NI Act की धारा 123 के प्रावधान
Shadab Salim
21 April 2025 4:06 AM

इस एक्ट की धारा 123 चेक के क्रॉस से संबंधित है। इस धारा में चेक जहाँ चेक के मुख भाग के बाय तरफ ऊपर केवल दो आड़ी समानान्तर रेखाएं कुछ संक्षेपाक्षर शब्दों के साथ या बिना उसके हो, तो उसे साधारण या सामान्य क्रॉस कहते हैं।
दो आड़ी समानान्तर रेखाओं को खींचना आवश्यक केवल दो समानान्तर रेखाएं हो अपने आप में क्रॉस हैं।
यह सामान्तया चेक के मुख भाग पर सबसे ऊपर बायीं तरफ होनी चाहिए।
कुछ संक्षेपाक्षण शब्द जैसे "एण्ड कं० " इत्यादि दोनों रेखाओं के बीच लिखा जा सकता है।
"परक्राम्य नहीं है" या " अपरक्रामणीय" शब्दों को भी लिखा जा सकता है।
आदाता के खाते में (एकाउन्ट पेयी) भी लिखा जा सकता है।
"एकाउण्ट पेयी" या "एकाउण्ट पेयी ओनली" (आदाता के खाते में) शब्दों के साथ बिना समानान्तर रेखाओं को भी रेखांकित चेक माना जाता है। अब यह सर्वमान्य हो गया है।
क्रॉस का विशेषाधिकार अन्य लिखतों सिवाय चेक के विस्तारित नहीं किया जा सकता है। अर्थात विनिमयपत्र एवं वचन पत्र को नहीं। 1974 में इस विशेषाधिकार को बैंक ड्राफ्ट पर भी प्रयोज्य किया गया। महत्वपूर्ण संक्षेपाक्षर शब्द- निम्नलिखित संक्षेपाक्षण क्रॉस में प्रयुक्त होते हैं :-
"एण्ड कम्पनी", "एण्ड कम्पनी"- ये शब्द क्रॉस को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करते हैं। ये केवल औपचारिक शब्द हैं।
"अपरक्राम्य", "परक्राम्य नहीं है"-"अपरक्रामणीय" शब्द चेक को एक अतिरिक्त संरक्षण प्रदान करते हैं। अधिनियम की धारा 130 के अनुसार "साधारणत: या विशेषतः क्रास किए हुए ऐसे चेक को, जिस पर "परक्राम्य नहीं है" शब्द लिखे हैं, लेने वाला व्यक्ति उस चेक पर उससे बेहतर हक न रखेगा और न देने के लिए समर्थ होगा जैसा उस व्यक्ति का था जिससे उसने उसे लिया है।"
यहाँ पर "परक्राम्यता" एवं "अन्तरण" शब्दों के अर्थ और उनके अन्तर को समझना आवश्यक है। हालांकि ये दोनों शब्द किसी अन्य व्यक्ति को सम्पत्ति अन्तरण अन्तर्निहित करती है। लेकिन इन दोनों में मूल अन्तर है।
"अन्तरण" शब्द इस सिद्धान्त से शासित होता है कि "कोई व्यक्ति अपने से बेहतर स्तत्व अन्तरित नहीं कर सकता है। परन्तु परक्रामण इस सिद्धान्त से शासित नहीं होता है। कोई भी व्यक्ति जो लिखत को सद्भावनापूर्वक प्रतिफलार्थ प्राप्त करता है लिखत का धारक (स्वामी) बन जाता है।
"परक्राम्य नहीं है" शब्दों का बढ़ाना परक्राम्यता को मुख्य विशेषता को पूर्णत: समाप्त कर इसका अर्थ यह है कि दोषयुक्त स्वत्व का धारक अपने से बेहतर स्वत्व अन्तरिती को प्रदान नहीं कर है, नियम ऐसे चेकों पर भी प्रयोज्य होने लगते हैं।
