S. 389 CrPC | अपराध की गंभीरता और आरोपी की भूमिका को सज़ा निलंबित करने का आधार बनाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

19 Dec 2025 12:50 PM IST

  • S. 389 CrPC | अपराध की गंभीरता और आरोपी की भूमिका को सज़ा निलंबित करने का आधार बनाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराए गए और उम्रकैद की सज़ा पाए व्यक्ति की सज़ा निलंबित कर उसे ज़मानत दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता और आरोपी की सक्रिय भूमिका के बावजूद राहत देकर हाई कोर्ट ने एक साफ़ और गंभीर गलती की है।

    जस्टिस मनमोहन और एनवी अंजारिया की बेंच ने शिकायतकर्ता की अपील को मंज़ूर करते हुए यह टिप्पणी की,

    “आरोप की प्रकृति, अपराध की घटनाओं और अपीलकर्ता की भूमिका जैसे प्रासंगिक विचारों को ध्यान में रखते हुए, यह माना जाना चाहिए कि हाईकोर्ट को सज़ा निलंबित नहीं करनी चाहिए। साथ ही प्रतिवादी नंबर 2 को रिहा नहीं करना चाहिए। हाईकोर्ट ने एक साफ़ गलती की है। पूरे अपराध को करने में प्रतिवादी नंबर 2 की भागीदारी और भूमिका को गंभीर माना जाना चाहिए और धारा 302 के साथ IPC की धारा 149 के तहत दोषसिद्धि पर लगाई गई उसकी सज़ा को निलंबित करने के लिए इसकी गंभीरता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।”

    कोर्ट ने दोहराया कि उम्रकैद की सज़ा वाले अपराध में दोषसिद्धि के बाद सज़ा निलंबित करने के लिए सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता होती है, खासकर जहां आरोप अपराध में सीधी और सक्रिय भूमिका का खुलासा करते हैं। इस शक्ति का प्रयोग यांत्रिक रूप से या केवल इस आधार पर नहीं किया जा सकता कि अपील लंबित है।

    कोर्ट ने विजय कुमार बनाम नरेंद्र और अन्य, (2002) 9 SCC 366 का हवाला देते हुए कहा,

    “अदालत को आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप की प्रकृति, जिस तरह से अपराध किया गया और अपराध की गंभीरता जैसे प्रासंगिक कारकों पर विचार करना चाहिए।”

    कानून को लागू करते हुए कोर्ट ने पाया कि यह धारा 389 का इस्तेमाल करके सज़ा निलंबित करने का सही मामला नहीं है, ऐसे मामले में जहाँ दोषी को उम्रकैद की सज़ा दी गई।

    कोर्ट ने कहा,

    “यह माना जाना चाहिए कि हाईकोर्ट को सज़ा निलंबित नहीं करनी चाहिए थी और प्रतिवादी नंबर 2 को रिहा नहीं करना चाहिए था। हाईकोर्ट ने एक साफ़ गलती की है। पूरे अपराध को करने में प्रतिवादी नंबर 2 (दोषी) की भागीदारी और भूमिका को गंभीर माना जाना चाहिए और धारा 302 के साथ IPC की धारा 149 के तहत दोषसिद्धि पर लगाई गई उसकी सज़ा को निलंबित करने के लिए इसकी गंभीरता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।”

    इसलिए अपील मंजूर कर ली गई और प्रतिवादी नंबर 2 को सरेंडर करने का निर्देश दिया गया।

    Cause Title: RAJESH UPADHAYAY Versus THE STATE OF BIHAR & ANR.

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