पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पत्नी के विवाह पूर्व संबंध छिपाने के आरोप में पति की शादी रद्द करने की याचिका खारिज की, कहा-धोखाधड़ी साबित नहीं हुई
Shahadat
25 July 2025 10:52 AM IST

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक पति की याचिका खारिज की, जिसमें उसने अपनी पत्नी द्वारा विवाह पूर्व संबंध छिपाने के आरोप में अपनी शादी रद्द करने की मांग की थी।
पति का कहना था कि शादी से पहले अलग मुलाकात में उसने पत्नी से स्पष्ट रूप से पूछा था कि क्या वह किसी रिश्ते में है, जिससे उसने इनकार कर दिया था। हालांकि, शादी के बाद एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वीडियो पोस्ट किया गया, जिसमें कथित तौर पर उसे किसी अन्य पुरुष के साथ आपत्तिजनक स्थिति में दिखाया गया था।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस रोहित कपूर की खंडपीठ ने कहा,
"अलग-अलग मुलाकात के समय और विवाह से पहले प्रेमालाप की अवधि के दौरान महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाने के संबंध में साक्ष्य अपीलकर्ता द्वारा अकेले ही प्रस्तुत किए जा सकते थे, क्योंकि ये तथ्य उसकी व्यक्तिगत जानकारी में थे। गवाह के कठघरे में न आने के कारण साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 114 के दृष्टांत (छ) के अनुसार उसके विरुद्ध प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जाना आवश्यक है।"
खंडपीठ की ओर से बोलते हुए जस्टिस रोहित कपूर ने कहा कि अपीलकर्ता कोई भी ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करके यह साबित करने में विफल रहा है कि उसकी सहमति धोखाधड़ी से प्राप्त की गई।
अदालत ने आगे कहा,
"अपीलकर्ता द्वारा यह साबित नहीं किया गया कि समग्र रूप से लिए गए साक्ष्य निष्कर्ष को उचित रूप से उचित नहीं ठहरा सकते हैं, या सिद्ध परिस्थितियों से उत्पन्न असंभावना का कोई तत्व मौजूद है, जो पारिवारिक न्यायालय के निष्कर्ष से अधिक महत्वपूर्ण है।"
न्यायालय, फतेहगढ़ साहिब स्थित फैमिली कोर्ट द्वारा पारित उस निर्णय के विरुद्ध पति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 12(1)(सी) के तहत पति द्वारा पत्नी के साथ अपने विवाह को रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी गई थी।
संक्षेप में तथ्य
इस जोड़े का विवाह 2016 में हुआ था और वे अपने गांव में पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं। उनके विवाह से कोई संतान नहीं हुई। अपीलकर्ता ने आरोप लगाया कि विवाह संपन्न होने से पहले उसने अपनी पत्नी से स्पष्ट रूप से पूछा था कि क्या उसका किसी के साथ कोई संबंध है। हालांकि, उसने इससे इनकार कर दिया था। नवंबर, 2017 में सोशल मीडिया और कई अन्य वेबसाइटों पर एक वीडियो पोस्ट किया गया, जिसमें वह और उसका कथित प्रेमी आपत्तिजनक स्थिति में दिखाई दे रहे थे।
पत्नी ने कथित प्रेमी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ बलात्कार और जबरन वसूली का मामला भी दर्ज कराया, जिसमें उसने कथित तौर पर 2012 से उसके साथ अपने संबंधों को स्वीकार किया और यह भी स्वीकार किया कि उसने अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों को इस संबंध के बारे में नहीं बताया था।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 (1) (सी) के तहत याचिका दायर करके पूर्व संबंधों को छिपाने के आरोप में धोखाधड़ी के आधार पर विवाह रद्द करने की मांग की गई। पति विदेश में रहते हुए मामले को चलाने के लिए अपनी माँ को मुख्तारनामा सौंप गया।
तर्कों पर विचार करने के बाद फैमिली कोर्ट ने यह राय दी कि अपीलकर्ता पति, पत्नी द्वारा तथ्यों को छिपाने के कारण धोखाधड़ी से अपनी सहमति प्राप्त करने के आरोपों को साबित करने में विफल रहा है।
हाईकोर्ट ने कहा,
"आलोचना किए गए निर्णय और डिक्री में कोई त्रुटि या अवैधता नहीं है।"
न्यायालय ने कहा कि जिस आधार पर अपीलकर्ता ने धारा 12(1)(सी) के तहत विवाह को अमान्य घोषित करने की डिक्री मांगी थी, वह यह था कि प्रतिवादी नंबर 1 के साथ उसके विवाह से पहले एक 'अलग बैठक' हुई थी। उस समय उसने अपनी पत्नी से स्पष्ट रूप से पूछा था कि क्या उसका किसी अन्य व्यक्ति के साथ कोई संबंध है या वह किसी अन्य व्यक्ति को पसंद करती है।
जस्टिस कपूर ने कहा कि निस्संदेह अपीलकर्ता स्वयं कभी भी गवाह के कठघरे में नहीं आया और उपरोक्त आरोपों के संबंध में पत्नी को क्रॉस एक्जामिनेशन का कोई अवसर नहीं दिया गया, जो केवल अपीलकर्ता के ही विशेष ज्ञान में हैं।
साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 (न्यायालय कुछ तथ्यों के अस्तित्व को मान सकता है) का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि चूंकि पति गवाही देने के लिए कठघरे में नहीं आया, इसलिए साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 114 के दृष्टांत (छ) के अनुसार उसके विरुद्ध प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जाना आवश्यक है।
दृष्टांत (छ) में प्रावधान है कि जो साक्ष्य प्रस्तुत किया जा सकता है और प्रस्तुत नहीं किया जाता, वह यदि प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे रोकने वाले व्यक्ति के लिए प्रतिकूल होगा।
रूपिंदर मान बनाम गुरप्रताप सिंह” 2011 एससीसी ऑनलाइन पी एंड एच 17109 का भी हवाला दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 'मन कौर (मृत) बाई एलआर बनाम हरतार सिंह संघा', 2010 (10) एससीसी 512 का हवाला देते हुए इस बात पर ज़ोर दिया,
"मुख्तारनामा धारक, अपने प्रधान द्वारा किए गए कार्यों या प्रधान के लेन-देन या व्यवहार के लिए, जिसके बारे में केवल प्रधान को ही व्यक्तिगत जानकारी है, अपने प्रधान की जगह गवाही नहीं दे सकता या साक्ष्य नहीं दे सकता।"
न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अपीलकर्ता की मुख्तारनामा धारक, जो उसकी माँ है, उन्होंने भी गवाह के रूप में पेश होते हुए अपनी क्रॉस एक्जामिनेशन में स्वीकार किया कि विवाह से पहले प्रतिवादी नंबर 1 द्वारा कोई तथ्य नहीं छिपाया गया था।
अदालत ने आगे कहा,
"अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत उक्त गवाह ने यह भी स्वीकार किया कि प्रतिवादी संख्या 1 (पत्नी) ने अपीलकर्ता के साथ विवाह के बाद उनके साथ कोई धोखाधड़ी नहीं की है।"
उपरोक्त के आलोक में याचिका खारिज कर दी गई।
Title: XXXX v. XXXX