"परक्राम्य नहीं है", हालांकि चेक को अहस्तान्तरणीय नहीं बनाते हैं, यह केवल चेक के परक्राम्यता के लक्षण से वंचित बनाता है। यदि धारक के पास बेहतर स्वत्व है तो वह एक बेहतर स्वत्व अन्तरित कर सकेगा, परन्तु जहाँ अन्तरक का स्वत्व दोषपूर्ण है, उसका अन्तरिती ऐसे दोष से प्रभावित होगा और उसे एक अच्छा हक चेक पर प्राप्त नहीं होगा और वह अपने को सम्यक् अनुक्रम धारक नहीं कह सकेगा हालांकि उसने चेक को सद्भावपूर्वक एवं प्रतिफलार्थ क्रय किया था। यही "परक्राम्य नहीं है" का प्रभाव है। इन शब्दों के अभाव में अन्तरिती अपने को सम्यक् अनुक्रम धारक का दावा कर सकेगा।
उदाहरण- (1) अ एक वाहक को देय चेक रखता है जिसे साधारणतया "परक्राम्य नहीं है" शब्दों के साथ क्रास है। यह चेक खो जाता या चोरी हो जाता है जो 'ब' के हाथ में आ जाता है जो इसे 'स' को अन्तरित कर देता है और वह इसे सद्भावपूर्वक एवं प्रतिफलार्थ प्राप्त करता है। 'स' चेक को अपने बैंक में संग्रहण के लिए जमा करता है जो अपने ग्राहक के लिए ऊपरवाल बैंक (भुगतानी बैंक) से भुगतान प्राप्त करता है। संग्राहक बैंक एवं भुगतानी बैंक दोनों अधिनियम की धारा 128 एवं 131 के अधीन अपने दायित्व से उन्मुक्त हो जाते हैं।
परन्तु स लिखत की धनराशि को चेक के सही स्वामी अ को वापस करने के लिए दायी होगा, क्योंकि चेक परक्रमणीय नहीं था। स अपने तत्काल अन्तरक व से अच्छा हक प्राप्त नहीं करेगा जिसने चेक को पाया है या चोरी किया है और वह चेक का सही स्वामी नहीं है। सही स्वामी के सम्बन्ध में से की अच्छी स्थिति उसके अन्तरक 'ब' से नहीं है।
यदि ऐसा चेक " परक्राम्य नहीं है" शब्दों के बिना होता तो स का हक अच्छा होता और बिना किसी दोष के होता और वह सही स्वामी के सम्बन्ध में एक अच्छा हक रखता।
अ, ब के पक्ष में क्रास चेक "परक्राम्य नहीं है" शब्दों के बिना इलाहाबाद बैंक के नाम से लिखता है। स चेक को ब के गृह से चुरा लेता है और इसे वह द को पृष्ठांकित कर देता है जो इसे सद्भावपूर्वक एवं प्रतिफलार्थ प्राप्त कर लेता है (चोरी के संज्ञान के बिना) द को एक अच्छा हक चेक पर प्राप्त हो जाता है।
परन्तु यदि यह चेक "परक्राम्य नहीं है" शब्दों के साथ है। यहाँ पर "परक्राम्य नहीं है" शब्द द के हक पर तात्विक प्रभाव उत्पन्न करेगा और उसका विधिपूर्ण हक नहीं होगा। "परक्राम्य नहीं है" शब्द समानान्तर रेखाओं में होना यहाँ पर यह महत्वपूर्ण है कि "परक्राम्य नहीं है" शब्दों को समानान्तर रेखा में होना चाहिये बिना समानान्तर रेखा के यह प्रभावहीन होगा। परन्तु "एकाउण्ट पेयी" क्रॉस के साथ इसे बिना समानान्तर रेखाओं के विधिमान्यता होगी।
"परक्राम्य नहीं" क्रास चेक का प्रभाव
उक्त के अध्ययन से निम्नलिखित प्रभाव उत्पन्न देते हैं:-
चेक को परक्राम्य नहीं किया जा सकता, परन्तु इसे अन्तरित किया जा सकता है। "परक्राम्य नहीं है" शब्दों से चेक की परक्राम्यता समाप्त हो जाती है।
ऐसे चेक के अन्तरण से अन्तरिती एक सम्यक् अनुक्रम धारक नहीं होगा।
"नेमो डैट कोड नान हैवेट" का सिद्धान्त अर्थात् एक विक्रेता अपने से अच्छा हक प्रदान नहीं कर सकता, ऐसे चैक के अन्तरण में प्रयोज्य हो जाता है।
