S. 16 Arbitration Act | बचाव का बयान प्रस्तुत करने के बाद आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देना अस्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

24 Jan 2025 4:05 AM

  • S. 16 Arbitration Act | बचाव का बयान प्रस्तुत करने के बाद आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देना अस्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत की पुष्टि की कि बचाव का बयान प्रस्तुत करने के बाद आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र को चुनौती नहीं दी जा सकती।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्रतिवादी ने बचाव का बयान प्रस्तुत करने के बाद आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति जताई थी। आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल ने आपत्ति खारिज की और बाद में निर्णय पारित किया। हालांकि, जिला जज ने निर्णय खारिज कर दिया और इस निर्णय को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरकरार रखा।

    मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C Act) की धारा 16(2) का संदर्भ लेते हुए अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने आर्बिट्रल अवार्ड खारिज करने के जिला जज के निर्णय की पुष्टि करने में गलती की। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि एकमात्र आर्बिट्रल की नियुक्ति को स्वीकार करके तथा अपने बचाव के बयान को संशोधित करने की अनुमति देकर प्रतिवादी ने बचाव का बयान दाखिल किए जाने के बाद ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देने के अपने अधिकार को छोड़ दिया।

    हाईकोर्ट का निर्णय दरकिनार करते हुए जस्टिस ओक द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि प्रतिवादी के लिए बचाव का बयान प्रस्तुत करने के बाद देर से ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति प्रस्तुत करना अस्वीकार्य होगा।

    “इसलिए बचाव का बयान प्रस्तुत करने के बाद आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र की कमी की दलील उठाने पर स्पष्ट प्रतिबंध है। इसलिए 14 फरवरी, 2004 के बाद प्रतिवादी एकमात्र आर्बिट्रल के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति नहीं कर सकता। इसलिए दिनांक 24 अप्रैल 2004 को आवेदन के आर्बिट्रल से उठाई गई आपत्ति को आर्बिट्रल द्वारा दिनांक 20 अक्टूबर, 2004 के आदेश द्वारा सही रूप से खारिज कर दिया गया।"

    अदालत ने कहा,

    “प्रतिवादी के आचरण और मध्यस्थता अधिनियम की धारा 16 की उप-धारा (2) के मद्देनजर, धारा 34 और 37 न्यायालयों द्वारा आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र पर प्रतिवादी की आपत्ति बरकरार रखना सही नहीं था। इसलिए आरोपित निर्णयों को बरकरार नहीं रखा जा सकता।”

    तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: मेसर्स विद्यावती कंस्ट्रक्शन कंपनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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