FIR रद्द करने की याचिका लंबित होने के दौरान आरोपपत्र दायर किया गया हो, फिर भी हाईकोर्ट अपराध की जांच कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

5 Feb 2024 5:38 AM GMT

  • FIR रद्द करने की याचिका लंबित होने के दौरान आरोपपत्र दायर किया गया हो, फिर भी हाईकोर्ट अपराध की जांच कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि एफआईआर (FIR) रद्द करने की याचिका के लंबित रहने के दौरान आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया जाता है तो हाईकोर्ट को अपने अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से रोका नहीं जा सकता है और वह अभी भी जांच कर सकता है कि क्या कथित अपराध किए गए हैं, जो प्रथम दृष्टया एफआईआर, आरोप पत्र और अन्य दस्तावेजों के आधार पर बनाए गए हैं या नहीं।

    जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने जोसेफ साल्वराज ए बनाम गुजरात राज्य और अन्य 2011 (7) एससीसी 59 का संदर्भ देते हुए कहा,

    “इस न्यायालय की समन्वय पीठ ने राय दी कि भले ही आरोप पत्र दायर किया गया हो, फिर भी न्यायालय यह जांच कर सकता है कि कथित अपराध प्रथम दृष्टया एफआईआर, आरोप पत्र और अन्य दस्तावेजों के आधार पर किए गए है या नहीं।

    अपीलकर्ता-अभियुक्त ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दायर की है। भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 420 और 409 के तहत दंडनीय अपराधों के कथित कमीशन के लिए उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट ने याचिका को निरर्थक बताते हुए खारिज किया और आरोपी को संबंधित अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।

    हाईकोर्ट ने जिस आधार पर रद्द करने की याचिका खारिज की, वह यह है कि रद्द करने की याचिका दायर करने के बाद आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। उस आधार पर हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि आपराधिक रिट याचिका निरर्थक हो गई।

    हाईकोर्ट के आक्षेपित फैसले को चुनौती देते हुए अभियुक्त-अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आपराधिक अपील दायर की।

    न्यायालय ने जोसेफ साल्वराज ए बनाम गुजरात राज्य और अन्य के मामले में अपने फैसले पर भरोसा किया। वर्तमान मामले पर पूरी तरह से लागू होने के कारण हाईकोर्ट के दृष्टिकोण से असहमत हैं।

    खंडपीठ ने इस प्रकार नोट किया,

    “हम जोसेफ साल्वाराज ए बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य 2011 (7) एससीसी 59 के मामले में 04.07.2011 को दिए गए इस न्यायालय के फैसले के अनुपात को ध्यान में रखते हुए अपीलकर्ता की रिट याचिका खारिज करने के हाईकोर्ट के तर्क से सहमत नहीं हैं। यह एफआईआर रद्द करने की याचिका से उत्पन्न मामला है, जहां आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 के तहत याचिका की स्थापना के बाद आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। इस न्यायालय की समन्वय पीठ ने कहा कि भले ही आरोप पत्र दायर किया गया हो, फिर भी अदालत यह जांच कर सकती है कि कथित अपराध प्रथम दृष्टया एफआईआर, आरोप पत्र और अन्य दस्तावेजों के आधार पर किए गए हैं या नहीं।''

    तदनुसार, अदालत ने आरोपी-अपीलकर्ता की अपील स्वीकार कर ली और हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह आरोपी द्वारा दायर निरस्तीकरण याचिका पर योग्यता के आधार पर सुनवाई करे। अदालत ने आरोपी की गिरफ्तारी पर तब तक रोक लगाने का भी आदेश दिया जब तक कि हाईकोर्ट आरोपी की याचिका पर गुण-दोष के आधार पर फैसला नहीं कर देता।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    “तदनुसार, हम लागू आदेश रद्द कर देते हैं और मामले को हाईकोर्ट में भेज देते हैं। हाईकोर्ट को आपराधिक रिट याचिका पर योग्यता के आधार पर सुनवाई करने दें। प्रकट की गई सामग्री के आधार पर हम यह भी निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता को उक्त एफआईआर में कथित अपराधों के लिए गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। जब तक हाईकोर्ट आपराधिक रिट याचिका पर योग्यता के आधार पर निर्णय नहीं लेता, जब तक कि हाईकोर्ट के समक्ष यह मामला नहीं बनाया जाता कि आरोप पत्र दाखिल करने के बाद किसी भी विकास के कारण अपीलकर्ता की हिरासत आवश्यक है। हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए यह निर्देश जारी करते हैं।

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