CrPC की धारा 197 के तहत मंजूरी का मुद्दा कार्यवाही के किसी भी चरण में निचली अदालत में उठाया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
11 Sept 2025 1:54 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले में किसी लोक सेवक के विरुद्ध निचली अदालत द्वारा आरोप तय करने में हस्तक्षेप करने से इनकार किया और कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 197 के तहत मंजूरी के प्रश्न पर कार्यवाही के किसी भी चरण में विचार किया जा सकता है, क्योंकि यह मुद्दा प्रस्तुत साक्ष्य की प्रकृति पर निर्भर करता है कि क्या कृत्य आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में किए गए।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जिसमें याचिकाकर्ता-लोक सेवक पर IPC की धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात), 477ए (खातों में हेराफेरी) और 420 (धोखाधड़ी) के साथ-साथ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भी मुकदमा चल रहा था। यद्यपि PC Act के तहत वैध अनुमति प्राप्त कर ली गई। हालांकि, IPC के अपराधों के लिए CrPC की धारा 197 के तहत कोई अलग से अनुमति प्राप्त नहीं की गई। हाईकोर्ट में उनकी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी गईं, जिसके बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ा।
याचिकाकर्ता के वकील सीनियर एडवोकेट के. परमेश्वर ने तर्क दिया कि इससे IPC के आरोपों की पूरी सुनवाई निरर्थक और अवैध हो गई, क्योंकि CrPC, 1973 की धारा 197 के तहत अनुमति के अभाव में IPC के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप तय नहीं किए जा सकते थे।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोप तय करने को चुनौती देने को समय से पहले की चुनौती माना और स्पष्ट किया कि CrPC की धारा 197 के तहत अनुमति के अभाव का मुद्दा केवल तभी तय किया जा सकता है, जब यह आकलन करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत किए जाएं कि क्या ये कृत्य आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में किए गए या नहीं।
अदालत ने कहा,
"हमारा मानना है कि CrPC की धारा 197 के तहत मंज़ूरी का मुद्दा कार्यवाही के किसी भी चरण में निचली अदालत के समक्ष उठाया जा सकता है। यह सब उन सबूतों की प्रकृति पर निर्भर करेगा, जो अभियोजन पक्ष मुकदमे के दौरान पेश करता है।"

