NI Act में बैंक कब किसी चेक को भूनने से इनकार कर सकती है?
Shadab Salim
24 April 2025 4:26 AM

चेक के सम्बन्ध में लेखीवाल एवं ऊपरवाल (बैंक) के बीच में संविदात्मक सम्बन्ध होता है। ऐसा सम्बन्ध पाने वाला या धारक एवं बैंक के बीच में नहीं होता है। इस प्रकार पाने वाला/धारक बैंक के विरुद्ध कोई उपचार नहीं रखता है।
अतः उक्त (i) एवं (ii) के सम्बन्ध में चेक के बाउंस की आबद्धता चेक के पाने वाला/धारक के प्रति आबद्धता लेखीवाल की होती है न कि बैंक की। जहाँ बैंक किसी ग्राहक के चेक का बाउंस करता है, ग्राहक के खाते में पर्याप्त निधि के बावजूद बिना पर्याप्त कारण के वहाँ बैंक ग्राहक के प्रति आबद्ध होता है न कि चैक के धारक के प्रति। इस प्रकार का उपबन्ध अधिनियम की धारा 31 में किया गया है। इसके अनुसार-
"चेक के लेखीवाल की ऐसी पर्याप्त निधियाँ, जो ऐसे चेक के संदाय के लिए उचित रूप में उपयोजित की जा सकती हों, अपने पास रखने वाले चेक के ऊपरवाल को अपने से ऐसा करने के लिए। सम्यक् रूप से अपेक्षा किये जाने पर चेक का संदाय करना होगा और ऐसा संदाय में व्यतिक्रम होने से हुई किसी भी हानि या नुकसान के लिये प्रतिकर उसे लेखीवाल को देना होगा।" अधिनियम की धारा 31 बैंकर की आबद्धता को लेखीवाल के प्रति बाँधता है यदि वह ग्राहक के खाते में पर्याप्त निधि के होते हुए उसके चेक का बाउंस करता है।
अतः यह स्पष्ट है कि संशोधित उपबन्धों के अधीन दाण्डिक दायित्व केवल लेखीवाल को होती है और यहाँ तक कि उन मामलों में जहाँ ग्राहक के खाते में पर्याप्त निधि के होते हुए बैंक चेक का संदाय करने में असफल रहता है या उपेक्षा करता है। बैंकर की भी आबद्धता केवल लेखीवाल के प्रति होती है न कि पाने वाले या सम्यक् धारक के प्रति।
पर्याप्त निधि का होना यहाँ पर यह उल्लेख करना आवश्यक है कि लेखीवाल को कारित नुकसान या क्षति के लिए बैंक की आबद्धता तभी होगी जहाँ ऐसी नुकसान या हानि उसके खाते में पर्याप्त निधि के होते हुए वह संदाय करने में असफल रहता है या उपेक्षा करता है और यहाँ तक कि ऐसा निधि ऐसे चैक के संदाय के लिए समुचित रूप में प्रयोज्य हो। पर्याप्त निधि से तात्पर्य उपस्थापित चेक के धनराशि के बराबर धनराशि का होना है। बैंकर के हाथ में पर्याप्त धनराशि अवश्य होनी चाहिए। पर्याप्त धनराशि देखने के लिये ग्राहक के केवल क्रेडिट अवशेष को ही नहीं, बल्कि बैंक द्वारा प्रदत्त अधिविकर्ष की सुविधा को भी ध्यान में रखना चाहिए। पर्याप्त धनराशि के होते हुए भी यदि बैंक ग्राहक के चेक का भुगतान नहीं करता है तो यह संविदा भंग होगा और बैंक को ऐसे संविदा भंग का प्रतिकर ग्राहक को देना होगा।
दोहरे दण्ड के प्रयोज्यता का सिद्धान्त-
संगीताबेन महेन्द्रभाई पटेल बनाम गुजरात राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि धारा 138 के अपराध के लिए अभियोजन में मेन्स रीया (आपराधिक आशय), कपटपूर्ण या बेईमानीपूर्ण आशय के चेक को जारी करते समय अपेक्षित नहीं होता है, जबकि धारा 407, 420 एवं 414 (भा० दे० सं०) के अन्तर्गत मेन्स रीया को साबित करना आवश्यक होता है। एक व्यक्ति जिसे धारा 138 के अधीन अपराध के लिए विचारण किया गया है उसे पुन: आपराधिक न्यास, बैंक, छल और दुष्प्रेरण के लिए चेक के बाउंस से ही सम्बन्धित पुनः विचारण किया जा सकता है, क्योंकि इन सभी अपराधों के तत्व पृथक् हैं, अतः दोहरे जोखिम का सिद्धान्त प्रयोज्य नहीं होता है। ये अपराध धारा 138 के अपराध से भिन्न एवं स्वतंत्र हैं।
