Maharashtra Local Body Elections | 'आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता, अधिकारियों ने हमारे आदेश को गलत समझा': सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

17 Nov 2025 8:30 PM IST

  • Maharashtra Local Body Elections | आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता, अधिकारियों ने हमारे आदेश को गलत समझा: सुप्रीम कोर्ट

    महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता और राज्य के अधिकारियों ने उसके आदेश को गलत समझा।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की।

    जस्टिस कांत ने सुनवाई के दौरान इस बात पर ज़ोर देते हुए कि न्यायालय ने आरक्षण को 50% से अधिक करने की अनुमति देने वाला कोई आदेश पारित नहीं किया, कहा,

    "हम इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट हैं। जब हमने कहा कि चुनाव मौजूदा क़ानून के अनुसार ही होने चाहिए तो क़ानून बिल्कुल स्पष्ट था। इस न्यायालय के फ़ैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता। इस न्यायालय द्वारा दिए गए कारणों में से एक यह था कि पहचान की यह प्रक्रिया नहीं की गई। इसके लिए बंठिया आयोग का गठन किया गया। आयोग की रिपोर्ट ही चुनौती के अधीन है। इसलिए बंठिया आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार किया जा सकता है या नहीं, अगर उसके आधार पर इसे स्वीकार किया जाता है तो आरक्षण 50% से अधिक हो सकता है या नहीं, ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर यह न्यायालय अंतिम सुनवाई के समय विचार करेगा। राज्य का एक पूर्व असंशोधित क़ानून है, जो कहता है कि आरक्षण केवल 50% तक ही सीमित हो सकता है।"

    जस्टिस बागची ने अपनी राय में कहा,

    "हमने संकेत दिया कि बंठिया से पहले वाली स्थिति बनी रह सकती है। लेकिन क्या इसका मतलब सभी के लिए 27% है? अगर ऐसा है तो हमारा निर्देश वास्तव में इसी मामले में पारित पूर्व आदेशों के विपरीत है, क्योंकि जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 27% की अधिसूचना पर रोक लगा दी थी। जब हमने कानून कहा तो हमारा मतलब उन 27% से था, जहां भी यह 50% की सीमा में आता है... अगर यह 50% की सीमा को पार कर 50% तक पहुंच जाता है... अन्यथा, यह आदेश दूसरे आदेश के विरुद्ध होगा।"

    कोर्ट के 6 मई के आदेश की ओर इशारा करते हुए जस्टिस कांत ने आगे कहा कि चुनाव बंठिया आयोग की रिपोर्ट से पहले की स्थिति के अनुसार कराने का निर्देश दिया गया। जज ने आगे कहा कि महाराष्ट्र से संबंधित न्यायालय का 3-जजों की पीठ का आदेश था और जब तक उस पर विचार नहीं किया जाता, 2-जजों की पीठ शायद कोई विपरीत निर्देश जारी करने की स्थिति में नहीं होगी।

    बता दें, 6 मई को कोर्ट ने निर्देश दिया था कि स्थानीय निकायों के चुनाव ओबीसी आरक्षण के अनुसार कराए जाएं, जो जुलाई 2022 में बंठिया आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत होने से पहले लागू था।

    कोर्ट ने कहा था,

    "ओबीसी समुदायों को आरक्षण उसी कानून के अनुसार प्रदान किया जाएगा, जैसा कि जेके बंठिया आयोग की 2022 की रिपोर्ट प्रस्तुत होने से पहले महाराष्ट्र राज्य में लागू था।"

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को इस बात पर प्रकाश डाला कि चुनाव चल रहे हैं और नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया कल से शुरू होगी। उन्होंने आगे तर्क दिया कि क्या आरक्षण 50% से अधिक हो सकता है, इस मुद्दे को कोर्ट ने अपने 6 मई के आदेश में विचाराधीन मुद्दे के रूप में दर्ज किया था, फिर भी चुनाव कराने का निर्देश दिया गया।

    सॉलिसिटर जनरल ने जब जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा तो जस्टिस कांत ने कहा कि इस बीच आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता।

    जज ने टिप्पणी की,

    "कृपया इसे 50% से आगे लागू न करें। क्योंकि अगर चुनाव 50% से आगे होने दिए गए तो न केवल मामला निरर्थक हो जाएगा..."

