S.427 CrPC | जुर्माना अदा न करने पर दी गई सजा को मुख्य सजा के साथ-साथ चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती: राजस्थान हाईकोर्ट

Shahadat

11 Jun 2024 10:41 AM GMT

  • S.427 CrPC | जुर्माना अदा न करने पर दी गई सजा को मुख्य सजा के साथ-साथ चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दी गई अन्य मुख्य सजाओं के साथ-साथ चलने का लाभ डिफ़ॉल्ट सजाओं को नहीं मिलता।

    जस्टिस अनिल कुमार उपमन की पीठ ने धारा 427 सीआरपीसी से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जुर्माना/मुआवजा अदा न करने पर दी गई सजाओं के साथ-साथ मुख्य सजाओं को चलाने की अनुमति नहीं है।

    पीठ ने कहा,

    “याचिकाकर्ता को डिफ़ॉल्ट सजाएं काटनी होंगी, क्योंकि धारा 427 सीआरपीसी के प्रावधान जुर्माना/मुआवजा अदा न करने पर दी गई सजाओं के साथ-साथ मुख्य सजाएं चलाने के निर्देश की अनुमति नहीं देते हैं। जुर्माना/मुआवजा अदा न करने पर याचिकाकर्ता को जो सजाएं भुगतने का निर्देश दिया गया, वे इस निर्देश से प्रभावित नहीं होंगी। यदि याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के निर्देशानुसार जुर्माना/मुआवजा अदा नहीं किया तो उक्त सजा लगातार चलेगी।”

    धारा 427 सीआरपीसी में प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को एक के बाद एक दो या अधिक अपराधों में कारावास की सजा सुनाई गई तो इन सभी सजाओं की सजाएं ओवरलैप नहीं होंगी और साथ-साथ चलेंगी। बल्कि, बाद की सजाओं की सजा पहले की सजा की अवधि की समाप्ति पर ही शुरू होगी। इस नियम का अपवाद न्यायालय से यह निर्देश प्राप्त करना है कि ऐसी सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। न्यायालय लाभ प्रदान करने के लिए अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है।

    याचिका ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर की गई, जिसे 3 अलग-अलग मामलों में दोषी ठहराया गया और प्रत्येक में 6 महीने के कारावास की सजा सुनाई गई। याचिकाकर्ता के वकील ने धारा 427, सीआरपीसी के तहत लाभ के लिए बहस करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कई मामलों का हवाला दिया। इन मामलों में यह माना गया कि धारा 427 (2) से पता चलता है कि विधानमंडल का इरादा आजीवन कारावास की सजा पाने वालों को भी यह लाभ देने का है, फिर उन लोगों पर कोई अलग मानदंड लागू नहीं किया जा सकता जिन्हें कम सजा दी गई, जब तक कि ऐसा करने के लिए बाध्यकारी कारण न हों। वकील ने यह भी तर्क दिया कि याचिकाकर्ता पहले ही लगभग 5 महीने जेल में बिता चुका है।

    सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने याचिका को अनुमति दी और कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा इस विवेकाधिकार का प्रयोग न करने से बहुत अन्याय हो रहा है।

    आगे कहा गया,

    “इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने सजाओं की एकरूपता के संबंध में अपने विवेकाधिकार का प्रयोग नहीं किया। इस प्रकार, इस विवेकाधिकार को लागू करने के मुद्दे पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया गया, जिससे बहुत अन्याय हो रहा है। न्याय प्रशासन में यह असंगत नहीं होगा, यदि याचिकाकर्ता को न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के उद्देश्य से धारा 427 सीआरपीसी में निहित विवेकाधिकार का लाभ दिया जाता है।”

    हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जुर्माना/मुआवजा न चुकाने पर याचिकाकर्ता को दी गई सजाएं इस निर्देश से प्रभावित नहीं होंगी। ऐसी डिफ़ॉल्ट सजाएं मूल सजाओं के साथ-साथ चलेंगी। तदनुसार, याचिका को अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: भूर सिंह खारवाल बनाम राजस्थान राज्य

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