NI Act की धारा 82 के प्रावधान
Shadab Salim
11 April 2025 4:21 AM

इस एक्ट की यह धारा इंस्ट्रूमेंट की पार्टियों के डिस्चार्ज के संबंध में बात करती है। परक्राम्य लिखतों के सम्बन्ध में उन्मुक्ति दो तरह से प्रयुक्त की जाती है-
इंस्ट्रूमेंट की स्वयं में उन्मुक्ति
इंस्ट्रूमेंट के कुछ पक्षकारों की उन्मुक्ति
जब तब परक्राम्य इंस्ट्रूमेंट अस्तित्व में एवं विधिमान्य होता है इससे कतिपय कार्यवाही के अधिकार होते हैं, परन्तु जब इन अधिकारों की समाप्ति हो जाती है तो इंस्ट्रूमेंट उन्मुक्त हो जाता है।
परक्राम्य लिखतें अर्थात वचन पत्र, विनिमय पत्र एवं चेक उन्मुक्त हो जाते हैं, जब इंस्ट्रूमेंट का मुख्य पक्षकार इंस्ट्रूमेंट के पाने वाला/धारक/सम्यक् अनुक्रम धारक को, जैसी भी स्थिति हो सम्यक् अनुक्रम में पेमेंट कर देता है।
किसी इंस्ट्रूमेंट के अधीन मुख्य आबद्ध पक्षकार होते हैं
वचन पत्र का रचयिता
विनिमय पत्र का प्रतिग्रहीता (ऊपरवाल), एवं
चेक का लेखीवाल,
धारा 82 तीन प्रकार से दायित्व के उन्मोचन का प्रावधान करती है, अर्थात् रद्दकरण, निर्मुक्ति एवं पेमेंट उन्मोचन का सबसे सहज एवं सामान्य तरीका रचयिता एवं प्रतिग्रहीता के क्रमशः वचन पत्र एवं विनिमय पत्र में पेमेंट द्वारा है। चेक की दशा में लेखीवाल के दायित्व निर्वापित (extinguished) हो जाता है जहाँ ऊपरवाल (बैंकर) चेक को सम्यक् रूप से उपस्थापन पर उसका पेमेंट कर देता है।
यहाँ पर यह ध्यान में रखना चाहिए बैंक का पाने वाला/धारक के प्रति कोई आबद्धता नहीं होती है। एक बैंकर धारा 31 के प्रभाव से चेक के लेखीवाल के प्रति आबद्धता रखता है।
इंस्ट्रूमेंट में पक्षकारों की आबद्धता के उन्मोचन को निम्नलिखित दो तरह से विचार किया जाता है
स्वयं इंस्ट्रूमेंट का उन्मोचन- एक इंस्ट्रूमेंट स्वयं में निम्नलिखित दर से डिस्चार्ज हो जाता है :
रद्दकरण द्वारा
निर्मुक्ति द्वारा
पेमेंट द्वारा
विनिमय पत्र के प्रतिग्रहीता का धारक करने पर
जहाँ चेक को सम्यक् रूप से उपस्थापन न करने से जिसे लेखीवाल को क्षति हुई हो
कुछ पक्षकारों का उन्मोचन-निम्नलिखित मामलों में इंस्ट्रूमेंट के कुछ पक्षकारों का दायित्व का उन्मोचन हो जाता है
धारक द्वारा प्रतिग्रहीता या पृष्ठांकक का नाम उसे डिस्चार्ज करने के आशय से रद्दकरण से
धारक के द्वारा रचयिता, प्रतिग्रहीता या पृष्ठांकक के निर्मुक्ति से
ऊपरवाल को प्रतिग्रहण के लिए 48 घण्टे से अधिक समय अनुज्ञात करने से
विशेषित स्वीकृति से
विनिमय पत्र को प्रतिग्रहण के लिए उपस्थापन न करने पर
जहाँ चेक को सम्यक् रूप से पेमेंट के लिए उपस्थित न करने से
इंस्ट्रूमेंट में तात्विक परिवर्तन से