चेक का धारक इसके सही स्वामी के प्रति उत्तरदायी होगा। सही स्वामी चेक या चैक की धनराशि का दावा कर सकेगा।
भुगतानों एवं संग्राहक बैंक को संरक्षण मिलेगा।
भुगतानी बैंक एवं संग्राहक बैंक को संरक्षण-"परक्राम्य नहीं है" चेक को जब धारक बैंक में संग्रहण के लिए जमा करता है और ऊपरवाल (भुगतानी बैंक) चेक का भुगतान सद्भावनापूर्वक एवं बिना उपेक्षा के कर देता है तो उक्त दोनों बैंकों को अधिनियम की धारा 128 एवं 131 के अधीन संरक्षण प्राप्त होता है।
"पाने वाले के खाते में" या "केवल पाने वाले के खाते में"-चेकों के क्रॉस में "एकाउन्ट पेयी" शब्दों को जोड़ने का व्यवहार स्थापित हुआ है। यह चेकों का भुगतान प्राप्त करने में महत्वपूर्ण परिवर्तन उत्पन्न करता है। इन शब्दों से बैंकर को यह निर्देश होता है कि वह केवल पाने वाले के खाते में ही भुगतान करे और किसी को नहीं। यह इस आशय को प्रकट करता है कि बैंक की वसूली केवल पाने वाले के खाते में ही किया जाए। यह इसलिए संग्रहक बैंक के लिए निदेश माना जाता है कि वह चेक धनराशि को पाने वाले के खाते में ही प्रयोज्य करे।
यहाँ यह ध्यान में रखना चाहिए कि "एकाउन्टपेयी" क्रास चेक के परक्राम्यता को प्रभावित नहीं करता है एवं ऐसा चेक परक्राम्य बना रहता है, परन्तु बैंक ऐसे चेक का वसूली केवल पाने वाले के खाते में ही करेगा न कि पृष्ठांकिती के खाते में इस प्रकार ऐसा क्रॉस अप्रत्यक्ष रूप से चेक के परक्राम्यता को प्रभावित करता है।
अब सरकार का निर्देश है कि सरकारी प्रयोजन के लिए केवल "एकाउन्ट पेयी" चेक ही जारी किया जाए। यह भी महत्वपूर्ण है कि "एकाउन्टपेयी" क्रास के लिए समानान्तर रेखाओं की आवश्यकता नहीं होती है। अब यह मान्य नियम हो गया है कि " एकाउन्ट पेयी" चेक का क्रास बिना समानान्तर रेखाओं के हो सकता है। प्रभाव के सम्बन्ध में इन शब्दों का विशेष महत्व होता है। यह चेक को अधिक से अधिक संरक्षण प्रदान करता है। यह भुगतानी बैंक (ऊपरवाल) के लिए यह निर्देश होता है कि ऐसे क्रास चेक की वसूली केवल पाने वाले के लिए एवं उसके खाते में जमा किया जाय। यदि बैंक ऐसे चेक का संदाय पाने वाले के सिवाय किसी अन्य व्यक्ति के लिए प्राप्त करता है, वहाँ बैंकर उपेक्षा के दोषी होगा एवं धारा 131 के अधीन संरक्षण के लिए हकदार नहीं होगा। अतः "एकाउन्ट पेयी" क्रास चेक के परक्राम्यता को प्रतिबन्धित करता है, क्योंकि कोई भी बैंक इसकी वसूली किसी अन्य व्यक्ति जो पृष्ठांकिती है, के लिए नहीं करेगा।
एकाउन्टपेयी क्रास के दो प्रभाव होंगे प्रथम, यह चेक के परक्राम्यता को प्रभावित कर सकता है। परन्तु यह नेशनल बैंक बनाम सिल्की के मामले में यह धारित किया गया है कि एकाउन्ट पेयी चेक अन्तरणीय होता है। परन्तु यह अन्तरणीयता केवल सम्बन्धित पक्षकारों में ही मान्य होती है, परन्तु जहाँ तक भुगतानी बैंक द्वारा संग्रहण का प्रश्न है पाने वाले के सिवाय अन्य व्यक्ति के लिए मना कर सकता है।
