S. 482 CrPC | FIR रद्द करने की याचिका में जांच रिपोर्ट पर भरोसा करना हाईकोर्ट के लिए संभव नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
1 May 2025 3:04 PM

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट CrPC की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए जांच रिपोर्ट का आकलन या प्रस्तुत करने के लिए नहीं कह सकते, क्योंकि यह अधिकार केवल मजिस्ट्रेट के पास है।
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने गुजरात हाईकोर्ट का निर्णय खारिज कर दिया, जिसने अपीलकर्ता की याचिका खारिज करने के लिए जांच रिपोर्ट पर भरोसा किया था। साथ ही अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने से इनकार कर दिया था।
प्रतिभा बनाम रामेश्वरी देवी (2007) 12 एससीसी 369 के मामले पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने कानून की पुष्टि की कि CrPC की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते समय हाईकोर्ट द्वारा जांच रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने प्रतिभा बनाम रामेश्वरी देवी में कहा था,
“जांच एजेंसी की रिपोर्ट पर भरोसा करना हाईकोर्ट के लिए खुला नहीं है, न ही वह रिपोर्ट को अपने समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दे सकता है, क्योंकि कानून बहुत स्पष्ट है कि जांच एजेंसी की रिपोर्ट को मजिस्ट्रेट द्वारा स्वीकार किया जा सकता है, या मजिस्ट्रेट रिकॉर्ड पर सामग्री पर विचार करने के बाद उसे अस्वीकार कर सकता है। ऐसी स्थिति में CrPC की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते समय हाईकोर्ट द्वारा जांच एजेंसी की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता।”
न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट की शक्ति असाधारण है। इसका प्रयोग संयम से किया जाना चाहिए, केवल FIR के आरोपों और निर्विवाद तथ्यों के आधार पर, जांच संबंधी राय पर नहीं।
न्यायालय ने तर्क दिया कि जांच के चरण में हाईकोर्ट द्वारा हस्तक्षेप करना अनुचित है, क्योंकि इससे मजिस्ट्रेट को जांच रिपोर्ट के हाईकोर्ट के मूल्यांकन से पूर्व प्रभाव के बिना मामले की योग्यता का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन करने का अवसर न मिलने से मुकदमे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई तथा लंबित आपराधिक मामला रद्द कर दिया गया।
केस टाइटल: अशोक कुमार जैन बनाम गुजरात राज्य तथा अन्य