भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' का नारा लगाने के आरोपी को मिली ज़मानत
Shahadat
27 Nov 2025 4:53 PM IST

पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने मई में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई के दौरान “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” का नारा लगाने के आरोपी एक आदमी को स्थायी ज़मानत दी। कोर्ट ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के सेक्शन 152 के तहत अपराध बनता है या नहीं, यह ट्रायल का मामला होगा।
जस्टिस राजेश भारद्वाज ने कहा,
"आरोपों की सच्चाई का पता ट्रायल खत्म होने के बाद और ट्रायल कोर्ट के सामने दोनों पक्षकारों द्वारा पेश किए जाने वाले सबूतों की जांच के बाद ही लगाया जाएगा।"
यह अर्जी अमीन ने दायर की थी, जिन्होंने पुलिस स्टेशन पिंजौर, जिला पंचकूला में BNS की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले काम) और 197-D (राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने वाले आरोप, दावे) के तहत दर्ज FIR में रेगुलर ज़मानत मांगी थी। याचिकाकर्ता 10 मई 2025 से कस्टडी में था।
शिकायतकर्ता नीतीश कुमार की दर्ज FIR के अनुसार, अमीन ने कथित तौर पर उस समय “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” का नारा लगाया था, जब दोनों देश युद्ध में थे, जो शिकायतकर्ता के अनुसार, देशद्रोह का काम था। इन आरोपों के आधार पर पुलिस ने 09 मई, 2025 को FIR नंबर 184 दर्ज की और अगले दिन याचिकाकर्ता को गिरफ्तार कर लिया। जांच पूरी होने के बाद चालान पेश किया गया।
याचिकाकर्ता की ज़मानत याचिका पहले एडिशनल सेशंस जज, पंचकूला ने 13 अगस्त 2025 को खारिज कर दी थी।
याचिकाकर्ता के सीनियर वकील क्षितिज शर्मा ने तर्क दिया कि FIR राजनीति से प्रेरित थी, यह आरोप लगाते हुए कि शिकायतकर्ता भारतीय किसान संघ का जनरल सेक्रेटरी था। यह तर्क दिया गया कि FIR को सिर्फ़ पढ़ने से भी BNS की धारा 152 नहीं बनता है और प्रॉसिक्यूशन खुद ही टिक नहीं पाता है। इस तरह के भाषण पर मुकदमा चलाने की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने के लिए किशोरचंद्र वांगखेमचा बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया और एस.जी. वोम्बटकेरे बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया गया।
यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं है, जांच पूरी हो चुकी है और वह पहले ही छह महीने से ज़्यादा समय से जेल में है।
इस दलील का विरोध करते हुए राज्य ने तर्क दिया कि जांच के दौरान आरोपों की पूरी तरह से पुष्टि हो गई और याचिकाकर्ता पर लगाए गए आरोप दोनों देशों के बीच युद्ध के समय की स्थिति के दौरान हुए थे। यह कहा गया कि हालांकि चालान फाइल कर दिया गया, लेकिन अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं। इसलिए बेल का कोई आधार नहीं बनता।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता 6 महीने और 11 दिन से कस्टडी में है और किसी दूसरे मामले में शामिल नहीं है। प्रॉसिक्यूशन की मेरिट या BNS की धारा 152 के लागू होने पर टिप्पणी करने से बचते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों का ट्रायल में मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
Title: Ameen v. State of Haryana

