'समझ नहीं आता कि UAPA कैसे लगाया': राजस्थान हाईकोर्ट ने सार्वजनिक स्थान पर 'खालिस्तान जिंदाबाद' लिखने के आरोपी को जमानत दी

Shahadat

8 April 2024 5:16 AM GMT

  • समझ नहीं आता कि UAPA कैसे लगाया: राजस्थान हाईकोर्ट ने सार्वजनिक स्थान पर खालिस्तान जिंदाबाद लिखने के आरोपी को जमानत दी

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य के हनुमानगढ़ क्षेत्र में सार्वजनिक स्थान पर दीवार पर "खालिस्तान जिंदाबाद" का नारा लिखने के आरोपी सिख फॉर जस्टिस (SFJ) के दो कथित कार्यकर्ताओं को जमानत दी।

    न्यायालय ने जमानत देते हुए कहा कि यह "समझ में नहीं आता" कि आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA Act) के दंडात्मक प्रावधान कैसे लागू किए गए। न्यायालय ने यह भी कहा कि अभियुक्त के अपराध के बारे में अनुमान लगाने के लिए कोई ठोस परिस्थितियां उपलब्ध नहीं है।

    जस्टिस फरजंद अली की पीठ ने आरोपी [लवप्रीत सिंह और हरमनप्रीत सिंह] को राहत दी, जबकि यह देखते हुए कि इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि मुकदमे को समाप्त होने में लंबा समय लग सकता है और आरोपी याचिकाकर्ताओं को आगे जेल में नहीं रखा जाएगा।

    मूल रूप से पंजाब के रहने वाले आरोपियों पर आईपीसी की धारा 153-ए, 153-बी और 505 और UAPA Act की धारा 10 (ए) और धारा 13(1)(ए) और आईटी अधिनियम की धारा 66-एफ के तहत मामला दर्ज किया गया।

    अपने आदेश में हाईकोर्ट ने जावेद अहमद हजाम बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य 2024 लाइव लॉ (एससी) 208 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का व्यापक रूप से उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की आलोचना करने वाले प्रोफेसर के व्हाट्सएप स्टेटस को जम्मू-कश्मीर के लिए 'काला दिन' बताते हुए उसके खिलाफ आपराधिक मामला रद्द कर दिया।

    जावेद अहमद मामले (सुप्रा) में आईपीसी की धारा 153 ए के तहत आरोपी प्रोफेसर के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार कहा था:

    “उक्त गारंटी के तहत प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर की स्थिति में बदलाव या उस मामले के लिए राज्य के हर फैसले की आलोचना करने का अधिकार है। उन्हें यह कहने का अधिकार है कि वह राज्य के किसी भी निर्णय से नाखुश हैं...जिस दिन निरस्तीकरण हुआ उस दिन को 'काला दिवस' के रूप में वर्णित करना विरोध और पीड़ा की अभिव्यक्ति है...यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 पर उनके व्यक्तिगत दृष्टिकोण और निरस्तीकरण पर उनकी प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति है। यह ऐसा कुछ करने के इरादे को नहीं दर्शाता, जो धारा 153-ए के तहत निषिद्ध है। ज़्यादा से ज़्यादा यह विरोध है, जो अनुच्छेद 19(1)(ए) द्वारा गारंटीकृत उनकी भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक हिस्सा है।

    हाईकोर्ट ने सभी मामलों में संबंधित अदालत के समक्ष अपनी उपस्थिति के लिए ट्रायल जज की संतुष्टि के लिए 50,000/- रुपये के व्यक्तिगत बांड और 25,000/- रुपये की दो जमानत के साथ आरोपी को जमानत दे दी। जब भी ऐसा करने के लिए कहा जाएगा, सुनवाई की तारीखें।

    केस टाइटल- लवप्रीत सिंह और अन्य बनाम राजस्थान राज्य [एस.बी. आपराधिक विविध जमानत आवेदन नंबर 1510/2024]

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