    "मुझे नहीं पता कि इसके क्या परिणाम होंगे", सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया। साथ ही समय दिए जाने पर ज़ोर दिया और सुझाव दिया कि अगली तारीख तक की प्रगति अगली तारीख के अंतिम परिणाम पर निर्भर करेगी।

    अंततः, जब जस्टिस कांत ने एक आवेदन पर नोटिस जारी करने का निर्देश दिया तो जस्टिस बागची ने सॉलिसिटर जनरल से कहा,

    "कृपया हमें बताएं कि किस सीमा तक और कितनी नगरपालिकाओं में 50% की सीमा पार हो गई।"

    सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने इसका उत्तर "40%" कहकर दिया। उन्होंने विकास किशनराव गवली मामले का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम, 1961 के तहत दिए गए 27% ओबीसी आरक्षण को इस आधार पर रद्द कर दिया कि इससे 50% की सीमा का उल्लंघन हुआ था।

    जस्टिस कांत ने यह भी टिप्पणी की कि आवेदकों का यह कहना सही था कि अदालत के आदेशों का गलत अर्थ निकाला जा रहा है।

    जज ने कहा,

    "हमने कभी भी 50% से ज़्यादा की अनुमति नहीं दी!"

    एक वकील ने जब ज़ोर देकर कहा कि चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है तो जस्टिस कांत ने चेतावनी देते हुए कहा,

    "अगर प्रक्रिया ही दलील है तो हम आज रोक लगा रहे हैं। फिर हम चुनाव नहीं होने देंगे। हमने चुनाव कराने की अनुमति दी है। हम अब भी यह सुनिश्चित करेंगे कि ये चुनाव हों। लेकिन संविधान पीठ के फ़ैसले के विपरीत नहीं। मुझे और मेरे भाई पर संविधान पीठ के फ़ैसले के विपरीत आदेश पारित करने के लिए दबाव न डालें!"

    एक मौके पर सीनियर एडवोकेट नरेंद्र हुड्डा ने बताया कि कुछ मामलों में आरक्षण 70% तक जा रहा है।

    जस्टिस कांत ने स्पष्ट रूप से कहा,

    "इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।"

    जस्टिस बागची ने यह भी कहा,

    "ओबीसी के संबंध में नहीं। संविधान पीठ का रुख़ बिल्कुल स्पष्ट है। ओबीसी के संबंध में [आरक्षण] 50% से ज़्यादा नहीं हो सकता।"

    खंडपीठ ने बार-बार सॉलिसिटर जनरल से अगली तारीख़ तक नामांकन स्थगित करने का आग्रह किया।

    जस्टिस कांत ने अदालत के समक्ष याचिका के समय पर सवाल उठाते हुए कहा,

    "वे (आवेदक) उसी क्षण आ गए जब उन्होंने हमारे आदेशों को गलत समझा या हमारे आदेश का अनुचित लाभ उठाने की कोशिश की। इसमें अवमानना ​​भी शामिल है। हम आज अवमानना ​​के मामले में गंभीर नहीं हैं, लेकिन हमारे सीधे-सादे आदेश को अधिकारियों ने जटिल बना दिया।"

    अंत में जब जज ने फिर से सुझाव दिया कि नामांकन अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दिया जाए तो सॉलिसिटर जनरल ने कहा,

    "नहीं, नहीं। मैं यह सुझाव दे रहा हूं कि जो कुछ भी होगा, वह अगले दिन आपके निर्णय के अधीन होगा।"

    Case Title: RAHUL RAMESH WAGH Versus THE STATE OF MAHARASHTRA AND ORS., SLP(C) No. 19756/2021 (and connected cases)

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