जब इंस्ट्रूमेंट स्वयं में डिस्चार्ज हो जाता है तो तधीन सभी पक्षकार जिनका दायित्व इंस्ट्रूमेंट में होता है, डिस्चार्ज हो जाते हैं। जब किसी परक्राम्य इंस्ट्रूमेंट में सभी पक्षकारों के विरुद्ध अधिकारों की समाप्ति हो जाती है, इंस्ट्रूमेंट डिस्चार्ज हो जाता है और जब इंस्ट्रूमेंट डिस्चार्ज हो जाता है तो कोई भी व्यक्ति यहाँ तक सम्यक् अनुक्रम धारक भी इंस्ट्रूमेंट के अधीन रकम का दावा उसके किसी भी पक्षकार से नहीं कर सकेगा। इंस्ट्रूमेंट के अधीन प्रमुख रूप से दायी पक्षकार को उन्मोचन स्वयं इंस्ट्रूमेंट को डिस्चार्ज बना देता है।
एक इंस्ट्रूमेंट निम्नलिखित दशा में डिस्चार्ज हो जाता है-
रद्दकरण द्वारा रद्दकरण हो सकता है
रचयिता/प्रतिग्रहीता के दायित्व का,
इंस्ट्रूमेंट का रद्दकरण-
इंस्ट्रूमेंट का धारक या उसका अभिकर्ता इंस्ट्रूमेंट को रद्द कर सकता है। "जहाँ एक धारक या उसके अभिकर्ता द्वारा इंस्ट्रूमेंट को साशय रद्द कर दिया जाता है और उस पर रद्दकरण स्पष्ट है, इंस्ट्रूमेंट डिस्चार्ज हो जाता है" एवं एतद्वारा सभी पक्षकार जो इंस्ट्रूमेंट के अधीन दायी है अपनी आबद्धता से डिस्चार्ज हो जाएंगे।
ऐसा रद्दकरण इंस्ट्रूमेंट के मुख पर प्रकट होना चाहिए अन्यथा सम्यक् अनुक्रम धारक के हाथ में इंस्ट्रूमेंट विधिमान्य बना रहेगा। इस सम्बन्ध में सूचक वाद इनघाम बनाम प्राइमोस है।
इस मामले में अ ने एक विनिमयपत्र प्रतिग्रहीत किया और इसे वह ब को बट्टा कटाने के प्रयोजन से दिया जिस रकम को अ को देना था ब इसे बट्टा कराने में असफल रहा और बिल अ को वापस कर दिया जिसने बिल को रद्द करने के आशय से इसे आधा फाड़ दिया और इसके दो टुकड़ों को सड़क पर फेंक दिया ने उन्हें उठा लिया एवं तत्पश्चात् दो टुकड़ों को एक साथ ऐसा चिपका दिया जिससे यह मालूम पड़ता था कि सुरक्षित अभिरक्षा के प्रयोजन से बिल को मोड़ा गया एवं रद्द नहीं किया है ब ने इसे प्रचलन में लाया और वादी एक समयक अनुक्रम धारक ने इसे प्राप्त किया।
अ की दायी ठहराया गया, क्योंकि बिल को टुकड़ों में फाड़ना अपने आप में बिल के चेहरे से स्पष्ट में नहीं था जिससे एक युक्तियुक्त व्यक्ति को यह संकेत दे सके कि इसे रद्द कर दिया गया है। इंस्ट्रूमेंट को फाड़ना ऐसा होना चाहिए जिससे कोई भी सामान्य बुद्धि का व्यक्ति सतकर्ता से यह जान सके कि इसे रद्द कर दिया गया है परन्तु स्कोले बनाम रैम्स के मामले में न्यायालय का यह मानना था कि जहाँ बैंकर द्वारा ऐसे चेक का पेमेंट करने में जो फाड़ा हुआ दिखाई देता है और उसे जोड़ा गया है, पेमेंट से ग्राहक के खाते को डेबिट नहीं कर सकता है।
रचयिता / प्रतिग्रहीता के दायित्व का रद्दकरण-धारा 82 (क) के अधीन वचन पत्र या विनिमय पत्र के रचयिता या प्रतिग्रहीता के दायित्व को रद्द करने से सम्बन्धित है। ऐसी दशा में ऐसा रद्दकरण स्वयं इंस्ट्रूमेंट का रद्द करने का प्रभाव रखता है, क्योंकि अन्य सभी पक्षकार प्रतिग्रहीता के प्रतिभू के रूप में अपनी आबद्धता से डिस्चार्ज हो जाते हैं।
