पहले से ही भारतीय घोषित व्यक्ति के खिलाफ विदेशी न्यायाधिकरण में दूसरा मामला शुरू करना प्रक्रिया का दुरुपयोग: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

5 May 2025 11:23 AM IST

  • पहले से ही भारतीय घोषित व्यक्ति के खिलाफ विदेशी न्यायाधिकरण में दूसरा मामला शुरू करना प्रक्रिया का दुरुपयोग: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुवाहाटी हाईकोर्ट का आदेश खारिज कर दिया, जिसमें विदेशी न्यायाधिकरण (Foreigners Tribunal) के समक्ष मामला रद्द करने से इनकार कर दिया गया था। इस मामले में कहा गया था कि अपीलकर्ता के खिलाफ बाद की कार्यवाही रिस जुडिकाटा के सिद्धांत द्वारा वर्जित है, क्योंकि उसे पहले के एक मामले में विदेशी नहीं घोषित किया जा चुका है।

    जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा -

    “जबकि यह विवाद का विषय नहीं है कि पिछले संदर्भ में न्यायाधिकरण ने दोनों पक्षों को अवसर देने के बाद साक्ष्य के मूल्यांकन पर अपीलकर्ता को विदेशी नहीं पाया, प्रतिवादी के लिए उपलब्ध एकमात्र रास्ता या तो हाईकोर्ट के समक्ष आदेश को चुनौती देना था या वापस लेने के लिए स्वीकार्य आधारों पर इसे वापस लेने की मांग करना था। चूंकि पुनर्विचार के लिए कोई प्रावधान मौजूद नहीं है, कम से कम हमें तो नहीं दिखाया गया, जब तक पिछला आदेश लागू है, तब तक नई कार्यवाही शुरू करना संभव नहीं है, क्योंकि यह अब्दुल कुद्दुस (सुप्रा) में इस न्यायालय द्वारा निर्धारित रिस ज्यूडिकाटा के सिद्धांतों के विरुद्ध होगा। इसलिए हमारे विचार में बाद की कार्यवाही कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अलावा और कुछ नहीं है। इसलिए हाईकोर्ट को इसे रोक देना चाहिए था।”

    2016 में अपीलकर्ता ताराभानु खातून उर्फ ​​ताराभानु बीबी, पर विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत कार्यवाही की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने 25 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश किया था- वह कट-ऑफ डेट जिसके बाद बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) से असम में प्रवेश करने वाले व्यक्ति को विदेशी माना जाता है। नलबाड़ी के मुकलमुआ में विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष यह कार्यवाही 31 अगस्त 2016 को अंतिम आदेश में समाप्त हुई, जिसमें कहा गया कि अपीलकर्ता विदेशी नहीं थी। न्यायाधिकरण ने नोट किया कि राज्य की ओर से किसी गवाह की जांच नहीं की गई।

    अपीलकर्ता ने यह दिखाने के लिए दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य पर भरोसा किया कि उसके माता-पिता भारतीय नागरिक है, जिनका नाम 1966 और 1970 की मतदाता सूचियों में दर्ज है। उसने यह भी प्रस्तुत किया कि उसने 1979 में चानू शेख नामक व्यक्ति से विवाह किया था। 1985 से अपना वोट डाल रही है। न्यायाधिकरण ने दस्तावेजों और गवाहों की गवाही को विश्वसनीय पाया और माना कि अपीलकर्ता ने विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 9 के तहत सबूत के बोझ का निर्वहन किया है। इसने घोषित किया कि अपीलकर्ता विदेशी नहीं है।

    इसके बावजूद, 15 दिसंबर 2018 को अपीलकर्ता को नया नोटिस जारी किया गया, जिसमें उसे फिर से कारण बताने के लिए कहा गया कि उसे विदेशी क्यों नहीं घोषित किया जाना चाहिए। इस नोटिस के कारण 2018 में मामला दर्ज किया गया। अपीलकर्ता ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका के माध्यम से इस दूसरी कार्यवाही को चुनौती दी।

    हाईकोर्ट ने स्वीकार किया कि अपीलकर्ता को पहले विदेशी नहीं घोषित किया गया, उसने रिट याचिका का निपटारा इस टिप्पणी के साथ किया कि वह बाद की कार्यवाही में न्यायाधिकरण के समक्ष सभी दलीलें उठा सकती है। इस प्रकार, उसने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी।

    अपीलकर्ता के लिए सीनियर एडवोकेट पीवी सुरेंद्रनाथ ने तर्क दिया कि एक बार जब पिछली कार्यवाही उसके पक्ष में समाप्त हो गई और अंतिम रूप ले लिया तो उसी आधार पर एक नया मामला शुरू करने का कोई औचित्य नहीं था। उन्होंने अब्दुल कुद्दुस बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जहां यह माना गया कि विदेशी न्यायाधिकरण के निष्कर्ष बाध्यकारी हैं और रिस जुडिकाटा के रूप में कार्य करते हैं।

    असम राज्य के लिए एडवोकेट देबोजीत बोरकाकती ने तर्क दिया कि पहले का न्यायाधिकरण आदेश गूढ़ था। इसमें साक्ष्य का उचित विश्लेषण नहीं किया गया और इसलिए यह बाध्यकारी नहीं था।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। इसने कहा कि राज्य के लिए एकमात्र उपलब्ध कानूनी रास्ता या तो हाईकोर्ट के समक्ष पहले के आदेश को चुनौती देना या इसे वापस लेने की मांग करना था। न्यायालय ने कहा कि पुनर्विचार के लिए कोई प्रावधान नहीं दिखाया गया और जब तक पिछला आदेश लागू है, उसी मुद्दे पर दूसरी कार्यवाही की अनुमति नहीं है।

    न्यायालय ने माना कि 2018 में शुरू की गई नई कार्यवाही कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग थी। मामले को रद्द कर दिया। इसने अपील स्वीकार की और हाईकोर्ट का 31 मई, 2023 का आदेश इस हद तक रद्द कर दिया कि उसने दूसरी कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया था।

    केस टाइटल- ताराबानू बेगम @ ताराभानू खातून बनाम भारत संघ और अन्य।

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