सीबीआई को किसी केंद्रीय सरकारी कर्मचारी के खिलाफ, केवल इसलिए कि वह किसी विशेष राज्य में काम करता है, केंद्रीय कानून के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहींः सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

3 Jan 2025 6:48 PM IST

  • सीबीआई को किसी केंद्रीय सरकारी कर्मचारी के खिलाफ, केवल इसलिए कि वह किसी विशेष राज्य में काम करता है, केंद्रीय कानून के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहींः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिसंबर को ‌दिए एक निर्णय में कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को किसी केंद्रीय सरकारी कर्मचारी के खिलाफ, केवल इसलिए कि वह किसी विशेष राज्य के क्षेत्र में काम करता है, केंद्रीय कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

    इस मामले में, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसी एक्ट) के तहत आंध्र प्रदेश में कार्यरत केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई थीं।

    इसके बाद दोनों आरोपियों ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि अविभाजित आंध्र प्रदेश राज्य की ओर से दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (डीएसपीई) के तहत सीबीआई के लिए दी गई सामान्य सहमति राज्य के विभाजन के बाद लागू नहीं हो सकती है और इसके लिए नए गठित आंध्र प्रदेश राज्य से नई सहमति की आवश्यकता है। हाईकोर्ट ने कार्यवाही को रद्द कर दिया।

    जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें डीएसपीई, 1946 की व्याख्या इस तरह की गई थी कि मामलों की जांच के लिए आंध्र प्रदेश की सहमति आवश्यक है।

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 1990 के सरकारी आदेश के अनुसार, डीएसपीई एक्ट के अधिकार क्षेत्र के तहत मामलों की जांच करने के लिए सीबीआई को सामान्य सहमति दी गई थी। फिर, बाद के आदेशों के माध्यम से इस सामान्य सहमति को आंध्र प्रदेश में भी लागू किया गया है।

    इसके अलावा, न्यायालय ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि वर्तमान मामले में, कथित अपराध केंद्र सरकार के कानून के तहत केंद्र सरकार के कर्मचारी के खिलाफ थे।

    इसलिए, न्यायालय ने इस मुद्दे को इस प्रकार तैयार किया, "इसलिए, सवाल यह है कि ऐसी परिस्थितियों में केवल इसलिए कि ऐसा कर्मचारी किसी विशेष राज्य के क्षेत्र में काम करता है, केंद्रीय अधिनियम के तहत अपराध के संबंध में सीबीआई द्वारा एफआईआर दर्ज करने के लिए संबंधित राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता है या नहीं?"

    इसका उत्तर देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने यह व्याख्या करने में गलती की कि आंध्र प्रदेश सरकार की सहमति आवश्यक थी। इसने कंवल तनुज बनाम बिहार राज्य और अन्य (2020) और फर्टिको मार्केटिंग एंड इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड (2020) का हवाला दिया।

    कंवल तनुज में न्यायालय ने डीपीएसई अधिनियम की व्याख्या की और कहा,

    "संघ राज्य क्षेत्र में किए गए निर्दिष्ट अपराधों और उससे संबंधित अन्य अपराधों के संबंध में विशेष पुलिस बल (डीएसपीई) द्वारा जांच के संबंध में ऐसी सहमति आवश्यक नहीं हो सकती है। ऐसा हो सकता है, भले ही दिए गए मामले में शामिल अभियुक्तों में से एक किसी अन्य राज्य (संघ राज्य क्षेत्र के बाहर) में निवास कर रहा हो या कार्यरत हो, जिसमें राज्य/स्थानीय निकाय/निगम, कंपनी या राज्य के बैंक या राज्य द्वारा नियंत्रित/संस्था के मामलों से संबंधित मामले शामिल हों, जो राज्य सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त कर रही हो या प्राप्त कर चुकी हो, जैसा भी मामला हो।

    किसी अन्य दृष्टिकोण को अपनाने पर विशेष पुलिस बल को संघ राज्य क्षेत्र में किए गए निर्दिष्ट अपराध के संबंध में भी जांच के लिए संबंधित राज्य से सहमति लेने की औपचारिकता का पालन करना होगा, केवल इस आकस्मिक स्थिति के कारण कि संबंधित अपराध का कुछ हिस्सा दूसरे राज्य में किया गया है और अपराध में शामिल अभियुक्त उस राज्य के मामलों के संबंध में रह रहा है या कार्यरत है।"

    फर्टिको मार्केटिंग एंड इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड के मामले में न्यायालय ने कहा,

    "हाईकोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि चूंकि अपीलकर्ता बिहार सरकार के मामलों के संबंध में कार्यरत था, इसलिए डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के तहत बिहार राज्य की विशेष सहमति के बिना जांच की अनुमति नहीं थी। इस न्यायालय ने उक्त तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यदि अपराध दिल्ली में किया गया है, तो केवल इसलिए कि उक्त अपराध की जांच संयोगवश बिहार राज्य के क्षेत्र में आती है, यह नहीं माना जा सकता कि बिहार के क्षेत्र में कार्यरत किसी अधिकारी के खिलाफ जांच की अनुमति नहीं दी जा सकती, जब तक कि डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के तहत विशेष सहमति न हो। राज्य की ओर से इस तर्क पर विचार करते हुए कि जांच को आगे बढ़ाने के लिए सीबीआई के लिए ऐसी सहमति आवश्यक थी, इस न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी-राज्य ने 19 फरवरी 1996 की अधिसूचना के माध्यम से डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के अनुसार सामान्य सहमति प्रदान की है, इसलिए राज्य के लिए इसके विपरीत तर्क देना खुला नहीं है।"

    इसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो की स्थापना करने वाले गृह मंत्रालय के 1963 के संकल्प का भी उल्लेख किया गया है, जो उन मामलों में सीबीआई के कार्य का प्रावधान करता है, जहां केंद्र सरकार के नियंत्रण में लोक सेवक या तो स्वयं या राज्य सरकार के कर्मचारियों और/या अन्य व्यक्तियों के साथ शामिल होते हैं।

    केस डिटेलः राज्य, केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम ए सतीश कुमार और अन्य | एसएलपी (सीआरएल) नंबर 10737/2023

    साइटेशन : 2025 लाइवलॉ (एससी) 11

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