द्वितीय, संग्रहण बैंक केवल पाने वाले के लिए धनराशि की वसूली करेगा, क्योंकि भुगतानी बैंकर केवल पाने वाले के लिए चेक के अधीन भुगतान करेगा। किसी अन्य के लिए नहीं।
उदाहरण के लिए स एक चेक लेखीवाल से "एकाउन्ट पेयी" क्रास चेक इलाहाबाद बैंक के पक्ष में प्राप्त करता है। स चेक को द को अन्तरित कर देता है। यद्यपि कि यह अन्तरण स एवं द के बीच विधिमान्य है, परन्तु जहाँ तक संदाय का प्रश्न है, इलाहाबाद बैंक केवल स के खाते में धनराशि क्रेडिट करेगा, द के खाते में नहीं।
यदि इलाहाबाद बैंक द के खाते में संदाय करता है, तो परिणाम होगा-
ऐसा संदाय सम्यक् अनुक्रम में संदाय नहीं माना जाएगा।
इलाहाबाद बैंक ऐसे भुगतान की राशि को लेखीवाल के खाते में डेबिट नहीं कर सकेगा।
इलाहाबाद बैंक सांविधिक संरक्षण का हकदार नहीं होगा।
यह ध्यान में रखना चाहिए कि "एकाउन्ट पेयी" क्रास बिना समानान्तर रेखाओं के भी किया जा सकता है। चेक के बायीं तरफ ऊपर कोने में केवल "एकाउन्ट पेयी" शब्दों को लिखना ही चेक को "एकाउन्ट पेयी" क्रॉस समझा जाएगा। इसी प्रकार चेक के बायीं तरफ ऊपर कोने में केवल किसी बैंक का नाम लिखना ही उस बैंक के नाम से विशेष क्रॉस समझा जाएगा।
वह व्यक्ति जिसके नाम से "एकाउन्ट पेयी" चेक अन्तरित किया गया है अधिनियम की धारा 9 के अधीन एक सम्यक् अनुक्रम धारक नहीं बनता है, क्योंकि यह जाँच का विषय होगा कि क्या अन्तरक जिससे वह चेक प्राप्त किया है, उसका हक दोषपूर्ण है एवं वह यह नहीं समझा जाएगा कि यह विश्वास करने का कि जिस व्यक्ति से उसे अपना हक व्युत्पन्न हुआ है उस व्यक्ति के हक में कोई त्रुटि वर्तमान थी, पर्याप्त हेतुक रखे बिना चेक को प्राप्त किया था। " एकाउन्ट पेयी" चेक केवल एक प्रकार का भुगतानी बैंक को निर्देश है कि वह विशेष चेक को पाने वाले के खाते में संदाय चाहता है।
"एकाउन्ट पेयी" चेक के सम्बन्ध में रिजर्व बैंक का निर्देश-
भारत के रिजर्व बैंक ने एकाउन्ट पेयी चेक के बारे में निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं-
"एकाउन्ट पेयी" चेक के रकम को चेक जारी करने वाले व्यक्ति द्वारा निर्देशित व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य के खाते में क्रेडिट करना अनधिकृत होगा। इसे किसी भी दशा में नहीं किया जाना चाहिए।
यदि बैंक किसी ऐसे व्यक्ति के खाते में क्रेडिट करता है जिसका नाम चेक में पाने वाला नहीं है बिना समुचित निदेश के माना जाएगा। इसे वह अपने जोखिम पर करता है और ऐसे अनधिकृत संदाय के लिए उत्तरदायी होगा। बैंक जो इस निदेश से विचलन करके संदाय करता है, दाण्डिक कार्यवाही के लिए दायी होगा।
जहाँ किसी "एकाउन्ट पेयी" चेक में कोई बैंक पाने वाला है, वहाँ ऐसा पाने वाला बैंक यह सुनिश्चित करेगा कि लेखीवाल से चेक की धनराशि का व्यनन करने का स्पष्ट निर्देश था। एक चेक लेखीवाल को ऐसे निर्देश के अभाव में उसे लौटा दिया जाएगा।