क्या सरकारी कर्मचारी की SC/ST समुदाय की स्थिति रिटायरमेंट के बाद सत्यापित की जा सकती है? मद्रास हाईकोर्ट ने मामला बड़ी बेंच को भेजा

Shahadat

11 Nov 2025 7:00 PM IST

  • क्या सरकारी कर्मचारी की SC/ST समुदाय की स्थिति रिटायरमेंट के बाद सत्यापित की जा सकती है? मद्रास हाईकोर्ट ने मामला बड़ी बेंच को भेजा

    मद्रास हाईकोर्ट ने इस प्रश्न को बड़ी बेंच को भेज दिया कि क्या किसी कर्मचारी के समुदाय प्रमाण पत्र का रिटायरमेंट के बाद सत्यापन किया जा सकता है।

    चीफ जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस जी अरुल मुरुगन की खंडपीठ ने न्यायालय की समन्वय पीठों द्वारा लिए गए परस्पर विरोधी विचारों को देखते हुए इस मुद्दे को बड़ी बेंच को भेजना उचित समझा।

    अतः, न्यायालय ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया कि वह प्रशासनिक पक्ष के चीफ जस्टिस के समक्ष मामला प्रस्तुत करें ताकि निम्नलिखित मुद्दों पर विचार करने के लिए एक वृहद पीठ का गठन किया जा सके:

    1) क्या रिटायरमेंट के बाद किसी कर्मचारी के समुदाय प्रमाण पत्र या जाति की स्थिति की वास्तविकता का सत्यापन अनुमत है?

    2) क्या किसी कर्मचारी के समुदाय प्रमाण पत्र या जाति की स्थिति की वास्तविकता का सत्यापन उन मामलों में अनुमत है, जहां कर्मचारी को 1995 से पहले समुदाय प्रमाण पत्र जारी किया गया या उसे रोजगार दिया गया?

    3) क्या रिटायरमेंट से पहले शुरू किया गया सामुदायिक प्रमाण पत्र या जाति की स्थिति का सत्यापन कर्मचारी की रिटायरमेंट के बाद भी जारी रखा जा सकता है?

    गौरतलब है कि इसी साल अगस्त में मद्रास हाईकोर्ट की अन्य खंडपीठ ने इसी मुद्दे पर विभाजित फैसला सुनाया था। जस्टिस निशा बानू ने कहा था कि सामुदायिक प्रमाण पत्र का सत्यापन दोबारा शुरू करना पुनः मुकदमेबाजी के समान होगा, जबकि जस्टिस एम. जोतिरमन ने कहा था कि एक बार सत्यापन शुरू हो जाने के बाद इसे उसके समापन तक जारी रहना चाहिए।

    इसी तरह का एक मामला वर्तमान पीठ के समक्ष भी आया। याचिकाकर्ता ने उसे जारी किए गए कारण बताओ नोटिस की वैधता और उसकी रिटायरमेंट के बाद उसकी जाति की स्थिति की वास्तविकता की जांच जारी रखने को चुनौती दी थी।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि हालांकि जांच उसकी रिटायरमेंट से पहले शुरू की गई थी लेकिन उसकी रिटायरमेंट के बाद इसे जारी नहीं रखा जा सकता। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उन्हें सामुदायिक प्रमाण पत्र 1995 से पहले जारी किया गया था और लोकसभा सचिवालय के संयुक्त सचिव द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, तमिलनाडु राज्य स्तरीय जांच समिति या विभागीय अधिकारी उनकी जातिगत स्थिति की जाँच शुरू नहीं कर सकते।

    अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर परस्पर विरोधी विचार हैं। अदालत ने कहा कि 2021 में इसी मुद्दे पर एक खंडपीठ के समक्ष एक याचिका आई थी। चूंकि जजों की राय अलग थी, इसलिए मामला तीसरे जज को भेज दिया गया, जिन्होंने कहा कि 1995 से पहले जारी किए गए फर्जी या झूठे सामुदायिक प्रमाण पत्र की जांच पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

    अदालत ने आगे कहा कि एक अन्य कार्यवाही में एक अन्य पीठ ने माना था कि रिटायरमेंट के बाद सामुदायिक प्रमाण पत्र की वास्तविकता का सत्यापन तब स्वीकार्य नहीं होगा, जब जांच शुरू करने में देरी नियोक्ता के कारण हुई हो। इसी तरह का विचार एक अन्य खंडपीठ ने भी व्यक्त किया, जिसने कहा कि रिटायरमेंट के बाद सामुदायिक प्रमाण पत्र/जातिगत स्थिति की वास्तविकता की किसी भी जांच की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि दो मामलों में इस मुद्दे को तीसरे जज की राय के लिए भेजा गया था।

    इसलिए भिन्न-भिन्न मतों को देखते हुए कोर्ट ने मामले को एक बड़ी पीठ को भेजना उचित समझा।

    Case Title: R Gurusamy v. The Tamil Nadu State Level Scrutiny Committee

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