NI Act में चेक का विशेष रूप से क्रॉस
Shadab Salim
21 April 2025 4:09 AM

इस एक्ट की धारा 124 चेक के विशेष क्रॉस से संबंधित है। एक चेक विशेषत: रेखांकित कहा जाएगा जब दो समानान्तर रेखाओं के बीच किसी बैंक का नाम कुछ संक्षेपाक्षर शब्दों के साथ या बिना इसके बढ़ा दिया गया है अर्थात् जहाँ चेक का क्रॉस किसी बैंक के नाम से किया गया है। इस बैंक का नाम ऊपरवाल (बैंक) से भिन्न होगा।
विशेष क्रॉस में यह चीज़ें होती हैं
दो आड़ी समानान्तर रेखाओं को खींचना। हालांकि केवल बैंक का नाम एवं "एकाउन्ट पेयी" बिना इन रेखाओं के लिखना, विशेष क्रॉस होगा।
किसी विशेष बैंक का नाम लिखना आवश्यक है। बिना इन रेखाओं के किसी बैंक का नाम लिखना भी विशेष क्रॉस होगा।
'परक्राम्य नहीं है" शब्दों को भी विशेष क्रॉस में जोड़ा जा सकता है।
क्रॉस का मुख्य प्रयोजन चेक को उसके सही स्वामी के लिए सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान करना है। चूँकि ऐसे चेकों का संदाय बैंक के माध्यम से किया जाता है अत: यह अनधिकृत व्यक्तियों द्वारा चेक को प्राप्त करने और उसके नकदीकरण का खतरा कम हो जाता है। अनधिकृत व्यक्तियों को संदाय की दशा में इसे पता लगाना एवं अभिनिश्चित करने में सुविधा होती है। क्रॉस के प्रभाव को स्पष्ट किया जा सकता है-
ऐसे चेकों का भुगतान बैंक के खिड़की पर नकद नहीं पाया जा सकता है। क्रॉस ऐसे चेकों ऐसे बैंकों के भुगतान के तरीके का निर्देश होता है। अधिनियम की धारा 125 उपबन्धित करती है :-
साधारणतः क्रास किए हुए चेक का संदाय-जहाँ कि चेक साधारणत: क्रास किया हुआ है, यहाँ यह बैंककार, जिस पर वह लिखा गया है, उसका संदाय किसी बैंककार को करने से अन्यथा नहीं करेगा।
विशेषतः क्रास किए हुए चैक का संदाय-जहाँ कि चेक विशेषतः क्रास किया हुआ है, वहाँ वह बैंककार, जिस पर वह लिखा गया है, उसका संदाय उस बैंककार को जिसके पक्ष में वह क्रास किया हुआ है, या संग्रह करने के लिए उसके अभिकर्ता को करने से अन्यथा नहीं करेगा।
यदि क्रास चेक का संदाय क्रासिंग के उल्लंघन में किया जाता है, ऐसा संदाय-
सम्यक् अनुक्रम में संदाय नहीं होता है।
भुगतानी बैंक विधिक संरक्षण का हकदार नहीं होगा।
भुगतानी बैंक लेखीवाल के प्रति हानि का उत्तरदायी होगा जो वह सहन करता है।
भुगतानी बैंक ऐसे संदाय को लेखीवाल के खाते से डेबिट नहीं कर सकता है।
जहाँ चेक एक से अधिक बैंकों को विशेषत: क्रास किया गया है, सिवाय संग्रह करने के प्रयोजन के लिए अभिकर्ता को क्रास किया गया है, वह बैंककार, जिस पर यह लिखा गया है, उसका संदाय करने से इन्कार करेगा।
"परक्राम्य नहीं है" शब्दों वाला साधारण या विशेष क्रास किए हुए चेक, लेने वाला व्यक्ति उस चेक पर उससे बेहतर हक न रखेगा और न देने के लिए समर्थ होगा जैसा उस व्यक्ति का था जिससे उसने उसे लिया है।
"एकाउन्ट पेयी" क्रॉस प्रतिबन्धात्मक माना जाता है कि इसे पृष्ठांकित नहीं किया जा सकता है। इन शब्दों को वसूली बैंक के लिए निर्देश माना जाता है कि चैक को संग्रहीत धनराशि पाने वाले के खाते में ही जमा किया जाए।
एक विशेष क्रॉस सामान्य क्रॉस से अधिक संरक्षण देता है।
क्रॉस चेक का सारवान् भाग होता है एवं इसका मिटाना या परिवर्तन करना कूटरचना माना जाता है।
क्रास करना चेक का तात्विक परिवर्तन नहीं माना जाता है, क्योंकि इसे अधिनियम द्वारा हो अनुज्ञात किया गया है।
क्रास चेक का तात्विक भाग-
प्रश्न है कि क्या क्रास चेक का तात्विक भाग क्या होता है-
इस सम्बन्ध में अधिनियम के अन्तर्गत कोई विशेष प्रावधान नहीं है, पर अब यह बैंकिंग का स्थापित मान्य सिद्धान्त बन गया है कि क्रॉस चेक का तात्विक भाग होता है और इसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन उन पक्षकारों के बीच जो परिवर्तन के समय थे, चेक को शून्य बनाता है जिन्होंने सहमति प्रदान नहीं की थी। [धारा 87]
इंग्लिश लॉ में इस बिन्दु पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। 1858 में यह अधिनियम (1882) में यह उपबन्धित किया गया था कि क्रॉस चेक का तात्विक भाग है और इसका मिटाना या परिवर्तन कूटरचना होगा और जो व्यक्ति ऐसा कपट करता है आजीवन कारावास के लिए दायी होगा।
विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 यह उपबन्धित करता है-
"इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत क्रॉस चेक का तात्विक भाग होता है, यह किसी व्यक्ति के लिए विधिमान्य नहीं होगा कि वह इसे मिटाए या सिवाय इस अधिनियम से प्राधिकृत होने पर क्रॉस में कुछ जोड़े या परिवर्तन करे।"
सिमांस बनाम टेलर के मामले में यह धारित किया गया है कि क्रॉस चेक का तात्विक भाग नहीं है और इसका मिटाना कूटरचना नहीं होता है। इस स्थिति को (1882) इंग्लिश अधिनियम से अब उलट दिया गया है।