SC/ST Act की धारा 14ए के तहत अपील योग्य आदेशों को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

14 Feb 2024 7:35 AM GMT

  • SC/ST Act की धारा 14ए के तहत अपील योग्य आदेशों को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि ऐसे मामलों में जहां किसी आदेश के खिलाफ अपील SC/ST Act, 1989 की धारा 14ए के तहत होगी, पीड़ित व्यक्ति सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आदेश को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट के अंतर्निहित क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकता।

    जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने गुलाम रसूल खान और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य के मामले में हाईकोर्ट की फुल बेंच के फैसले पर भरोसा करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें यह माना गया कि पीड़ित व्यक्ति, जिसके पास 1989 अधिनियम की धारा 14 ए के तहत अपील का उपाय है, उसको सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस न्यायालय के अंतर्निहित क्षेत्राधिकार को लागू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि "दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 14-ए में किसी भी बात के बावजूद" शब्दों से शुरू होती है और इसके संदर्भ में: SC/ST Act की धारा 14 (ए) के तहत हाईकोर्ट की फुल बेंच ने माना कि "हालांकि इस न्यायालय की संवैधानिक और अंतर्निहित शक्तियां धारा 14 ए द्वारा "बेदखल" नहीं की जाती हैं, लेकिन उन्हें उन मामलों और स्थितियों में लागू नहीं किया जा सकता है, जहां धारा 14 ए के तहत अपील की जाएगी।”

    एकल न्यायाधीश ने यह भी कहा कि हालांकि सवाल यह है कि क्या पीड़ित व्यक्ति, जिसने 1989 की धारा 14 ए के प्रावधानों के तहत अपील के उपाय का लाभ नहीं उठाया, उसे प्रावधानों के तहत आवेदन को प्राथमिकता देकर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एचसी से संपर्क करने की अनुमति दी जा सकती है? उक्त मामला 2023 में हाईकोर्ट की लार्ज बेंच को भेजा गया था। उसने कहा कि गुलाम रसूल खान (सुप्रा) का फैसला तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक कि लार्ज बेंच द्वारा निर्णय नहीं लिया जाता।

    इस पृष्ठभूमि के खिलाफ न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एचसी की अंतर्निहित शक्तियों को उन मामलों और स्थितियों में लागू नहीं किया जा सकता, जहां SC/ST Act की धारा 14 ए के तहत अपील होगी। इसलिए पीड़ित व्यक्ति के पास 1989 अधिनियम की धारा 14ए के तहत अपील का उपाय है। सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के अंतर्निहित क्षेत्राधिकार को लागू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    पीठ ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर आवेदन खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 148, 302, 307 और SC/ST Act की धारा 3 (2) 5 के तहत न्यायालय विशेष न्यायाधीश, एससी/एसटी अधिनियम, लखनऊ में दर्ज मामले की पूरी कार्यवाही को चुनौती दी गई।

    हाईकोर्ट का हाल ही में बड़ी बेंच को रेफरेंस

    जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया, सितंबर, 2023 में हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने बड़े प्रश्न का उल्लेख किया कि क्या सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर आवेदन SC/ST Act के तहत एक मामले की संपूर्ण कार्यवाही को चुनौती देने योग्य है, सुनवाई योग्य है।

    जस्टिस जे जे मुनीर की पीठ ने इस मुद्दे को संदर्भित किया। पीठ ने नोट किया कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर किए गए ऐसे आवेदन की स्थिरता के संबंध में हाईकोर्ट के विरोधाभासी निर्णय हैं।

    अदालत ने कहा कि अनुज कुमार उर्फ संजय और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य 2022 लाइव लॉ (एबी) 264 मामले में हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश की राय देवेंद्र यादव और 7 अन्य बनाम यूपी राज्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 135 मामले में अन्य एकल न्यायाधीश की राय के विपरीत है।

    संदर्भ के लिए, अनुज कुमार के मामले (सुप्रा) में यह माना गया कि SC/ST Act अपराध में विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित समन आदेश के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन दायर नहीं किया जा सकता।

    इसमें आगे कहा गया कि जहां आरोपी समन और संज्ञान आदेश के साथ मामले/चार्जशीट की कार्यवाही रद्द करने की मांग करता है तो इसका उपाय SC/ST Act की धारा 14-ए (1) के तहत अपील के माध्यम से है।

    दूसरी ओर, देवेन्द्र यादव मामले (सुप्रा) में यह माना गया कि SC/ST Act के तहत अपराध के लिए किसी आरोपी को समन जारी करने के आदेश को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन दायर करके चुनौती दी जा सकती।

    जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने रामावतार बनाम मध्य प्रदेश राज्य एलएल 2021 एससी 589 और बी वेंकटेश्वरन बनाम पी बख्तवत्चलम 2023 लाइव लॉ (एससी) 14 के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए ऐसा कहा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि SC/ST Act से उत्पन्न आपराधिक कार्यवाही सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों का उपयोग करके रद्द किया जा सकता है।

    अपीयरेंस

    आवेदक के वकील: त्रिदीप नारायण पांडे, दीपांकर कुमार, प्रिया सिंह।

    विपक्षी पक्ष के वकील: जी.ए., जी.के. दीक्षित, गोपाल कृष्ण दीक्षित।

    केस टाइटल- शिवम कश्यप बनाम स्टेट ऑफ यूपी के माध्यम से. अतिरिक्त. मुख्य सचिव. विभाग गृह मंत्रालय के एल.के.ओ. और दूसरा 2024 लाइव लॉ (एबी) 90 [आवेदन यू/एस 482 नंबर - 2023 का 12798]

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