हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
18 Feb 2024 10:00 AM IST
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (12 जनवरी, 2024 से 16 फरवरी, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
POCSO के तहत अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के तहत लाभ का हकदार नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाइकोर्ट ने माना कि अपराधियों की परिवीक्षा अधिनियम (Probation Of Offenders Act) के प्रावधानों के तहत लाभ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता। जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार और जस्टिस विजयकुमार ए पाटिल की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित बरी करने का आदेश पलट दिया और अधिनियम की धारा 8 के तहत प्रताप को तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
केस टाइटल- कर्नाटक राज्य और प्रताप
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पंजाब सिविल सेवा नियम | नियुक्ति से पहले पंजाबी भाषा की परीक्षा पास कर सकते हैं उम्मीदवार, आवेदन के लिए प्रमाण पत्र अनिवार्य नहीं: हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि पंजाब सिविल सेवा नियमों के तहत शासित उम्मीदवार, जो पंजाब के मामलों के संबंध में ग्रुप ए, बी और सी सेवाओं के लिए आवश्यक योग्यता के रूप में पंजाबी भाषा में मैट्रिक प्रमाण पत्र निर्धारित करते हैं, नियुक्ति की तारीख से पहले प्रमाण पत्र परीक्षा को पास कर सकते हैं, आवेदन की तारीख से पहले इसे प्राप्त करना आवश्यक नहीं है।
जस्टिस जगमोहन बंसल ने कहा कि विज्ञापन और 1994 के नियमों (पंजाब सिविल सेवा की सामान्य और सामान्य शर्तें) नियम, 1994 के नियम 17 के संयुक्त पठन से यह स्पष्ट है कि "न तो विज्ञापन और न ही नियम 17 में यह कहा गया है कि उम्मीदवार ने आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि से पहले मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की होगी। आवश्यकता यह है कि उम्मीदवार को नियुक्ति की तारीख से पहले पंजाबी भाषा की परीक्षा उत्तीर्ण करनी चाहिए।
केस टाइटल: अविनाश दलमोत्रा बनाम पंजाब राज्य और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
कर्जदाता बैंकों के लोन अकाउंट को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले ऑडिट रिपोर्ट की प्रति प्रस्तुत करनी होगी: गुजरात हाइकोर्ट
गुजरात हाइकोर्ट की जस्टिस संगीता के. विशेन की पीठ ने कहा कि कर्जदाता बैंकों को उधारकर्ता को ऑडिट रिपोर्ट की कॉपी देकर और अकाउंट को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले अभ्यावेदन प्रस्तुत करने की अनुमति देकर उचित अवसर प्रदान करना चाहिए।
केस टाइटल- अमित दिनेशचंद्र पटेल बनाम भारतीय रिजर्व बैंक
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बेटा के सरकारी नौकरी में होने पर भी मृत कर्मचारी की बेटी को अनुकंपा रोजगार देने पर प्रतिबंध नहीं: इलाहाबाद हाइकोर्ट
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने माना कि यदि मृत कर्मचारी का पति या पत्नी पहले से ही सरकारी रोजगार में है तो अनुकंपा नियुक्ति नहीं देने की वैधानिक शर्त केवल पति या पत्नी तक ही सीमित है और इसे मृत कर्मचारी के बच्चों तक नहीं बढ़ाया जा सकता। न्यायालय ने माना कि अपने पिता की मृत्यु के समय बेटे का सरकारी नौकरी में होना अप्रासंगिक होगा, क्योंकि उसकी कमाई का उपयोग उसके अपने परिवार पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के लिए किया जा सकता है।
केस टाइटल-कुमारी निशा बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
SC/ST Act की धारा 14ए के तहत अपील योग्य आदेशों को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि ऐसे मामलों में जहां किसी आदेश के खिलाफ अपील SC/ST Act, 1989 की धारा 14ए के तहत होगी, पीड़ित व्यक्ति सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आदेश को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट के अंतर्निहित क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकता।
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने गुलाम रसूल खान और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य के मामले में हाईकोर्ट की फुल बेंच के फैसले पर भरोसा करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें यह माना गया कि पीड़ित व्यक्ति, जिसके पास 1989 अधिनियम की धारा 14 ए के तहत अपील का उपाय है, उसको सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस न्यायालय के अंतर्निहित क्षेत्राधिकार को लागू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
