NDPS Act की धारा 50 का उद्देश्य संदिग्ध को उस अधिकारी के पास ले जाने के अधिकार के बारे में सूचित करना है, जो तलाशी दल का हिस्सा नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

7 Dec 2024 10:25 AM IST

  • NDPS Act की धारा 50 का उद्देश्य संदिग्ध को उस अधिकारी के पास ले जाने के अधिकार के बारे में सूचित करना है, जो तलाशी दल का हिस्सा नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDPS Act) की धारा 50 के पीछे का उद्देश्य संदिग्ध को, जिसकी तलाशी ली जा रही है, राजपत्रित अधिकारी के पास ले जाने के अधिकार के बारे में सूचित करना है जो छापेमारी दल का हिस्सा नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह स्पष्ट है कि प्रावधान के पीछे का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जिस व्यक्ति की तलाशी ली जा रही है, उसे तलाशी लेने वाले व्यक्ति के अलावा किसी तीसरे व्यक्ति के पास ले जाने के विकल्प के बारे में अवगत कराया जाए।"

    न्यायालय ने कहा,

    "निकटतम" अभिव्यक्ति का उपयोग संदिग्ध की तलाशी के लिए सुविधा को दर्शाता है। देरी से बचना चाहिए, जैसा कि "अनावश्यक देरी" शब्द के उपयोग और NDPS Act की धारा 50 की उपधारा (5) में किए गए अपवाद से पता चलता है। उपयोग किए गए शब्दों या प्रावधान के पीछे के इरादे से अधिक कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया।"

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ दिल्ली सरकार की उस चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने 500 ग्राम हेरोइन खरीदने और रखने के कथित आरोपी को जमानत दी। आरोपी के खिलाफ NDPS Act की धारा 21 और 29 के तहत FIR दर्ज की गई।

    दिल्ली हाईकोर्कट की जस्टिस जगमीत सिंह की पीठ ने प्रतिवादी को दो मुख्य पहलुओं पर जमानत दी थी: (1) धारा 50 NDPS Act के तहत आरोपी को दिया गया नोटिस गलत सूचना पर आधारित था और (2) आरोपी की तलाशी किसी स्वतंत्र अधिकारी द्वारा नहीं बल्कि एसीपी द्वारा की गई, जो छापेमारी दल का हिस्सा था।

    राज्य की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के आदेश का उपयोग अब अन्य NDPS मामलों में जमानत देने के लिए संदर्भ के रूप में किया जा रहा है।

    आरोपी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुक्ता गुप्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट का तर्क दोहराया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि धारा 50 नोटिस के शब्दों के 'सादे और स्वाभाविक' पढ़ने के संदर्भ में उल्लंघन किया गया।

    NDPS Act की धारा 50(1) में कहा गया,

    "जब धारा 42 के तहत विधिवत प्राधिकृत कोई अधिकारी धारा 41, धारा 42 या धारा 43 के प्रावधानों के तहत किसी व्यक्ति की तलाशी लेने वाला होता है, तो वह यदि ऐसा व्यक्ति ऐसा चाहता है, तो उसे अनावश्यक देरी के बिना धारा 42 में उल्लिखित किसी भी विभाग के निकटतम राजपत्रित अधिकारी या निकटतम मजिस्ट्रेट के पास ले जाएगा।"

    हालांकि, हाईकोर्ट ने नोट किया कि आरोपी को दिए गए नोटिस में कहा गया,

    "आपको किसी भी राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में अपनी तलाशी लेने का कानूनी अधिकार है।"

    हालांकि, सीजेआई ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि वर्तमान संदर्भ में धारा 50 के तहत 'निकटतम' शब्द की स्पष्ट और स्वाभाविक व्याख्या का अर्थ 'कोई भी' के समान ही है।

    सीजेआई ने कहा,

    "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर 'कोई भी' और 'निकटतम' समान हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।"

    इस पहलू पर विचार करते हुए कि कैसे एसीपी जो छापेमारी दल का हिस्सा था और तलाशी भी धारा 50 के तहत 'राजपत्रित अधिकारी' के रूप में उसकी उपस्थिति में की गई, पीठ ने उस सीमा तक प्रावधान की व्याख्या को स्पष्ट करने पर सहमति व्यक्त की।

    सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा,

    "यदि वे (धारा 50 के तहत नोटिस) कह रहे हैं - कोई राजपत्रित अधिकारी, उनका मतलब राजपत्रित अधिकारी नहीं है, जो दल का सदस्य है - तो हम उस हिस्से को स्पष्ट करेंगे। लेकिन हाईकोर्ट का तर्क गलत है।"

    खंडपीठ ने राज्य द्वारा रद्द करने की अपील स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि वह मामले के गुण-दोष पर कुछ भी व्यक्त नहीं कर रही है। आरोपी को बदली हुई परिस्थितियों में जमानत याचिका दायर करने की भी स्वतंत्रता दी गई।

    आदेश में खंडपीठ ने कहा:

    "हम हाईकोर्ट द्वारा विवादित निर्णय में दिए गए तर्क को समझने में असमर्थ हैं, जिसमें कहा गया कि 'किसी भी' शब्द का प्रयोग 'निकटतम' राजपत्रित अधिकारी के आदेश को संतुष्ट नहीं करता है, इसलिए प्रतिवादी मोहम्मद जाबिर जमानत के हकदार हैं। प्रतिवादी मोहम्मद जाबिर को तलाशी के लिए दिया गया विकल्प, राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के संदर्भ में, छापेमारी दल में अधिकृत व्यक्ति का संदर्भ नहीं देता है। यह उल्लेख करना उचित है कि प्रतिवादी मोहम्मद जाबिर ने विकल्प का प्रयोग नहीं किया।"

    हाईकोर्ट का तर्क

    हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 50(1) का उद्देश्य अभियुक्त की तलाशी के दौरान स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना है।

    "मेरी राय में विधायिका द्वारा "निकटतम" शब्द का उपयोग जानबूझकर किया गया। इसका उपयोग तलाशी के समय तटस्थता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए किया गया।"

    हालांकि, वर्तमान परिदृश्य में प्रावधान का उद्देश्य विफल हो जाता है, क्योंकि एसीपी जो छापेमारी दल का सदस्य था और जिसके निर्देश पर पूरी जांच शुरू की गई।

    इसलिए हाईकोर्ट ने अभियुक्त को जमानत देते हुए कहा:

    मेरी राय में 27.10.2020 को NDPS Act की धारा 50 के तहत दिए गए नोटिस में अवैधता है। धारा 50 स्पष्ट रूप से अनिवार्य करती है कि जहां अभियुक्त को तलाशी की आवश्यकता होती है, वहां तलाशी निकटतम राजपत्रित अधिकारी/निकटतम मजिस्ट्रेट द्वारा की जानी चाहिए।

    हालांकि, आवेदक और सह-अभियुक्त को दिए गए धारा 50 के नोटिस में गलत जानकारी दी गई कि उनकी तलाशी किसी भी राजपत्रित सूचना/मजिस्ट्रेट द्वारा ली जा सकती है। मेरी राय में यहीं पर धारा 50 का उल्लंघन होता है।

    केस टाइटल: दिल्ली राज्य बनाम मोहम्मद जाबिर | सीआरएल.ए. संख्या 004931 / 2024

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