पत्नी द्वारा खुद को आग लगाने के बाद पति के परिवार पर आरोप लगाना क्रूरता के समान: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने तलाक मंजूर किया

Shahadat

8 Sept 2025 11:45 AM IST

  • पत्नी द्वारा खुद को आग लगाने के बाद पति के परिवार पर आरोप लगाना क्रूरता के समान: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने तलाक मंजूर किया

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) के तहत क्रूरता के आधार पर यह देखते हुए व्यक्ति को तलाक की अनुमति दी कि उसकी पत्नी ने "निराशा के क्षण में" खुद को आग लगा ली थी। बाद में बिना कोई विश्वसनीय सबूत दिए, इसके लिए उसके रिश्तेदारों को दोषी ठहराया।

    ऐसा करते हुए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए यह भी कहा कि पत्नी ने कथित कृत्य के लिए पति के रिश्तेदारों के खिलाफ कभी कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं कराया। न्यायालय ने कहा कि ऐसा "भयानक कृत्य" ही यह मानने के लिए पर्याप्त था कि पत्नी ने पति पर मानसिक क्रूरता की थी। फैमिली कोर्ट उन तथ्यों को समझने में विफल रहा, जो स्पष्ट है।

    जस्टिस विशाल धगत और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने कहा;

    "समग्र परिप्रेक्ष्य में हम पाते हैं कि प्रतिवादी/पत्नी को जलने की दर्दनाक घटना का सामना करना पड़ा, जिसके लिए वह अपीलकर्ता/पति के रिश्तेदारों को ज़िम्मेदार ठहराती है। उसने इस बिंदु पर कोई विश्वसनीय सबूत पेश नहीं किया और दोषियों के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू करने में भी विफल रही है। इस लापरवाह रवैये के लिए दिया गया बहाना भी आकर्षक नहीं है, क्योंकि समाज के संबंधित सम्मानित सदस्यों को न तो निचली अदालत के समक्ष गवाह के रूप में पेश किया गया और न ही उनके माध्यम से विवाद को सुलझाने के लिए निजी तौर पर उनसे संपर्क किया गया। दूसरी ओर, अपीलकर्ता/पति तथ्यों और साक्ष्यों के माध्यम से यह स्थापित करने में सुसंगत रहे हैं कि जलने की घटना आत्मदाह का परिणाम थी। हमारे पास इस गवाही पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। एक पति या पत्नी द्वारा इतना कठोर कदम उठाना अपने आप में दूसरे पति या पत्नी में भय और डर पैदा करने के लिए पर्याप्त है ताकि वैवाहिक संबंध में कोई बंधन न बने।"

    इसमें आगे कहा गया:

    "वर्तमान मामले में स्थापित तथ्यों से पता चलता है कि निराशा के एक क्षण में प्रतिवादी/पत्नी ने खुद को आग लगा ली। बाद में पति के रिश्तेदारों पर दोष मढ़ दिया। यह भयानक कृत्य अपने आप में यह मानने के लिए पर्याप्त है कि उसने अपीलकर्ता/पति के साथ मानसिक क्रूरता की। निचली अदालत ने रिकॉर्ड में मौजूद तथ्यों को न समझकर और उससे भी ज़्यादा, उन्हें अपनी धारणाओं से बदलकर गलती की है। इसलिए विवादित निर्णय और डिक्री में हस्तक्षेप का एक अच्छा मामला बनता है। तदनुसार, हम इस प्रथम अपील को स्वीकार करते हैं और विवादित निर्णय और डिक्री को रद्द करते हैं।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    हाईकोर्ट ने पति की अपील पर यह आदेश पारित किया, जिसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई। इसने क्रूरता के आधार पर तलाक देने से इनकार कर दिया था।

