क्या विवाहित जोड़े के बीच अलगाव का समझौता तलाक के बराबर है? मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दिया जवाब

Shahadat

1 Jun 2024 1:21 PM GMT

  • क्या विवाहित जोड़े के बीच अलगाव का समझौता तलाक के बराबर है? मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दिया जवाब

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जज जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की अगुवाई वाली एकल पीठ ने हाल ही में कहा कि पति और पत्नी द्वारा हस्ताक्षरित अलग-अलग तलाक समझौते की कोई कानूनी वैधता नहीं है और यह तलाक के बराबर नहीं है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    यह मामला 2023 में पत्नी द्वारा अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज किए गए मामला रद्द करने से संबंधित है। पति और पत्नी की शादी 21/04/2022 को हुई और बाद में पत्नी ने आरोप लगाया कि उसे उसके पति और ससुराल वालों द्वारा दहेज के लिए ताने दिए गए। नतीजतन, वह पति और ससुराल वालों की क्रूरता और उत्पीड़न के कारण अपने माता-पिता के साथ रहने को मजबूर है। इसलिए पति और ससुराल वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए, 506 और 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

    आवेदक की दलीलें

    आवेदकों अर्थात् पति और उसके माता-पिता द्वारा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर को चुनौती देते हुए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत याचिका दायर की गई। आवेदकों ने प्रस्तुत किया कि पति और पत्नी के बीच आपसी समझौते के तहत दिनांक 22/06/2022 को तलाक हो गया। बाद में 20/12/2023 को एफआईआर दर्ज की गई। इसलिए उन्होंने इस तथ्य के आधार पर एफआईआर को चुनौती दी कि एफआईआर दर्ज करने के समय पति और पत्नी के बीच कोई संबंध नहीं था।

    आवेदकों ने यह भी प्रस्तुत किया कि पत्नी ने पति के साथ पत्नी के विवाह को शून्य और अमान्य घोषित करने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत आवेदन भी दायर किया।

    इसके अलावा, आवेदकों ने तर्क दिया कि पत्नी ने सहमति व्यक्त की थी कि वह आवेदक के खिलाफ कोई न्यायिक कार्रवाई नहीं करेगी।

    न्यायालय का अवलोकन

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जज जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने कहा कि आवेदकों की इस दलील पर भरोसा नहीं किया जा सकता कि पक्षों ने अलग-अलग तलाक के लिए समझौता किया है।

    न्यायालय ने कहा,

    “अलगाव के समझौते को कानून की नजर में कोई पवित्रता नहीं है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि पक्षों के बीच कोई तलाक हुआ है।”

    इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया,

    “अन्यथा भी, यदि कोई तलाक हुआ है तो भी तलाक से पहले शिकायतकर्ता के साथ की गई क्रूरता के संबंध में आईपीसी की धारा 498-ए के तहत एफआईआर दर्ज की जा सकती है, लेकिन वर्तमान मामले में ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई, क्योंकि पक्षों के बीच कोई तलाक नहीं हुआ।”

    न्यायालय ने उल्लेख किया कि पक्षकार धर्म से मुस्लिम नहीं हैं, इसलिए न्यायालय में आए बिना आपसी सहमति से तलाक नहीं हो सकता।

    न्यायालय ने आवेदकों के वकील द्वारा उठाए गए तर्क को भी संबोधित किया, जिसमें तर्क दिया गया कि पत्नी ने उनके खिलाफ कोई न्यायिक कार्रवाई नहीं करने पर सहमति व्यक्त की। न्यायालय ने इस तर्क को निर्णायक रूप से खारिज कर दिया, इसे गलत और अनुबंध अधिनियम की धारा 28 के प्रावधानों के विपरीत बताया।

    न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि वह किसी व्यक्ति को कानूनी कार्रवाई करने से रोकने के लिए विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 41 के तहत कोई निषेधाज्ञा नहीं दे सकता।

    इसके अलावा, न्यायालय ने तारा पारख बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य के मामले का हवाला दिया, जिसकी रिपोर्ट (2015) 11 एससीसी 260 में की गई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह सवाल कि अपीलकर्ता (पत्नी) को परेशान किया गया या नहीं। उसके साथ क्रूरता से पेश आया गया, ट्रायल का विषय है, लेकिन इस स्तर पर यह नहीं कहा जा सकता कि कोई मामला नहीं बनता है। इस प्रकार, परीक्षण से पहले कार्यवाही रद्द करना स्वीकार्य नहीं है।

    निष्कर्ष

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पाया कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों सहित मामले के सभी प्रासंगिक तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद हस्तक्षेप का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है। इस प्रकार, उपर्युक्त टिप्पणियों के आधार पर न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।

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