चेकों का बाउंस एक अपराध-
चेकों का बाउंस एक अपराध के रूप में सम्बन्धित विधि को अधिनियम के भाग 17 (नया) में धारा 138 से 142 तक 1988 में जोड़ा गया। वर्ष 2002 में धारा 143 से 147 तक जोड़ा गया और अब 2018 में अन्य संशोधनों के साथ धारा 148 जोड़ा गया है।
2015 में धारा 142 में उपखण्ड (2) जोड़ा गया है जो कोर्ट की अधिकारिता को परिवाद प्राप्त करने एवं परिवादों पर संज्ञान लेने की महत्वपूर्ण व्यवस्था स्थापित करती है। धारा 142क को जोड़ा गया है जो लम्बित वादों के अन्तरण को विधिमान्यता प्रदान करती है। 2018 में धारा 143क को जोड़ा गया है० जिसमें अन्तरिम प्रतिकर देने की शक्ति कोर्ट को प्रदान किया गया है। इस प्रकार चेकों के अन्तरण एक अपराध सम्बन्धी विधि को धारा 138 से 148 तक उपबन्धित है। यह चेकों के बाउंस के सम्बन्ध में एक नया प्रतिमान स्थापित करती है।
अपराध गठन करने की शर्तें- चेक के बाउंस के लिए अपराध की शर्तों का उल्लेख धारा 138 के अधीन किया गया है। वे हैं :
लेखीवाल द्वारा किसी ऋण या किसी आबद्धता के उन्मोचन के लिए लिखा गया है। [धारा 138]
अनुज्ञेय अवधि के अन्दर चेक बैंक को संदाय के लिए उपस्थापित किया जाना। [धारा 138 (क)]
बैंक के द्वारा चेक की अपर्याप्त निधि के आधार पर असंदत वापस किया जाना। [धारा 138]
लेखीवाल को संदाय की माँग की सूचना लिखित देना। [धारा 138 (ख)]
लेखीवाल द्वारा संदाय में व्यतिक्रम करना, [धारा 138 (ग)] सुप्रीम कोर्ट ने सदानन्दन भादरन बनाम माधवन सुनील कुमासे के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि लेखीवाल को चेक बाउंस के अपराध के लिए धारा 138 के अधीन सफलतापूर्वक अभियोजन के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए-
चेकों को किसी ऋण या अन्य आबद्धता के उन्मोचन के लिये जारी किया जाना और चेक बाउंस किया जाना।
पाने वाले द्वारा धन का संदाय की माँग लेखीवाल को लिखित में विहित अवधि में किया जाना।
कि लेखीवाल का इस सूचना प्राप्ति के 15 दिनों के अन्दर संदाय करने में असफल होना।
रंगप्पा बनाम मोहनी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 138 के घटकों को स्पष्ट किया है, यथा (i) कि एक विधिक प्रवृत्तनीय ऋण का होना, (ii) कि किसी ऋण या आवद्धता को पूर्णत: या भागत: उन्मोचन के लिए बैंक के किसी खाते से संदाय के लिए चेक लिखा गया।
इस प्रकार लिखा गया चेक बैंक द्वारा अपर्याप्त निधि के कारण लौटा दिया गया है। गोवा प्लास्ट प्रा० लि० बनाम चोको उरसुला डी 'सूजा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 138 के तीन घटकों का उल्लेख किया है-
कि विधिक प्रवर्तनीय ऋण का होना,
कि ऋण के संदाय के लिये किसी बैंक के खाते से चेक का लिखा जाना,
कि ऐसा जारी किया गया चेक अपर्याप्त निधि के कारण वापस किया जाना।
