मजिस्ट्रेट के संज्ञान आदेश को केवल इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि वह तर्कसंगत आदेश नहीं था: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
24 April 2025 10:00 AM

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लेने वाले मजिस्ट्रेट के आदेश को केवल इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि वह तर्कसंगत आदेश नहीं था। यदि मामले के रिकॉर्ड को पढ़ने के आधार पर प्रथम दृष्टया मामले के अस्तित्व के बारे में निष्कर्ष दर्ज करने के बाद संज्ञान लिया जाता है तो स्पष्ट कारणों की आवश्यकता नहीं होती है।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने झारखंड हाईकोर्ट का निर्णय खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय ने निचली अदालत के संज्ञान आदेश में हस्तक्षेप किया था, जो अभियुक्त के खिलाफ प्रथम दृष्टया सामग्री, जैसे केस डायरी, आदि के आधार पर पारित किया गया, और तर्कसंगत आदेश नहीं था।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“वर्तमान मामले में हम पाते हैं कि अतिरिक्त न्यायिक आयुक्त ने यह निष्कर्ष दर्ज करते हुए संज्ञान लिया है कि- केस डायरी और केस रिकॉर्ड के अवलोकन से अपीलकर्ताओं सहित अभियुक्तों के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है। भूषण कुमार बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली), (2012) 5 एससीसी 424 में इस न्यायालय ने माना कि संज्ञान लेने वाले मजिस्ट्रेट के आदेश को केवल इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि यह एक तर्कपूर्ण आदेश नहीं था।”
न्यायालय ने भूषण कुमार में टिप्पणी की,
“इस न्यायालय द्वारा बार-बार कहा गया कि संहिता की धारा 204 के तहत समन आदेश के लिए कोई स्पष्ट कारण बताए जाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह अनिवार्य है कि मजिस्ट्रेट ने आरोपों पर ध्यान दिया होगा और पुलिस रिपोर्ट और उसके साथ दायर सामग्री में लगाए गए आरोपों पर अपना विचार लगाया होगा।”
इसके अलावा, गुजरात राज्य बनाम अफरोज मोहम्मद हसनफत्ता, (2019) 20 एससीसी 539 के मामलों का भी संदर्भ दिया गया, जिसमें यह माना गया कि मजिस्ट्रेट को अभियुक्त को समन जारी करने के चरण में कोई कारण दर्ज करने की आवश्यकता नहीं है।
वर्तमान मामले में कानून को लागू करते हुए न्यायालय ने कहा:
“इसके अलावा, हम अतिरिक्त न्यायिक आयुक्त के दृष्टिकोण को सही पाते हैं, क्योंकि संज्ञान लेते समय उन्होंने सबसे पहले अपने सामने मौजूद सामग्रियों पर विचार किया ताकि यह राय बनाई जा सके कि क्या कोई अपराध किया गया। उसके बाद उन व्यक्तियों की पहचान करने के पहलू पर विचार किया, जिन्होंने अपराध किया।”
न्यायालय ने कहा,
“उपरोक्त कारणों से और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों और पक्षों के वकील की दलीलों के समग्र विवेक पर हम पाते हैं कि 13.06.2019 को संज्ञान लेने का आदेश कानून के अनुसार होने के कारण हाईकोर्ट द्वारा हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं थी।”
उपरोक्त के संदर्भ में, अपील स्वीकार की गई।
केस टाइटल: प्रमिला देवी एवं अन्य बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य।