S. 294 CrPC | बचाव पक्ष को अभियोजन पक्ष के उन दस्तावेजों को बदनाम करने का मौका नहीं दिया जा सकता, जिन्हें उसने असली माना: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

22 Oct 2024 9:43 AM IST

  • S. 294 CrPC | बचाव पक्ष को अभियोजन पक्ष के उन दस्तावेजों को बदनाम करने का मौका नहीं दिया जा सकता, जिन्हें उसने असली माना: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब बचाव पक्ष अभियोजन पक्ष के दस्तावेजों की असलीयत को स्वीकार कर लेता है और उसके औपचारिक सबूत पेश नहीं करता है तो ऐसे साक्ष्य को सीआरपीसी की धारा 294 के तहत ठोस सबूत माना जा सकता है।

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा बिना औपचारिक सबूत के CrPC की धारा 294 के तहत अभियोजन पक्ष के दस्तावेजों को स्वीकार कर लेने के बाद अदालतों के लिए एकमात्र काम "अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूतों की विश्वसनीयता का मूल्यांकन, विश्लेषण और परीक्षण करना है, जो रिकॉर्ड पर उपलब्ध है। यदि उचित संदेह से परे ऐसे सबूत आरोपों को साबित करते हैं, तो दोषसिद्धि दर्ज की जा सकती है।"

    इस मामले में अपीलकर्ता/सूचनाकर्ता ने बचाव पक्ष द्वारा पीडब्लू2 की क्रॉस एक्जामिनेशन दर्ज करने के चरण से मामले को नए सिरे से विचार के लिए ट्रायल कोर्ट में वापस भेजने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने मामले को ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया, क्योंकि अभियुक्तों को निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिली, क्योंकि उनके वकील ने अभियोजन पक्ष के दस्तावेजों को स्वीकार कर लिया। इसके औपचारिक सबूत पेश नहीं किए।

    हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि जब बचाव पक्ष के वकील ने अभियोजन पक्ष के दस्तावेजों की वास्तविकता स्वीकार की और इसके औपचारिक सबूत पेश नहीं किए तो अदालतों के लिए अभियोजन पक्ष के दस्तावेजों को बदनाम करने के लिए बचाव पक्ष को एक और मौका देना खुला नहीं होगा, जब उन्होंने पहले ही अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन किया था।

    “उपर्युक्त प्रावधान (धारा 294 CrPC) को पढ़ने पर विशेष रूप से उपधारा (3) में यह प्रावधान है कि जहां किसी दस्तावेज की वास्तविकता पर विवाद नहीं है, ऐसे दस्तावेज को इस संहिता के तहत किसी भी जांच, ट्रायल या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में उस व्यक्ति के हस्ताक्षर के सबूत के बिना पढ़ा जा सकता है, जिसके लिए उस पर हस्ताक्षर किए जाने का दावा किया गया। इसका मतलब यह है कि यदि ऐसे दस्तावेजों के लेखक अपने हस्ताक्षर साबित करने के लिए गवाह के कठघरे में नहीं आते हैं तो भी उक्त दस्तावेजों को साक्ष्य के रूप में पढ़ा जा सकता है। इसके अलावा, प्रावधान के तहत न्यायालय को अपने विवेक से ऐसे हस्ताक्षर को साबित करने की आवश्यकता रखने का अधिकार है।”

    अदालत ने कहा,

    “वर्तमान मामले में जांच एजेंसी द्वारा दायर किए गए सभी दस्तावेज सार्वजनिक दस्तावेज थे, जिन पर लोक सेवकों द्वारा अपनी-अपनी क्षमता में या तो जांच अधिकारी या शव परीक्षण करने वाले डॉक्टर या बरामदगी का ज्ञापन तैयार करने वाले अन्य पुलिस अधिकारियों आदि के रूप में विधिवत हस्ताक्षर किए गए। इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट ने सही तरीके से उन पर भरोसा किया और बचाव पक्ष द्वारा उक्त दस्तावेजों की वास्तविकता को स्वीकार करने में अपनाए गए विशिष्ट बार-बार के रुख के मद्देनजर उन्हें प्रदर्शित किया। जहां तक ​​पुलिस के कागजात का सवाल है, जिन पर शिकायतकर्ता जैसे निजी व्यक्तियों द्वारा हस्ताक्षर किए गए, उन्हें विधिवत साबित किया गया।”

    अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष की गवाही को बदनाम करना बचाव पक्ष की भूमिका है, ऐसा न करने पर अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों की वास्तविकता को स्वीकार करने पर विवाद नहीं किया जा सकता। इसे साक्ष्य के रूप में पढ़ा जाएगा।

    अदालत ने दर्ज किया,

    “साक्ष्यों की सराहना करने के बाद ट्रायल कोर्ट ने पाया कि मामले के चश्मदीद गवाह पीडब्लू 1 और 2 के साक्ष्य ने अभियोजन पक्ष की कहानी का पूरी तरह से समर्थन किया और क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान बचाव पक्ष ऐसा कुछ भी नहीं बता सका, जिससे उनकी गवाही को बदनाम किया जा सके।”

    अदालत ने कहा,

    “धारा 294 CrPC के सरल वाचन और उपरोक्त निर्णयों में इस न्यायालय द्वारा इसकी व्याख्या के आधार पर हमें ट्रायल कोर्ट के निर्णय में कोई त्रुटि नहीं दिखती। विशेष रूप से वर्तमान मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए, जहां बचाव पक्ष ने बार-बार अभियोजन पक्ष के दस्तावेजों की वास्तविकता को स्वीकार करना जारी रखा और उन्हें औपचारिक सबूत से छूट दी।”

    तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई तथा मामले को रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट को भेज दिया गया।

    केस टाइटल: श्याम नारायण राम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य आदि।

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