Juvenile Justice Act | दोषसिद्धि और सजा के अंतिम होने के बाद भी किशोर होने की दलील दी जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

9 Oct 2024 3:04 PM IST

  • Juvenile Justice Act | दोषसिद्धि और सजा के अंतिम होने के बाद भी किशोर होने की दलील दी जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ दोषसिद्धि और सजा के फैसले और आदेश के अंतिम होने के बाद भी किशोर होने की दलील दी जा सकती है।

    जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने ऐसा कहते हुए हत्या के मामले में आरोपी को बरी किया, जिसने अपने खिलाफ दोषसिद्धि और सजा के आदेश के बाद किशोर होने की दलील दी थी।

    कोर्ट ने कहा,

    “हालांकि (किशोर होने के लिए) आवेदन इस न्यायालय द्वारा दिए गए दोषसिद्धि के आदेश के बाद दायर किया गया, हम इस न्यायालय के ऊपर दिए गए फैसले और आपराधिक अपील संख्या 64/2012 में दिनांक 17.01.2004 के फैसले को ध्यान में रखते हैं, जिसका शीर्षक प्रमिला बनाम छत्तीसगढ़ राज्य है, कि किसी व्यक्ति के खिलाफ दोषसिद्धि और सजा के फैसले और आदेश के अंतिम होने के बाद भी किशोर होने का दावा करने के लिए आवेदन किया जा सकता है।”

    यह उल्लेख करना उचित है कि अभियुक्त/प्रतिवादी नंबर 1 ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखे जाने के बाद भी किशोर होने की दलील देते हुए विविध आवेदन प्रस्तुत किया था।

    सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94 के तहत सेशन कोर्ट द्वारा विस्तृत जांच की गई, जिसमें अपराध के समय अभियुक्त की आयु निर्धारित की गई। इसमें दर्ज किया गया कि घटना की तिथि पर अभियुक्त की आयु 18 वर्ष से कम थी।

    सेशन कोर्ट की रिपोर्ट स्वीकार करते हुए जस्टिस नागरत्ना द्वारा लिखित निर्णय में अभियुक्त/आवेदक के किशोर होने के दावे को स्वीकार किया गया। इसलिए अभियुक्त के विरुद्ध दर्ज दोषसिद्धि खारिज कर दी गई।

    न्यायालय ने अभियुक्त/प्रतिवादी नंबर 1 की दलील को स्वीकार किया और उसकी दोषसिद्धि खारिज की।

    न्यायालय ने कहा,

    "इस न्यायालय के निर्देशानुसार, उपरोक्त निर्णयों और सेशन जज द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए हम पाते हैं कि आवेदक की जन्म तिथि 04.10.1984 साबित हुई। परिणामस्वरूप, आवेदक, जिसे आरोपी नंबर 3 के रूप में रखा गया, द्वारा किए गए किशोर होने के दावे को बरकरार रखा जाता है। इस न्यायालय द्वारा उसके खिलाफ दर्ज की गई सजा रद्द की जाती है और उसे बरी कर दिया जाता है। चूंकि वह अंतरिम जमानत पर है, इसलिए उसकी जमानत-बांड रद्द हो जाती है।"

    केस टाइटल: मध्य प्रदेश राज्य बनाम रामजी लाल शर्मा और अन्य

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