केस टाइटल- शिवम कश्यप बनाम स्टेट ऑफ यूपी के माध्यम से. अतिरिक्त. मुख्य सचिव. विभाग गृह मंत्रालय के एल.के.ओ. और दूसरा 2024 लाइव लॉ (एबी) 90 [आवेदन यू/एस 482 नंबर - 2023 का 12798]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 21 रजिस्ट्रार को माता-पिता और बच्चे को DNA टेस्ट के लिए बाध्य करने के लिए अधिकृत नहीं करती: केरल हाइकोर्ट
केरल हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 (Registration of Births and Deaths Act, 1969) की धारा 21 के तहत जन्म या मृत्यु के बारे में जानकारी मांगने की रजिस्ट्रार की शक्ति नवजात शिशु और उसके माता-पिता के DNA टेस्ट का आदेश देने तक विस्तारित नहीं होती है। जस्टिस वीजी अरुण ने याचिकाकर्ताओं से जन्मी बच्ची को जन्म प्रमाण पत्र जारी करने से इनकार करने और उन्हें DNA टेस्ट कराकर अपना पितृत्व साबित करने के लिए कहने के लिए चेरनल्लूर ग्राम पंचायत के रजिस्ट्रार की आलोचना की।
केस टाइटल- रोमियो विक्टर और अन्य बनाम चेरानालूर ग्राम पंचायत और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सेक्स वर्कर का ग्राहक तस्करी के लिए उत्तरदायी नहीं, जब तक कि वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए महिलाओं की खरीद में भूमिका नहीं निभाता: उड़ीसा हाइकोर्ट
उड़ीसा हाइकोर्ट ने माना कि यौनकर्मियों की तस्करी और यौन शोषण के लिए ग्राहकों पर आईपीसी की धारा 370(3) और 370A(2) के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। जब रिकॉर्ड पर कोई सबूत उपलब्ध नहीं है कि ऐसे व्यक्तियों की तस्करी ग्राहकों द्वारा की गई, या उन्हें ऐसी तस्करी के बारे में जानकारी थी।
जस्टिस सिबो शंकर मिश्रा की एकल पीठ ने यौन-ग्राहकों के दायित्व को स्पष्ट करते हुए कहा, “यद्यपि अधिनियम, 1956 के तहत ग्राहकों को दोषमुक्त करने की न्यायिक प्रवृत्ति के अपवाद सीमित हैं, लेकिन कमजोर साक्ष्य के आधार पर ग्राहक पर अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम,1956 (Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956) की धाराओं के तहत प्रावधानों के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जब ग्राहक दूसरे के लिए महिलाओं को खरीदने की अपनी भूमिका निभाता है तो आईपीसी की धारा 370ए के तहत अपराध को ग्राहक के खिलाफ कार्रवाई में नियोजित किया जा सकता।"
केस टाइटल- बिकास कुमार जैन और अन्य बनाम ओडिशा राज्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
ईमेल/व्हाट्सएप के माध्यम से चेक ड्रॉअर को भेजा गया डिमांड नोटिस वैध: इलाहाबाद हाइकोर्ट
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने माना कि चेक के अनादरण के लिए परक्राम्य लिखत (Negotiable Instrument) की धारा 138 के तहत 'ईमेल या व्हाट्सएप' के माध्यम से चेक जारीकर्ता को भेजा गया डिमांड नोटिस वैध नोटिस है और वही होगा। यदि यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information And Technology Act) की धारा 13 की आवश्यकता को पूरा करता है तो इसे उसी तिथि पर भेजा गया माना जाएगा।
आईटी अधिनियम (IT Act) की धारा 13 में प्रावधान है कि जैसे ही इलेक्ट्रॉनिक रूप में नोटिस प्रवर्तक के नियंत्रण से बाहर एक कंप्यूटर संसाधन में दर्ज किया जाता है, इसे भेजा माना जाता है। इसके अतिरिक्त जैसे ही इलेक्ट्रॉनिक रूप में नोटिस दर्ज किया जाता है। निर्दिष्ट कंप्यूटर संसाधन या प्राप्तकर्ता के कंप्यूटर संसाधनों में प्रवेश करता है। फिर इसे पहुंचा माना जाता है।
केस टाइटल- राजेंद्र बनाम यूपी राज्य और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
NDPS Act| धारा 52 ए के मुताबिक मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में नहीं लिए गए नमूनों को ट्रायल में प्राथमिक साक्ष्य नहीं माना जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया है कि नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस अधिनियम) की धारा 52 ए के जनादेश के अनुसार मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में थोक में से नहीं लिए गए नमूनों को ट्रायल में प्राथमिक साक्ष्य के वैध टुकड़े के रूप में नहीं माना जा सकता है।
प्रावधान की धारा 52ए (2), (3) और (4) में कहा गया है कि जब जब्त किया गया प्रतिबंधित पदार्थ निकटतम पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को भेजा जाता है, तो अधिकारी को एक मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में जब्त किए गए माल से नमूने लेने होंगे जो इसकी सत्यता को प्रमाणित करेगा। इसमें आगे प्रावधान किया गया है कि जब्त किए गए पदार्थ की सूची या तस्वीरें और उसके संबंध में नमूनों की किसी भी सूची को मजिस्ट्रेट द्वारा प्रमाणित किए जाने को एनडीपीएस अधिनियम के तहत कथित अपराधों के संबंध में प्राथमिक साक्ष्य के रूप में मान्यता दी जाएगी।
