जजों और पब्लिक सर्वेंट के अभियोजन के प्रावधान: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत धारा 218
Himanshu Mishra
5 Oct 2024 7:26 PM IST
1 जुलाई, 2024 को लागू हुई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने पुराने दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया है। इस नए कानून में न्यायाधीशों (Judges), मजिस्ट्रेटों (Magistrates), और पब्लिक सर्वेंट (Public Servants) के अभियोजन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं। इस लेख में हम धारा 218 के प्रावधानों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे, जो कि इन अधिकारियों पर उनके आधिकारिक कर्तव्यों (Official Duties) का निर्वहन करते हुए किए गए अपराधों के लिए अभियोजन (Prosecution) की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं।
न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेटों और पब्लिक सर्वेंट का अभियोजन (Prosecution of Judges, Magistrates, and Public Servants) - धारा 218(1)
धारा 218(1) के तहत, यदि कोई न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट, या ऐसा पब्लिक सर्वेंट, जिसे केवल सरकार की मंजूरी (Sanction) से ही पद से हटाया जा सकता है, अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए किसी अपराध का आरोपित होता है, तो किसी अदालत द्वारा उस अपराध का संज्ञान (Cognizance) तब तक नहीं लिया जा सकता जब तक संबंधित सरकार से पूर्व अनुमति (Previous Sanction) प्राप्त न हो। यह प्रावधान लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 (Lokpal and Lokayuktas Act, 2013) के अनुसार अलग से हो सकता है।
यह प्रावधान निम्नलिखित सरकारी सेवकों पर लागू होता है:
• वे व्यक्ति जो केंद्रीय सरकार (Central Government) के अधीन कार्यरत हैं।
• वे व्यक्ति जो राज्य सरकार (State Government) के अधीन कार्यरत हैं।
उदाहरण: यदि एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपने आधिकारिक कार्य के दौरान किसी अपराध का आरोपित होता है, तो उस पर मुकदमा चलाने के लिए केंद्रीय सरकार की अनुमति की आवश्यकता होगी।
राष्ट्रपति शासन के दौरान विशेष प्रावधान (Provision During President's Rule)
अगर कोई पब्लिक सर्वेंट राष्ट्रपति शासन (President's Rule) के दौरान किसी अपराध का आरोपित होता है, तो राज्य सरकार के बजाय केंद्रीय सरकार से मंजूरी की आवश्यकता होगी।
उदाहरण: यदि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और राज्य के किसी अधिकारी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगता है, तो उस पर मुकदमा चलाने के लिए केंद्रीय सरकार की अनुमति आवश्यक होगी।
मंजूरी के लिए समय सीमा (Time Limit for Sanction)
सरकार को मंजूरी के लिए अनुरोध प्राप्त होने के 120 दिनों के भीतर निर्णय लेना होगा। अगर सरकार इस अवधि के भीतर निर्णय नहीं लेती है, तो इसे माना जाएगा कि मंजूरी दी जा चुकी है।
उदाहरण: अगर किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ मुकदमे के लिए केंद्रीय सरकार से मंजूरी मांगी गई है, और 120 दिन के भीतर कोई निर्णय नहीं लिया जाता, तो माना जाएगा कि सरकार ने मंजूरी दे दी है।
मंजूरी की आवश्यकता से छूट (Exceptions to Sanction Requirement)
कुछ अपराधों के लिए मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती, जैसे धारा 64 (अवैध सभा - Unlawful Assembly), धारा 65 (दंगा - Rioting), और धारा 199 (झूठा बयान - False Statement) के अंतर्गत आने वाले अपराध।
उदाहरण: अगर किसी पब्लिक सर्वेंट पर अवैध सभा में शामिल होने का आरोप लगता है, तो इस मामले में मुकदमे के लिए सरकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी।
सशस्त्र बलों के सदस्यों का अभियोजन (Prosecution of Armed Forces Personnel) - धारा 218(2)
धारा 218(2) सशस्त्र बलों (Armed Forces) के सदस्यों के अभियोजन से संबंधित है। यदि कोई सशस्त्र बल का सदस्य अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपराध का आरोपित होता है, तो मुकदमा चलाने के लिए केंद्रीय सरकार की अनुमति आवश्यक होगी।
उदाहरण: यदि किसी सैनिक पर आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान गलत आचरण का आरोप लगता है, तो उस पर मुकदमा चलाने के लिए केंद्रीय सरकार की मंजूरी अनिवार्य होगी।
राज्य सरकार द्वारा सशस्त्र बलों पर विस्तार (Extension of Armed Forces Protection by State Government) - धारा 218(3)
धारा 218(3) के तहत राज्य सरकार आदेश जारी कर सकती है कि धारा 218(2) के प्रावधान राज्य की उस बल के सदस्यों पर भी लागू हों, जो सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order) बनाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे मामलों में मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक होगी।
उदाहरण: अगर राज्य सरकार किसी पुलिस बल को दंगा नियंत्रण में नियुक्त करती है, तो उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए राज्य सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होगी।
राष्ट्रपति शासन के दौरान सशस्त्र बलों के लिए विशेष प्रावधान (Special Provision for Armed Forces During President's Rule) - धारा 218(4)
जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होता है, तो उस राज्य के सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने वाले बलों के सदस्यों पर मुकदमा चलाने के लिए केंद्रीय सरकार की मंजूरी आवश्यक होती है।
उदाहरण: अगर राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य पुलिस के किसी अधिकारी पर अपराध का आरोप लगता है, तो मुकदमा शुरू करने के लिए केंद्रीय सरकार की अनुमति की आवश्यकता होगी।
अभियोजन की प्रक्रिया का निर्धारण (Determination of Prosecution) - धारा 218(5)
केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार यह निर्णय कर सकती है कि अभियोजन (Prosecution) कौन करेगा, किस अपराध (Offence) के लिए अभियोजन चलेगा, और मुकदमा किस अदालत में चलाया जाएगा।
उदाहरण: अगर किसी सरकारी अधिकारी पर धोखाधड़ी का आरोप लगता है, तो सरकार यह तय करेगी कि मामले की सुनवाई किस अदालत में और किस अभियोजक द्वारा की जाएगी।
धारा 215 और धारा 218 के बीच महत्वपूर्ण अंतर (Key Differences Between Section 215 and Section 218)
धारा 215 में उन अपराधों के लिए सार्वजनिक सेवक द्वारा लिखित शिकायत (Written Complaint) की आवश्यकता होती है, जबकि धारा 218 सरकारी अनुमति (Sanction) पर जोर देती है। धारा 218 सार्वजनिक सेवकों को सरकारी अनुमति के बिना अभियोजन से बचाती है, जबकि धारा 215 में विशिष्ट अपराधों के लिए शिकायत की आवश्यकता होती है।
उदाहरण: यदि किसी सरकारी अधिकारी पर धारा 215 के तहत भ्रष्टाचार का आरोप है, तो अभियोजन के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी द्वारा लिखित शिकायत आवश्यक होगी। जबकि धारा 218 के तहत, आधिकारिक कर्तव्यों के दौरान किए गए किसी अपराध के लिए अभियोजन से पहले सरकारी अनुमति की आवश्यकता होगी।
धारा 218, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत, न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेटों, पब्लिक सर्वेंट और सशस्त्र बलों के सदस्यों को आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए किए गए अपराधों के अभियोजन के लिए विशेष सुरक्षा प्रदान करती है।
यह प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे बिना उचित जांच-पड़ताल और सरकारी मंजूरी के न चलाए जाएं। हालांकि, कुछ मामलों में समय सीमा और अपवाद दिए गए हैं ताकि न्याय में देरी न हो।