वैध ऋण के विरुद्ध चेक का अनादर धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त, आहर्ता के पास पैसे उधार देने का लाइसेंस होना आवश्यक नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

12 July 2024 11:03 AM GMT

  • वैध ऋण के विरुद्ध चेक का अनादर धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त, आहर्ता के पास पैसे उधार देने का लाइसेंस होना आवश्यक नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि चेक डिसऑनर के मामले में यह देखा जाना चाहिए कि क्या चेक वैध ऋण के संबंध में जारी किया गया था और नोटिस दिए जाने के बाद भी भुगतान किए बिना अनादरित किया गया था।

    जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने कहा कि चेक डिसऑनर के मामले में यह बात प्रासंगिक नहीं है कि शिकायतकर्ता, यानी चेक के आहर्ता के पास ब्याज पर ऋण देने का लाइसेंस था या नहीं।

    इस प्रकार, न्यायालय ने धारा 91 सीआरपीसी के तहत आहर्ता की याचिका को खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें शिकायतकर्ता से आयकर रिटर्न और धन उधार देने का लाइसेंस पेश करने की मांग की गई थी।

    धारा 91 सीआरपीसी में दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के लिए समन जारी करने का प्रावधान है।

    याचिकाकर्ता पर धारा 138, एनआई अधिनियम के तहत चेक डिसऑनर का आरोप लगाया गया था। मामले की कार्यवाही के दौरान, उन्होंने धारा 91, सीआरपीसी के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें शिकायतकर्ता को आयकर रिटर्न और धन उधार देने का लाइसेंस पेश करने के निर्देश देने की मांग की गई थी। इस आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसके बाद ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया गया। इन दो आदेशों के विरुद्ध याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी।

    हाईकोर्ट ने चुनौती दिए गए दोनों आदेशों का अवलोकन किया तथा पाया कि वे वैध तर्क पर आधारित थे। न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सत्र न्यायाधीश ने पाया कि याचिकाकर्ता यह प्रदर्शित करने में विफल रहा कि मांगे गए दस्तावेज किस प्रकार प्रासंगिक तथा मामले के निपटान के लिए आवश्यक थे। न्यायालय ने आगे कहा कि धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत एक मामले में, केवल एक ही तथ्य निर्धारित किया जाना था कि अभियुक्त द्वारा कोई अपराध किया गया था या नहीं, जिसके लिए धन उधार देने का लाइसेंस प्रासंगिक नहीं था।

    इसलिए, न्यायालय ने पाया कि तथ्यों या कानून में कोई अनियमितता नहीं पाई गई, जिसके लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी। तदनुसार, न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया, जिसने फैसला सुनाया कि यह याचिकाकर्ता की केवल एक टालमटोल करने वाली रणनीति थी।

    केस टाइटलः इशाक मोहम्मद बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य

    साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (राजस्थान) 148

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