धारा 37 में यह उपबन्धित है कि वचन पत्र या चेक के रचयिता एवं विनिमय पत्र के प्रतिग्रहण के पूर्व लेखीवाल एवं प्रतिग्रहण के बाद प्रतिग्रहीता इंस्ट्रूमेंट के अधीन मूल ऋणी के रूप में दायी होते हैं और इंस्ट्रूमेंट के अधीन अन्य पक्षकार रचयिता, लेखीवाल या प्रतिग्रहीता के प्रतिभू के रूप में होते हैं, जैसी भी स्थिति हो। इस प्रकार प्रतिग्रहीता के नाम को इस आशय से धारक द्वारा रद्द करना कि उसका दायित्व डिस्चार्ज हो जाय, इंस्ट्रूमेंट को रद्द करने का प्रभाव होता है, क्योंकि प्रतिग्रहीता विनिमय पत्र में प्रतिग्रहण के पश्चात् मुख्य ऋणी होता है।
पृष्ठांकक के दायित्व को रद्द करना-जहाँ एक धारक पृष्ठांकक/पृष्ठाककों के नाम को रद्द करता है, तब उसके पश्चात्वर्ती सभी पक्षकार अपने दायित्व से डिस्चार्ज हो जाते हैं, परन्तु उसके पूर्विक पक्षकार आवद्ध बने रहते हैं। यह ऐसा है, क्योंकि रचयिता एवं प्रतिग्रहीता के पश्चात्वर्ती पक्षकार ऐसे पृष्ठांकक के बीच आपस में सह-प्रतिभू नहीं होते, परन्तु प्रत्येक पूर्विक पक्षकार मुख्य ऋणी और हर पश्चात्वर्ती एक प्रतिभू होता है। ऐसी दशा में कोई व्यक्ति ऐसे पृष्ठांकक के माध्यम से अपने अधिकार का दावा करने वाला अपने दायित्व से डिस्चार्ज हो जाता है। उदाहरण के लिए अ एक विनिमय पत्र का धारक है।
प्रथम पृष्ठांकन 'स'को, द्वितीय पृष्ठांकन 'द' को, तीसरा पृष्ठांकन 'य' को, चौथा पृष्ठांकन 'र'को पाँचव पृष्ठांकन 'अ'को (अब धारक है)
अ (धारक) 'द' एवं 'य' के नाम को बिना 'स' की सहमति से रद्द कर देता है। 'र' अपनी आबद्धता से डिस्चार्ज हो जाएगा। ऐसी दशा में इंस्ट्रूमेंट डिस्चार्ज नहीं होगा, क्योंकि 'अ' इंस्ट्रूमेंट में मुख्य ऋणी नहीं है।
निर्मुक्ति द्वारा [ धारा 82 (ख) ] - एक धारक इंस्ट्रूमेंट के अधीन रचयिता, प्रतिग्रहीता या पृष्ठांकक के नाम को रद्द करने के अन्यथा निर्मुक्ति प्रदान करता है, तो ऐसा निर्मुक्ति वही प्रभाव रखेगी जैसा कि पक्षकारों का नाम रद्द करने से होता है।
जहाँ धारक के द्वारा रचयिता या प्रतिग्रहीता के आवद्धता को निर्मुक्ति कर दी जाती है तो स्वयं इंस्ट्रूमेंट डिस्चार्ज हो जाता है, क्योंकि वचन पत्र में रचयिता एवं विनिमय पत्र में प्रतिग्रहीता की स्थिति मुख्य ऋणी की होती है। परन्तु पृष्ठांकक के निर्मुक्ति से इंस्ट्रूमेंट डिस्चार्ज नहीं होता, क्योंकि वह इंस्ट्रूमेंट में मुख्य ऋणी नहीं होता है।
धारक किसी को भी दायित्व से निर्मुक्त करने के लिए पृथक् करार से या व्यवहार से जो किसी पक्षकार को दायित्व से निर्मुक्त करने का प्रभाव रखता है, डिस्चार्ज कर सकता है। यह भारतीय संविदा विधि की धारा 63 के प्रावधानों पर आधारित है। जो इस सम्बन्ध में प्रावधान अन्तर्निहित करती है कि हर वचन गृहीता अपने को दिये गये किसी वचन के पालन से अभिमुक्ति या उसका परिहार पूर्णत: या भागतः दे या कर सकेगा, या ऐसे पालन के लिए समय बढ़ा सकेगा या उसके स्थान पर किसी तुष्टि को, जिन्हें वह ठीक समझे प्रतिग्रहीत कर सकेगा।