केस - सत्यपाल और अन्य बनाम यूपी राज्य [आपराधिक अपील संख्या - 6549/ 2018 ]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
LIC Staff Regulations | मौजूदा वेतनमान से 'कम' अभिव्यक्ति कर्मचारी को न्यूनतम/निम्नतम वेतनमान तक दंडित करने के लिए पर्याप्त है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि एलआईसी (कर्मचारी विनियम, 1960) के खंड 39 (1) (डी) में अभिव्यक्ति 'निम्न' ग्रेड / पद भी 'निम्नतम' / 'न्यूनतम' ग्रेड या पद की सजा को शामिल करता है। जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने कहा कि विनियमन निर्माताओं का इरादा इस सक्षम प्रावधान को प्रतिबंधात्मक अर्थ देने का नहीं था।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
दलबदल के खिलाफ पिछली याचिका वापस लेना अगली याचिका दायर करने में देरी माफ करने के लिए पर्याप्त आधार: केरल हाइकोर्ट
केरल हाइकोर्ट ने माना कि यदि वैधानिक अवधि के भीतर चुनाव आयोग के समक्ष दायर की गई चुनाव याचिका वापस ले ली जाती है तो यह किसी अन्य व्यक्ति के लिए अगली चुनाव याचिका दायर करने में देरी की माफी मांगने के लिए पर्याप्त कारण होगा।
जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा, "एक बार वैधानिक अवधि के भीतर दलबदल का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग के समक्ष मूल याचिका दायर की जाती है और मान लीजिए कि चुनाव याचिका दायर करने वाली पार्टी या व्यक्ति निर्वाचित व्यक्ति से प्रभावित है और वह दलबदल याचिका वापस लेने में सक्षम है तो चुनाव आयोग स्थिति में असहाय नही है।”
केस टाइटल- सनिता साजी बनाम सलीम कुमार।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
Payment Of Wages Act| ठेकेदार के भुगतान करने में विफल रहने पर नियोक्ता वेतन भुगतान के लिए जिम्मेदार: जम्मू एंड कश्मीर हाइकोर्ट
वेतन भुगतान अधिनियम 1936 (Payment Of Wages Act 1936) के तहत वेतन भुगतान के लिए नियोक्ता की प्राथमिक जिम्मेदारी की पुष्टि करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि अधिनियम के तहत ठेकेदार या नियोक्ता द्वारा नामित व्यक्ति ऐसा भुगतान करने में विफल रहता है तो आवश्यक सभी मजदूरी का भुगतान करना नियोक्ता की जिम्मेदारी होगी। लेबर कोर्ट के आदेशों को चुनौती देने वाली और सरकारी विभागों को श्रमिकों को सीधे मजदूरी का भुगतान करने का निर्देश देने वाली दो रिट याचिकाओं को खारिज करते हुए भले ही भुगतान शुरू में एक ठेकेदार के माध्यम से किया गया।
केस टाइटल- कार्यकारी अभियंता सड़क और भवन, बांदीपोरा बनाम नजीर अहमद तेली
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
उस व्यक्ति को प्रभार सूचित करना जरूरी, जिसके खिलाफ आयकर कार्यवाही शुरू की गई है: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने माना है कि कारण बताओ नोटिस से नोटिस प्राप्तकर्ता को नोटिस में इंगित प्रस्तावित आरोपों के खिलाफ आपत्ति करने का उचित अवसर मिलना चाहिए, और जिस व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही की गई है, उसे उसके खिलाफ आरोप बताए जाने चाहिए ताकि वह अपना बचाव कर सके और अपनी बेगुनाही साबित कर सके।
जस्टिस रोंगोन मुखोपाध्याय जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने कहा है कि कार्यवाही के पूरे पाठ्यक्रम में, किसी भी स्तर पर याचिकाकर्ता को कानून के उन प्रावधानों से अवगत नहीं कराया गया है जिनका उल्लंघन किया गया है और/या जिसके तहत अतिरिक्त करने की मांग की गई है, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है, और विभाग द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया उचित या उचित नहीं है।
केस टाइटल: मेसर्स पसारी कास्टिंग एंड रोलिंग मिल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम आयकर विभाग
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बिना उचित प्रक्रिया घरों को तोड़ना और अखबारों में छपवाना अब फैशन बन गया है; तोड़फोड़ आखिरी उपाय होना चाहिए : एमपी हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उस याचिकाकर्ता को 1 लाख रुपये का मुआवजा दिया है, जिनके घरों को उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना उज्जैन नगर निगम द्वारा अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया गया था। मुआवजा देते समय, न्यायालय ने उज्जैन नगर निगम (यूएमसी) के आयुक्त को पंचनामा बनाने में शामिल अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया। इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ताओं को सिविल कोर्ट के माध्यम से अपने नुकसान के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग करने का विकल्प दिया गया था।