    पति ने दावा किया कि अप्रैल 2003 में उनकी शादी के बाद से ही पत्नी उसके प्रति 'घोर नापसंदगी' रखती थी। उसने कथित तौर पर उसके साथ बुरा व्यवहार किया और छोटी-छोटी बातों पर उसे धमकाया। पत्नी ने कथित तौर पर 'अपने कपड़ों में आग लगा ली', जिसे पति और उसके परिवार ने सफलतापूर्वक बुझा दिया। यह दावा किया गया कि जब पत्नी गर्भवती हुई तो उसने पति पर उसे उसके माता-पिता के घर भेजने के लिए दबाव डाला।

    इसके अतिरिक्त पति ने दावा किया कि गर्भावस्था के आठवें महीने में वह उसे 'जबरन संस्थागत प्रसव के लिए वापस ले आया' और उसे एक नर्सिंग होम में भर्ती कराया, जहां उसने एक बच्ची को जन्म दिया। एक महीने बाद वह बच्चे को लेकर अपने माता-पिता के घर चली गई।

    पति ने आरोप लगाया कि वह अपनी पत्नी को उसके ससुराल वापस आने के लिए कहने अपने ससुराल गया। उसने तर्क दिया कि उसकी पत्नी ने 20 जून, 2005 को मिट्टी का तेल डालकर खुद को जलाने की कोशिश की। इसके बाद पत्नी एक महीने तक अस्पताल में भर्ती रही। इसके बाद पति ने क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर की।

    तलाक की अर्जी पर विरोध जताते हुए पत्नी ने दावा किया कि शादी के बाद से ही उसके पति और ससुराल वाले उसे परेशान कर रहे थे। दलील दी गई कि 'साड़ी में आग लगाकर आत्महत्या करने का झूठा आरोप आपराधिक मामले में लगाए गए आरोपों का खंडन करने के इरादे से लगाया गया।' उसने आगे दावा किया कि बच्चे के जन्म के बाद पति और ससुराल वाले 'विरोधी' हो गए। उसने यह भी आरोप लगाया कि पति की माँ, भाई और भाभी ने उस पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी। उसने दावा किया कि पड़ोसियों ने उसे बचाया और अस्पताल ले गए।

    इसके अलावा, पत्नी ने दावा किया कि 'समाज के प्रतिष्ठित सदस्यों की सलाह' के बाद उसने कोई आपराधिक मामला शुरू न करने का फैसला किया। पत्नी ने तलाक की अर्जी खारिज करने की भी गुहार लगाई और आरोप लगाया कि जलने के कारण उसकी शारीरिक बनावट में आए बदलाव के बाद पति 'इस रिश्ते से बाहर निकलने' की कोशिश कर रहा है।

    निष्कर्ष

    खंडपीठ ने पड़ोसियों द्वारा बचाए जाने के पत्नी के दावों को खारिज कर दिया और कहा कि "उसने अपने दावे को बल देने के लिए किसी भी पड़ोसी से पूछताछ नहीं की"।

    इसके अतिरिक्त, खंडपीठ ने FIR दर्ज न करने के पत्नी के तर्कों को भी खारिज कर दिया। साथ ही कहा कि घटना के बाद "यदि पक्षों के बीच संबंध सामान्य हो जाते तो उसका स्पष्टीकरण कुछ मायने रखता", लेकिन हालात और भी बदतर हो गए।

    इसके अलावा, खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट द्वारा मध्यस्थता के दौरान दंपत्ति के आचरण को आदेश पत्र में दर्ज करने पर भी आपत्ति जताई। मोतीराम एवं अन्य बनाम अशोक कुमार एवं अन्य (2011) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए खंडपीठ ने दोहराया, "मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी तरह गोपनीय होती है। मध्यस्थ को पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित समझौता पत्र न्यायालय को तभी भेजना चाहिए, जब मध्यस्थता सफल हो और मध्यस्थता कार्यवाही के दौरान क्या हुआ, इसका उल्लेख नहीं करना चाहिए।"

    हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के निष्कर्षों की "रिकॉर्ड में उपलब्ध तथ्यों और साक्ष्यों के दायरे में ही जांच की जानी चाहिए, उससे आगे कुछ नहीं"।

    अपील स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने HMA की धारा 13(1)(आईए) के तहत उसे तलाक दे दिया।

    Case Title: HM v R (FA-133-2007)

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