के० आर० इन्दिरा बनाम आदिनारायन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शर्तो का निम्नलिखित उल्लेख किया है-
जहाँ किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऋण या अन्य दायित्व के पूर्णत: या भागत: उन्मोचन के लिए किसी बैंकर के पास अपने द्वारा रखे गए खाते में से संदाय के लिए चेक लिखा गया है
पाने वाला या सम्यक् अनुक्रम धारक द्वारा चेक का उपस्थापन
ऊपरवाल बैंक द्वारा चेक को बिना संदाय के इस कारण लौटा दिया जाता है कि उस खाते में जमा धनराशि उस चेक का आदरण करने के लिए अपर्याप्त है या उस रकम से अधिक है, जिसका बैंक के साथ किए गए करार द्वारा उस खाते में संदाय करने का ठहराव किया गया है
चेक के लेखीवाल को असंदत्त चेक के लौटाए जाने की बाबत बैंक से उसे सूचना की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर उक्त धनराशि के संदाय की माँग लिखित सूचना द्वारा किया जाना चाहिए
उक्त सूचना की प्राप्ति के पन्द्रह दिन के भीतर उक्त धनराशि का संदाय पाने वाले या सम्यक् अनुक्रम धारक को संदाय करने में लेखीवाल को असमर्थ रहना। उक्त के ही समान जुगदेश सहगल बनाम समशेर सिंह के मामले में भी अनुसरण किया गया।
चेक का बाउंस अपराध होने के लिए धारा 138 में विहित शर्तों को निम्नलिखित किया जा सकता है-
चेक का किसी ऋण या आबद्धता के उन्मोचन में जारी किया जाना । [धारा 138 ]
चेक को संदाय के लिये ऊपरवाल बैंक को उपस्थापन करना। [ धारा 138 (क) ]
अपर्याप्त निधि के आधार पर बैंकर द्वारा चेक को वापस किया जाना। [धारा 138 ]
लेखीवाल को रकम की माँग सूचना भेजना। [धारा 138 (ख) ]
लेखीवाल द्वारा संदाय में असफल रहना। [धारा 138 (ग) ]
जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न हो, यह उपधारणा की जाएगी कि चेक के धारक ने धारा 138 में निर्दिष्ट प्रकृति का चेक किसी ऋण या अन्य दायित्व के पूर्णत: या भागत: उन्मोचन के लिए प्राप्त किया है।
धारा 139 के अधीन यह विधिक उपधारणा होती है कि चेक किसी पूर्ववर्ती दायित्व के उन्मोचन के लिए लिखा गया था एवं इस उपधारणा को केवल उस व्यक्ति द्वारा खण्डन किया जा सकता है जिसने चेक को लिखा है। उक्त उपधारणा चेक के धारक के पक्ष में होता है। यह इस धारा में नहीं कहा गया है कि उक्त उपधारणा केवल लेखीवाल के विरुद्ध ही लागू होगी। सभी प्रकार से यह उपधारणा साबित करने का भार उस व्यक्ति का होगा जो किसी मामले में साक्ष्य देता है।
जहाँ लेखीवाल ऋण या आबद्धता के अस्तित्व का खण्डन करता है तो धारक पर आबद्धता आ जाती है कि वह यह साबित करे कि चेक किसी ऋण या दायित्व के उन्मोचन के लिए लिखा गया था। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने जॉन के जॉन बनाम टयम वर्गीज के मामले में यह नियम स्थापित किया है कि धारा 139 के अधीन उपधारणा खण्डनीय होती है। ऋण एवं दायित्व के उपधारणा के लिए उधार देने की क्षमता भी एक महत्वपूर्ण कारक होती है। डी० बी० सीडलीन बनाम श्रीमती शकुन्तला के मामले में 4,50,000 रुपये ऋण देना यह पाया गया कि पाने वाला या धारक के क्षमता के बाहर था, अतः यह असम्भाविक एवं स्वीकार करने योग्य नहीं था।