माता-पिता के बच्चे से मिलने के अधिकार से बच्चे का विकास प्रभावित नहीं होना चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट
Shahadat
13 Oct 2025 9:35 PM IST

मद्रास हाईकोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि माता-पिता के बच्चे से मिलने के अधिकार पर निर्णय लेते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे की स्कूली शिक्षा और उसके शारीरिक, नैतिक और भावनात्मक विकास पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
जस्टिस एम. जोतिरमन ने दोहराया कि बच्चे से मिलने के अधिकार से संबंधित मामलों पर विचार करते समय कोर्ट का सर्वोपरि विचार बच्चे के कल्याण पर होना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा कि यद्यपि माता-पिता को बच्चे से मिलने का अधिकार है, लेकिन इससे बच्चे के विकास में बाधा नहीं आनी चाहिए।
अदालत ने कहा,
"कोर्ट को जैविक माता-पिता को कानून के अनुसार मुलाकात का अधिकार सुनिश्चित करना होगा। जब बच्चे की कस्टडी माता-पिता में से किसी एक को सौंपी जाती है तो दूसरे को मुलाकात का अधिकार देते समय बच्चे की भलाई को ध्यान में रखा जाना चाहिए। मुलाकात के अधिकार देने से संबंधित मामलों से निपटने में केवल बच्चे का कल्याण ही सर्वोपरि है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रतिवादी/पिता मुलाकात के अधिकार के हकदार हैं। साथ ही इससे बच्चे की स्कूली शिक्षा, शारीरिक, नैतिक, भावनात्मक और बौद्धिक विकास में बाधा नहीं आनी चाहिए।"
अदालत एक माँ द्वारा दायर दीवानी पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी। माँ ने शुरू में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) और धारा 25 के तहत तलाक और स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 75,00,000 रुपये की राशि देने के लिए आवेदन दायर किया था। जब मामला लंबित था, तब पिता ने नाबालिग बेटी से मिलने के अधिकार के लिए अधिनियम की धारा 26 के तहत एक आवेदन दायर किया। अदालत ने पिता के आवेदन को स्वीकार कर लिया और बच्चे को हर महीने के पहले और तीसरे शनिवार को सुबह 11:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे के बीच चेन्नई स्थित फैमिली कोर्ट से संबद्ध बाल देखभाल केंद्र में पेश करने का निर्देश दिया। माँ ने इस आदेश को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी।
माँ ने दलील दी कि हालांकि उसने नाबालिग बेटी के भरण-पोषण के लिए फरवरी 2023 में आवेदन दायर किया था। हालांकि, पिता ने अब तक बच्चे के भरण-पोषण के लिए एक भी रुपया नहीं दिया।
माँ ने यह भी बताया कि वह अपनी बेटी के साथ होसुर में रहती है और फैमिली कोर्ट में सुनवाई में शामिल होने के लिए उसे काम से छुट्टी लेनी पड़ती है। यह दलील दी गई कि यह बेहद बोझिल है। इससे नाज़ुक बच्ची पर गंभीर दबाव पड़ रहा है, जिसे हर शनिवार होसुर से चेन्नई आना पड़ता है ताकि पिता बच्ची से मिल सके। माँ ने तर्क दिया कि मुलाकात के अधिकार की अनुमति देने वाला आदेश समता और न्याय के विरुद्ध है।
यह तर्क दिया गया कि पिता की सहायता के बिना बच्चे का पालन-पोषण कर रही माँ को बिना किसी ज़िम्मेदारी के अपने बच्चे को अपने खर्चे पर चेन्नई लाने का निर्देश नहीं दिया जाना चाहिए ताकि पिता बच्चे से मिल सके।
दूसरी ओर, पिता ने तर्क दिया कि महिला की ओर से उसकी जान को खतरा है, क्योंकि उसके पिता इलाके में प्रभावशाली व्यक्ति है और होसुर जाने पर उनकी जान को खतरा था। उन्होंने तर्क दिया कि वे वेल्लोर में बच्चे से मिलने के लिए तैयार थे, जो उन दोनों के लिए एक साझा स्थान था।
कोर्ट ने कहा कि मुलाकात का अधिकार देते समय अदालतों को माता-पिता की उपयुक्त वातावरण प्रदान करने की क्षमता का आकलन करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि बच्चे की उम्र, परिपक्वता और उसकी इच्छाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। साथ ही बच्चे के सर्वोत्तम हित को माता-पिता या अभिभावकों के सर्वोत्तम हित से ऊपर रखा जाना चाहिए।
वर्तमान मामले में कोर्ट ने कहा कि यदि पिता के मुलाकात के अधिकार को सुविधाजनक बनाने के लिए बच्चे को होसुर से चेन्नई जाने की अनुमति दी जाती है तो उसे शारीरिक और मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ेगा। इस प्रकार, कोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश संशोधित किया तथा बच्चे को कृष्णागिरी स्थित फैमिली कोर्ट से संबद्ध बाल देखभाल केन्द्र के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया।
Case Title: P v. S

