार पर मामले पर निर्णय लेने का भी अनुरोध किया।

    हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में आरोपी-अपीलकर्ता को योग्यता के आधार पर जमानत दे दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि "हमारे सामने भी ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें जज मामले का फैसला योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर कर रहे हैं। अलग-अलग आधारों पर मामले को रफा-दफा करने का बहाना ढूंढो।”

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    “हमें बॉम्बे हाईकोर्ट से कई मामले मिले हैं, जहां जमानत/अग्रिम जमानत आवेदनों पर शीघ्रता से निर्णय नहीं लिया जा रहा है। हमारे सामने एक मामला एसएलपी सीआरएल…@डायरी नंबर 1540/2024 (अशोक बलवंत पाटिल बनाम मोहन मधुकर पाटिल और अन्य) का भी आया है, जिसमें अग्रिम जमानत के आवेदन पर चार साल से अधिक की अवधि तक फैसला नहीं किया गया।

    सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि जमानत आवेदन पर शीघ्र निर्णय न लेने से आरोपी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों से वंचित हो जाता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा,

    “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 संविधान की आत्मा है, क्योंकि नागरिक की स्वतंत्रता सर्वोपरि है। किसी नागरिक की स्वतंत्रता से संबंधित मामले पर शीघ्रता से निर्णय न करना और किसी न किसी आधार पर मामले को टालना पार्टी को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत उनके बहुमूल्य अधिकार से वंचित कर देगा।''

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को इस आदेश को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को सूचित करने का निर्देश दिया, जो इसे बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखेंगे।

    केस टाइटल: अमोल विट्ठल वाहिले बनाम महाराष्ट्र राज्य, डायरी नंबर- 41564 - 2023

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