'हिस्ट्री शीट' में निर्दोष व्यक्तियों के नाम केवल उनकी जाति या वंचित पृष्ठभूमि के आधार पर न लिखें: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों से कहा

Amir Ahmad

7 May 2024 5:50 PM IST

  • हिस्ट्री शीट में निर्दोष व्यक्तियों के नाम केवल उनकी जाति या वंचित पृष्ठभूमि के आधार पर न लिखें: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों से कहा

    अपनी स्वप्रेरणा शक्तियों का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (07 मई) को सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे हिस्ट्री शीट में उन निर्दोष व्यक्तियों के विवरण का उल्लेख करने के संबंध में अपनी नीति पर फिर से विचार करें, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आते हैं साथ ही पिछड़े समुदायों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित हैं।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा,

    “जबकि हम उनकी प्रामाणिकता की डिग्री के बारे में निश्चित नहीं हैं, लेकिन सार्वजनिक डोमेन में कुछ अध्ययन उपलब्ध हैं, जो अनुचित, पूर्वाग्रही और अत्याचारी मानसिकता के पैटर्न को प्रकट करते हैं। यह आरोप लगाया गया कि पुलिस डायरियाँ केवल जाति-पूर्वाग्रह के आधार पर विमुक्त जातियों से संबंधित व्यक्तियों के बारे में चुनिंदा रूप से रखी जाती हैं, कुछ हद तक औपनिवेशिक काल की तरह ही।”

    न्यायालय ने राज्य सरकारों से ऐसे समुदायों को अक्षम्य लक्ष्यीकरण या पक्षपातपूर्ण व्यवहार के अधीन होने से बचाने के लिए आवश्यक निवारक उपाय करने की आवश्यकता जताई।

    न्यायालय ने कहा,

    "हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि ये पूर्व-निर्धारित धारणाएं अक्सर उन्हें (निर्दोष व्यक्तियों को) उनके समुदायों से जुड़ी प्रचलित रूढ़ियों के कारण 'अदृश्य पीड़ित' बना देती हैं, जो अक्सर आत्म-सम्मान के साथ जीवन जीने के उनके अधिकार में बाधा डाल सकती हैं।”

    न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 में गहराई से निहित मानवीय गरिमा और जीवन के मूल्य को रेखांकित करते हुए कहा कि हिस्ट्री शीट में निर्दोष व्यक्ति के विवरण का उल्लेख करना मानव सम्मान के योग्य जीवन के खिलाफ है।

    अदालत ने कहा,

    आत्म-सम्मान सामाजिक छवि और अपने आस-पास के समाज में खुद के लिए ईमानदार जगह गरिमापूर्ण जीवन के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि पर्याप्त भोजन, कपड़े और आश्रय।"

    सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी आप विधायक अमानतुल्लाह खान की उस याचिका पर फैसला सुनाते हुए की, जिसमें उन्होंने दिल्ली पुलिस द्वारा उनके खिलाफ हिस्ट्रीशीट खोलकर उन्हें 'बुरे चरित्र' का व्यक्ति बताने की कार्रवाई के खिलाफ याचिका दायर की थी। खान के खिलाफ हिस्ट्रीशीट में दिल्ली पुलिस ने उनके नाबालिग स्कूल जाने वाले बच्चों और पत्नी का विवरण उजागर किया था, जिनके खिलाफ कोई सबूत नहीं था।

    इसके अलावा हिस्ट्रीशीट को सार्वजनिक डोमेन में व्यापक रूप से प्रचारित किया गया। दिल्ली पुलिस द्वारा स्थायी आदेश में सुधार किए जाने के बाद अदालत ने दिल्ली पुलिस द्वारा जारी संशोधित स्थायी आदेश की पुष्टि की, जिसमें उन निर्दोष व्यक्तियों का विवरण शामिल नहीं किया गया, जिनके खिलाफ हिस्ट्रीशीट में उनकी पहचान का खुलासा करने के लिए कोई सबूत मौजूद नहीं है।

    साथ ही न्यायालय ने कहा कि सीनियर पुलिस अधिकारी की देखरेख में आवधिक लेखा परीक्षा तंत्र हिस्ट्री शीट में की गई प्रविष्टियों की समीक्षा और जांच करने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में काम करेगा, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये किसी भी पूर्वाग्रह या भेदभावपूर्ण व्यवहार से रहित हैं।

    अदालत ने कहा,

    "इसलिए हम इस स्तर पर सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी नीति-व्यवस्था पर फिर से विचार करने और इस बात पर विचार करने का निर्देश देना उचित समझते हैं कि क्या 'दिल्ली मॉडल' की तर्ज पर उपयुक्त संशोधन किए जाने की आवश्यकता है, जिससे इस आदेश के पैराग्राफ 14 से 16 में की गई हमारी टिप्पणियों को सही अर्थों में लागू किया जा सके।"

    अदालत ने कहा,

    "रजिस्ट्री को तदनुसार, इस निर्णय की एक प्रति सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशकों को भेजने का निर्देश दिया जाता है, जिससे वे ऊपर दिए गए निर्णय पर विचार कर सकें और उसका अनुपालन कर सकें, जितना जल्दी हो सके, लेकिन इस निर्णय से छह महीने से अधिक नहीं।

    केस टाइटल- अमानतुल्लाह खान बनाम पुलिस आयुक्त, दिल्ली और अन्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 5719/2023

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