भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 492 से 496 : जमानती बांड का निरस्तीकरण
Himanshu Mishra
3 Jun 2025 1:46 PM

धारा 492: बांड और जमानती बांड का निरस्तीकरण
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 492 का संबंध बांड और जमानती बांड (bail bond) के निरस्तीकरण (cancellation) से है। यह धारा बताती है कि यदि किसी व्यक्ति ने किसी मामले में न्यायालय या पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थिति के लिए बांड या जमानती बांड भरा है और उसने उस बांड की किसी शर्त का उल्लंघन कर दिया, जिससे वह बांड ज़ब्त हो गया, तो उस स्थिति में क्या होगा।
सबसे पहले, यह समझना आवश्यक है कि यह धारा धारा 491 से परे है, यानी धारा 491 में जो प्रावधान दिए गए हैं, उनका पालन करते हुए भी यह धारा लागू की जा सकती है।
यदि किसी व्यक्ति द्वारा भरा गया बांड ज़ब्त हो जाता है, तो दो मुख्य परिणाम होते हैं:
पहला, उस व्यक्ति द्वारा भरा गया बांड और उसके साथ उसके एक या एक से अधिक जमानतदारों द्वारा भरे गए बांड, यदि कोई हैं, वे भी रद्द (cancel) माने जाएंगे।
दूसरा, इसके बाद उस व्यक्ति को केवल उसके व्यक्तिगत बांड (personal bond) पर रिहा नहीं किया जाएगा, जब तक कि वह पुलिस अधिकारी या न्यायालय, जिनके समक्ष यह बांड भरा गया था, यह संतुष्ट न हो जाएं कि उस व्यक्ति की बांड की शर्तों को पूरा न कर पाने के पीछे कोई उचित कारण था।
यदि पुलिस अधिकारी या न्यायालय इस बात से संतुष्ट नहीं होते कि कोई उचित कारण था, तो फिर केवल व्यक्तिगत बांड पर रिहाई नहीं दी जाएगी।
लेकिन इस धारा में एक महत्वपूर्ण उपबंध (proviso) भी है। इसमें कहा गया है कि यदि इस संहिता के अन्य किसी प्रावधान में कोई रोक नहीं है, तो व्यक्ति को पुनः रिहा किया जा सकता है। इसके लिए उसे एक नया व्यक्तिगत बांड भरना होगा, जिसकी राशि पुलिस अधिकारी या न्यायालय उचित समझें, और उसके साथ एक या अधिक जमानतदारों द्वारा भी नए बांड भरवाए जा सकते हैं। इस प्रकार, नए बांड और नई शर्तों के अनुसार व्यक्ति को रिहा किया जा सकता है।
धारा 493: जमानतदार के दिवालिया होने, मृत्यु हो जाने या बांड ज़ब्त होने की स्थिति में प्रक्रिया
धारा 493 उस स्थिति से संबंधित है जब कोई जमानतदार (surety) दिवालिया हो जाए, या उसकी मृत्यु हो जाए, या जब किसी बांड को धारा 491 के अंतर्गत ज़ब्त कर लिया गया हो।
इस धारा के अनुसार, जिस न्यायालय द्वारा वह बांड लिया गया था या कोई प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट, उस व्यक्ति से, जिससे सुरक्षा (security) मांगी गई थी, पुनः उसी प्रकार की सुरक्षा देने का आदेश दे सकता है जैसा कि मूल आदेश में निर्देशित था। इसका अर्थ यह है कि यदि जमानतदार अब सक्षम नहीं रहा—चाहे वह दिवालिया हो गया हो या मर गया हो—तो उस स्थिति में व्यक्ति को नया जमानतदार देना होगा।
यदि वह व्यक्ति न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा मांगी गई नई सुरक्षा नहीं दे पाता है, तो फिर न्यायालय या मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति के साथ ऐसे व्यवहार कर सकते हैं जैसे कि उसने मूल आदेश का पालन करने में विफलता की हो। अर्थात् उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है जैसे वह आदेश का उल्लंघन करने वाला हो।
धारा 494: बच्चे से बांड लेना
यह एक विशेष प्रावधान है जो यह स्पष्ट करता है कि यदि कोई न्यायालय या अधिकारी किसी बच्चे (child) से बांड भरवाना चाहता है, तो ऐसी स्थिति में वह स्वयं बच्चे से बांड लेने के स्थान पर केवल उसके एक या अधिक जमानतदारों द्वारा भरा गया बांड स्वीकार कर सकता है।
इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि बच्चे की उम्र और कानूनी समझ को देखते हुए उसके ऊपर बांड भरने की जिम्मेदारी न डाली जाए। इसके बजाय, बच्चे की ओर से कोई जिम्मेदार व्यक्ति या अभिभावक बांड भर सकता है और न्यायालय इसे स्वीकार कर सकता है। इससे बच्चे की रक्षा और न्याय प्रक्रिया में उसके साथ सहानुभूति सुनिश्चित होती है।
धारा 495: धारा 491 के अंतर्गत पारित आदेशों के विरुद्ध अपील
धारा 495 अपील के अधिकार से संबंधित है। इसमें यह बताया गया है कि यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 491 के अंतर्गत कोई आदेश पारित किया गया है, तो वह किस न्यायालय में जाकर उस आदेश के विरुद्ध अपील कर सकता है।
यदि धारा 491 के अंतर्गत आदेश किसी मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किया गया है, तो उसके विरुद्ध अपील सत्र न्यायाधीश (Sessions Judge) के समक्ष की जा सकती है।
वहीं, यदि आदेश सत्र न्यायालय द्वारा पारित किया गया है, तो फिर उस आदेश के विरुद्ध अपील उसी न्यायालय में की जा सकती है जहाँ उस सत्र न्यायालय के आदेशों के विरुद्ध सामान्य रूप से अपील की जाती है।
इस प्रावधान से यह सुनिश्चित होता है कि किसी भी व्यक्ति के पास न्याय की दूसरी संभावना बनी रहे और वह उच्चतर न्यायालय के समक्ष अपनी बात रख सके।
धारा 496: हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय द्वारा मजिस्ट्रेट को बांड की राशि वसूलने का निर्देश देना
धारा 496 एक प्रशासनिक प्रकार की धारा है जो यह बताती है कि यदि कोई व्यक्ति हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय में उपस्थित होने के लिए बांड भरता है, और वह बांड ज़ब्त हो जाता है, तो हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय किसी मजिस्ट्रेट को यह निर्देश दे सकते हैं कि वह उस बांड की राशि की वसूली करें।
इसका मतलब यह है कि बांड की राशि की वसूली सीधे हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय द्वारा नहीं की जाएगी, बल्कि वे इसके लिए अधीनस्थ मजिस्ट्रेट को निर्देश देंगे, जो उस राशि की वसूली के लिए आवश्यक कानूनी कार्रवाई करेगा।
यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया की सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए है, जिससे कार्यों का विकेन्द्रीकरण हो सके और हाईकोर्ट छोटे-छोटे प्रशासनिक मामलों में न उलझे।
धारा 492 से लेकर 496 तक की धाराएं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत बांड और जमानती बांड से संबंधित हैं। इन प्रावधानों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों का पालन हो और यदि कोई व्यक्ति बांड की शर्तों का उल्लंघन करता है या अन्य किसी कारण से जमानती व्यवस्था टूट जाती है, तो उसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाए।
इन धाराओं में यह भी ध्यान रखा गया है कि किसी बच्चे को सीधे कानूनी दायित्व में न डाला जाए, और अपील का अधिकार भी सुनिश्चित किया गया है। न्यायिक प्रक्रिया को सुचारु बनाए रखने के लिए मजिस्ट्रेटों को आवश्यक प्रशासनिक अधिकार भी दिए गए हैं।
इन धाराओं के माध्यम से न्यायालय को यह शक्ति मिलती है कि वह बांड और जमानत से संबंधित मामलों में अनुशासन बनाए रख सके, और यह सुनिश्चित कर सके कि आरोपी या गवाह समय पर न्यायालय के समक्ष उपस्थित हों। संपूर्ण व्यवस्था न्यायिक प्रक्रिया की दक्षता और न्याय के निष्पक्ष वितरण को सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है।