संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विवाह विच्छेद से संबंधित शिल्पा शैलेश का ऐतिहासिक फैसला

Himanshu Mishra

2 Sept 2024 5:57 PM IST

  • संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विवाह विच्छेद से संबंधित शिल्पा शैलेश का ऐतिहासिक फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने शिल्पा सैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस मामले में, जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने यह माना कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का उपयोग करके एक विवाह को विच्छेद (Dissolution) कर सकता है, यदि वह विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका है।

    अनुच्छेद 142 भारतीय संविधान का एक विशेष प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में 'पूर्ण न्याय' करने की शक्ति देता है। यह एक असाधारण शक्ति है, जो अदालतों को प्रक्रिया और कानून के नियमों से ऊपर उठकर किसी भी मामले में न्यायसंगत और उचित परिणाम सुनिश्चित करने की अनुमति देती है।

    फॉल्ट थ्योरी से हटकर (Moving Away from Fault Theory)

    भारत के अधिकांश पारिवारिक कानून फॉल्ट-आधारित (Fault-Based) सिद्धांत पर आधारित हैं। इसमें तलाक तब दिया जाता है जब एक पक्ष यह साबित कर सके कि विवाह दूसरे पक्ष के द्वारा की गई 'गलती' या वैवाहिक अपराध (Matrimonial Offence) के कारण समाप्त हो गया है। यह अपराध क्रूरता (Cruelty), परित्याग (Desertion), व्यभिचार (Adultery), या किसी अन्य धर्म में परिवर्तन हो सकता है।

    लेकिन, फॉल्ट-आधारित सिद्धांत के साथ कई समस्याएं हैं। यह भावनात्मक रूप से चार्ज मामलों से निपटने के लिए एक प्रतिकूल माहौल पैदा करता है। यह पक्षों को अदालत में बेहद व्यक्तिगत विवरणों को उजागर करने के लिए प्रोत्साहित करता है। अक्सर, ये मामले वर्षों तक खिंचते रहते हैं, और पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोपों के बोझ से दबे रहते हैं।

    पार्लियामेंट द्वारा किए गए प्रयास (Parliamentary Efforts)

    तलाक की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए, 1976 में हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) के तहत आपसी सहमति (Mutual Consent) से तलाक का प्रावधान पेश किया गया। इस प्रावधान के तहत दोनों पक्षों को तलाक के लिए सहमत होना जरूरी है।

    इसके अलावा, धारा 13(1A)(i) के तहत, यदि कोई अदालत द्वारा पारित संगठित अधिकारों की बहाली (Restitution of Conjugal Rights) के आदेश के एक वर्ष बाद भी साथ नहीं रह रहा है, तो तलाक के लिए आवेदन किया जा सकता है।

    हालांकि, वर्तमान में कोई ऐसा प्रावधान नहीं है जहाँ कोई पक्ष यह दावा कर सके कि विवाह 'गलतियों' के बिना भी अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका है। एक नॉन-फॉल्ट (No-Fault) आधार तलाक की प्रक्रिया को सरल बना सकता है, क्योंकि इससे विवाहिक गलती के बारे में विस्तृत, जटिल सबूत पेश करने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।

    न्यायिक असंगति (Judicial Incoherence)

    कई मामलों में, न्यायपालिका ने समय-समय पर अनुच्छेद 142 का उपयोग करके अपरिवर्तनीय टूटन (Irretrievable Breakdown) के आधार पर तलाक दिया है। ऐसे मामलों में, आमतौर पर दोनों पक्ष तलाक के लिए सहमत होते हैं और अदालत यह निष्कर्ष निकालती है कि सुलह (Reconciliation) का कोई संभावन नहीं है और विवाह भावनात्मक और व्यावहारिक रूप से समाप्त हो चुका है।

    इस दृष्टिकोण को 1993 के मामले वी. भगत बनाम डी. भगत में सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक रूप से अपनाया। इस मामले में, दंपति ने एक-दूसरे पर व्यभिचार, क्रूरता और पागलपन के आरोप लगाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने क्रूरता को मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) तक विस्तारित किया और कहा कि ऐसी क्रूरता जानबूझकर या अनजाने में भी हो सकती है।

    शिल्पा सैलेश निर्णय का महत्व (Salience of the Shilpa Sailesh Judgement)

    शिल्पा सैलेश के निर्णय ने सुप्रीम कोर्ट की अनुच्छेद 142 के तहत तलाक देने की शक्ति की सीमाओं को स्पष्ट किया। इसने कहा कि यदि विवाह "पूरी तरह से अनुपयोगी, भावनात्मक रूप से मृत और बचाव से परे" हो गया है, तो सुप्रीम कोर्ट एकपक्षीय तलाक दे सकता है।

    इस निर्णय का एक और महत्वपूर्ण योगदान यह है कि इसमें तलाक देने से पहले विचार करने वाले कारकों को स्पष्ट किया गया है। इसमें शामिल हैं कि युगल कितने समय तक साथ रहे, आरोपों की प्रकृति, सुलह के प्रयास, और अलगाव की अवधि (6 वर्ष से अधिक होने पर इसे निश्चित रूप से उपयुक्त माना जाएगा)।

    शिल्पा सैलेश के निर्णय ने स्पष्ट कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत ऐसे विवाह को विच्छेद कर सकता है जो अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका हो। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रियाओं को स्पष्टता देने के साथ-साथ लंबित मामलों के लिए एक मार्गदर्शक भी है।

    हालांकि, यह निर्णय तलाक की प्रक्रिया को आसान या कम समय लेने वाला नहीं बना सकता है। तलाक की याचिका को अभी भी सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचने से पहले कई कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। इस संदर्भ में, 71वीं विधि आयोग की रिपोर्ट पर पुनर्विचार करना उपयुक्त होगा, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम में 'अपरिवर्तनीय टूटन' को एक अलग आधार के रूप में शामिल करने की सिफारिश की गई थी।

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