क्या भारत के बाहर हुई हिरासत को धारा 428 सीआरपीसी के तहत सजा में समायोजित किया जा सकता है?
Himanshu Mishra
10 Feb 2025 11:58 AM

सुप्रीम कोर्ट ने अबू सलेम अब्दुल कय्यूम अंसारी बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न (Legal Question) पर विचार किया। यह प्रश्न था कि क्या किसी आरोपी (Accused) को किसी विदेशी (Foreign) देश में बिताए गए हिरासत (Detention) के समय को भारतीय अदालत द्वारा दी गई सजा में समायोजित (Set-Off) करने का अधिकार मिल सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि धारा 428 सीआरपीसी (CrPC) केवल भारत में बिताए गए हिरासत (Detention) के समय पर लागू होती है। किसी अन्य देश में किसी अन्य मामले में हुई हिरासत का भारतीय अदालतों में सजा की गणना (Sentence Calculation) में कोई प्रभाव नहीं होगा। यह फैसला न केवल प्रत्यार्पित (Extradited) व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय आपराधिक कानून (Criminal Law) की क्षेत्रीय सीमा (Territorial Jurisdiction) को भी स्पष्ट करता है।
धारा 428 सीआरपीसी (CrPC) की समझ (Understanding Section 428 CrPC)
धारा 428 सीआरपीसी यह प्रावधान (Provision) करती है कि किसी आरोपी ने मुकदमे (Trial) से पहले हिरासत (Detention) में जो समय बिताया है, उसे उसकी सजा की अवधि (Sentence Duration) में जोड़ा जाएगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी आरोपी अपनी सजा से अधिक समय जेल में न गुजारे।
धारा 428 में उल्लेखित है:
"जहां किसी आरोपी को दोषसिद्धि (Conviction) के बाद कारावास (Imprisonment) की सजा दी जाती है, तो उसके द्वारा अन्वेषण (Investigation), जांच (Inquiry) या मुकदमे (Trial) के दौरान बिताया गया हिरासत (Detention) का समय उसकी सजा की अवधि में समायोजित (Set-Off) किया जाएगा।"
इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य कैदियों को राहत देना है ताकि उनकी सजा की अवधि अनावश्यक रूप से न बढ़े। अबू सलेम के मामले में प्रश्न यह था कि क्या यह प्रावधान विदेश में बिताए गए हिरासत (Detention) के समय पर भी लागू होगा?
सुप्रीम कोर्ट की धारा 428 सीआरपीसी (CrPC) की व्याख्या (Supreme Court's Interpretation of Section 428 CrPC)
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 428 सीआरपीसी (CrPC) केवल भारत के भीतर बिताए गए हिरासत (Detention) के समय पर लागू होती है।
1. भारतीय कानून की क्षेत्रीय सीमा (Territorial Jurisdiction of Indian Law)
भारतीय आपराधिक कानून (Criminal Law) की कोई भी विदेशी देश पर अतिरिक्त क्षेत्रीय (Extra-Territorial) प्रभाव नहीं होता है। यदि किसी व्यक्ति को किसी अन्य देश में किसी अन्य अपराध के लिए हिरासत में लिया गया है, तो वह भारतीय कानूनी प्रणाली (Indian Legal System) के तहत दी गई सजा में नहीं गिना जा सकता।
2. पूर्ववर्ती न्यायिक फैसलों (Judicial Precedents) का समर्थन नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने पहले के कई फैसलों को उद्धृत (Cited) किया, जिनमें यह स्पष्ट किया गया कि धारा 428 का लाभ केवल उन्हीं मामलों में मिलेगा, जहां हिरासत (Detention) उसी मुकदमे (Trial) से संबंधित हो।
3. दोहरी छूट (Double Benefit) की अनुमति नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि विदेश में बिताए गए समय को भारत में दी गई सजा में समायोजित (Set-Off) किया जाता है, तो यह आरोपी को दोहरा लाभ (Double Benefit) देने के समान होगा, जो कि कानून द्वारा स्वीकार्य नहीं है।
4. विदेशी हिरासत और भारतीय हिरासत (Foreign Detention vs Indian Detention) में अंतर
अबू सलेम को पुर्तगाल (Portugal) में फर्जी पासपोर्ट (Fake Passport) रखने के अपराध में सजा दी गई थी। यह भारतीय मामलों से संबंधित नहीं था। इसलिए, विदेश में बिताए गए हिरासत (Detention) के समय को भारत में दी गई सजा के साथ जोड़ा नहीं जा सकता।
अबू सलेम के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उद्धृत महत्वपूर्ण फैसले (Important Judgments Cited in Abu Salem's Case)
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में निम्नलिखित मामलों को संदर्भित (Referenced) किया:
1. रघुबीर सिंह बनाम हरियाणा राज्य (1984) 4 SCC 348
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धारा 428 CrPC का लाभ तभी मिलेगा जब हिरासत (Detention) उसी मामले में हो, जिसमें बाद में सजा दी गई हो।
2. नजाकत अली मुबारक अली बनाम महाराष्ट्र राज्य (2001) 6 SCC 311
इस मामले में यह स्पष्ट किया गया कि यदि कोई आरोपी भारत में दो अलग-अलग मामलों में हिरासत (Detention) में है, तो भी उसे सजा में छूट मिल सकती है। लेकिन यह लाभ केवल भारत में बिताए गए हिरासत (Detention) के लिए ही मिलेगा।
3. अतुल मनुभाई पारेख बनाम CBI (2010) 1 SCC 603
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 428 CrPC केवल भारतीय न्यायिक क्षेत्र (Indian Jurisdiction) के अंतर्गत बिताए गए हिरासत (Detention) के समय पर लागू होती है।
4. एलन जॉन वॉटर्स बनाम महाराष्ट्र राज्य (2012 SCC Online Bom 389)
इस मामले में अमेरिका में एक रेड कॉर्नर नोटिस (Red Corner Notice) के तहत गिरफ्तार किए गए आरोपी को हिरासत (Detention) का लाभ दिया गया था, क्योंकि उसकी हिरासत भारतीय मामले से सीधे जुड़ी हुई थी। लेकिन अबू सलेम के मामले में पुर्तगाल में उसकी हिरासत भारतीय अपराधों से संबंधित नहीं थी।
प्रत्यर्पण अधिनियम (Extradition Act) और न्यायालयों की परस्पर मान्यता (Principle of Comity of Courts)
सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 (Extradition Act, 1962) पर भी चर्चा की, जिसमें यह बताया गया कि भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय संधियों (International Treaties) और प्रत्यर्पण समझौतों (Extradition Agreements) का पालन करना होगा। हालांकि, भारतीय अदालतें अपने कानूनी ढांचे (Legal Framework) के तहत निर्णय लेंगी और किसी विदेशी हिरासत (Foreign Detention) को सजा में समायोजित नहीं करेंगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट कर दिया कि धारा 428 CrPC के तहत केवल भारत में बिताई गई हिरासत (Detention) को ही सजा में समायोजित (Set-Off) किया जा सकता है।
इस निर्णय का प्रत्यर्पित (Extradited) व्यक्तियों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि भारत में सजा की गणना (Sentence Calculation) केवल भारतीय हिरासत (Indian Detention) के आधार पर की जाएगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी विदेशी सजा (Foreign Sentence) भारतीय कानूनी ढांचे (Indian Legal System) में लाभ नहीं दिला सकती।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) की क्षेत्रीय सीमा (Territorial Jurisdiction) को स्पष्ट करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी प्रावधान (Legal Provisions) केवल भारतीय न्यायिक क्षेत्र (Indian Jurisdiction) तक ही सीमित रहें।