S. 294 CrPC | अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की सत्यता को स्वीकार करने/अस्वीकार करने के लिए अभियुक्त को बुलाना अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन नहीं : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
17 July 2024 4:43 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 294 के तहत अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की सत्यता को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए कहा जाता है तो उसे स्वयं के विरुद्ध गवाह नहीं कहा जा सकता है।
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा,
"हमारा विचार है कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की सत्यता को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए अभियुक्त को बुलाना CrPC की धारा 294 के तहत सूची के साथ किसी भी तरह से अभियुक्त के अधिकार के प्रतिकूल नहीं कहा जा सकता है, न ही इसे उसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत स्वयं के विरुद्ध गवाह बनने के लिए बाध्य करने वाला कहा जा सकता है।"
संविधान के अनुच्छेद 20(3) में कहा गया कि किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। यह आत्म-दोष के खिलाफ व्यक्ति का अधिकार है।
CrPC की धारा 294 का उद्देश्य मुकदमे में प्रासंगिक साक्ष्य को पढ़कर अनावश्यक सामग्री को छोड़कर मुकदमे की कार्यवाही की गति को तेज करना है। जहां किसी दस्तावेज की वास्तविकता को स्वीकार किया जाता है या उसके औपचारिक प्रमाण को छोड़ दिया जाता है, उसे साक्ष्य में पढ़ा जा सकता है।
अपीलकर्ता/आरोपी ने अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की वास्तविकता को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए उपस्थिति से इनकार किया था। अभियुक्त की गैर-हाजिरी के कारण अभियुक्त के खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष दर्ज किए गए।
ट्रायल कोर्ट ने दर्ज किया था कि "किसी दस्तावेज की वास्तविकता को जानबूझकर नकारने में उसका आचरण सजा की मात्रा निर्धारित करते समय एक गंभीर परिस्थिति के रूप में लिया जा सकता है, क्योंकि इससे लंबे समय तक मुकदमा चलेगा।"
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि अभियुक्त को अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की प्रामाणिकता को स्वीकार करने/अस्वीकार करने के लिए कहा गया तथा उसने ट्रायल कोर्ट के विवादित आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया था तो आत्म-दोषी ठहराए जाने के विरुद्ध अधिकार का उल्लंघन नहीं हो सकता। हालांकि, अभियुक्त के विरुद्ध दर्ज प्रतिकूल टिप्पणी न्यायालय द्वारा हटा दी गई।
केस टाइटल: अशोक डागा बनाम प्रवर्तन निदेशालय