वारंट मामलों में मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रायल की प्रक्रिया: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 261- 263
Himanshu Mishra
15 Nov 2024 9:32 PM IST
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) वॉरंट मामलों (Warrant Cases) के ट्रायल की विस्तृत प्रक्रिया प्रदान करती है। वॉरंट मामले वे होते हैं जिनमें अपराध की सजा दो वर्षों से अधिक हो सकती है।
अध्याय XX इस प्रक्रिया को नियंत्रित करता है और पुलिस रिपोर्ट पर आधारित मामलों (Police Report Based Cases) के लिए स्पष्ट नियम तय करता है। यहां धारा 261, 262 और 263 को सरल तरीके से समझाया गया है।
धारा 261: प्रारंभिक प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित करना (Compliance with Preliminary Requirements)
धारा 261 में कहा गया है कि जब भी वॉरंट मामले में ट्रायल शुरू होता है, मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना होता है कि धारा 230 के प्रावधानों (Provisions of Section 230) का पालन किया गया है। इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि आरोपी को सभी आवश्यक दस्तावेज़ उपलब्ध कराए गए हैं ताकि वह अपना बचाव तैयार कर सके।
उदाहरण (Example):
अगर किसी व्यक्ति पर चोरी का आरोप है, तो मजिस्ट्रेट को यह देखना होगा कि पुलिस रिपोर्ट, गवाहों के बयान और अन्य संबंधित दस्तावेज़ आरोपी को दिए गए हैं या नहीं। अगर ऐसा नहीं हुआ है, तो ट्रायल आगे नहीं बढ़ सकता। यह कदम यह सुनिश्चित करता है कि आरोपी को उसके खिलाफ आरोपों की पूरी जानकारी हो।
धारा 262: आरोपमुक्ति (Discharge) के लिए आवेदन
धारा 262 आरोपी को यह अधिकार देती है कि वह दस्तावेज़ मिलने के 60 दिनों के भीतर आरोपमुक्ति (Discharge) के लिए आवेदन कर सकता है।
आरोपमुक्ति की प्रक्रिया (Process of Discharge):
मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट, सबूतों की समीक्षा करता है और आवश्यकता होने पर आरोपी से बातचीत कर सकता है। यह बातचीत शारीरिक रूप से (Physically) या ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Audio-Video Electronic Means) से की जा सकती है।
अगर मजिस्ट्रेट यह पाते हैं कि आरोपी के खिलाफ आरोप निराधार (Groundless) हैं, तो वह उसे आरोपमुक्त कर देते हैं और इसका कारण रिकॉर्ड करते हैं।
उदाहरण (Example):
मान लीजिए किसी व्यक्ति पर अवैध घुसपैठ (Trespassing) का आरोप है, लेकिन पुलिस रिपोर्ट और दस्तावेज़ इस बात का कोई प्रमाण नहीं देते। आरोपी आरोपमुक्ति के लिए आवेदन कर सकता है। मजिस्ट्रेट, सबूतों की समीक्षा के बाद, अगर आरोपों को बेबुनियाद पाते हैं, तो आरोपी को बरी कर सकते हैं।
धारा 263: आरोप तय करना (Framing of Charges)
अगर मजिस्ट्रेट को यह विश्वास हो कि आरोपी ने कथित अपराध किया है, तो धारा 263 के तहत आरोप तय (Framing of Charges) किया जाता है। यह आरोप पहली सुनवाई (First Hearing) की तारीख से 60 दिनों के भीतर लिखित रूप में तय किया जाना चाहिए।
आरोप तय होने के बाद, मजिस्ट्रेट इसे आरोपी को पढ़कर और समझाकर बताते हैं। इसके बाद आरोपी से पूछा जाता है कि वह अपराध स्वीकार करता है (Plead Guilty) या मामले को लड़ना चाहता है।
उदाहरण (Example):
मान लीजिए किसी व्यक्ति पर धोखाधड़ी (Cheating) का आरोप है। पुलिस रिपोर्ट और सबूत जैसे वित्तीय लेन-देन के रिकॉर्ड और गवाहों के बयान पर्याप्त आधार प्रदान करते हैं। मजिस्ट्रेट, सबूतों के आधार पर, आरोपी के खिलाफ धोखाधड़ी का आरोप तय करते हैं। आरोपी को यह बताया जाता है और पूछा जाता है कि वह आरोप स्वीकार करता है या नहीं।
धारा 261, 262 और 263 का आपस में संबंध (Interconnection Between Sections)
धारा 261, 262 और 263 का उद्देश्य ट्रायल प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और निष्पक्ष बनाना है-
• धारा 261 यह सुनिश्चित करती है कि प्रारंभिक प्रक्रियाओं का पालन हो।
• धारा 262 आरोपी को आरोप चुनौती देने का अवसर देती है।
• धारा 263 यह निर्धारित करती है कि पर्याप्त सबूत मिलने पर आरोप तय किए जाएं।
समयसीमा (Timelines) के जरिए निष्पक्षता सुनिश्चित करना
इन धाराओं का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह समयसीमा का पालन करती हैं। धारा 262 आरोपी को 60 दिनों का समय देती है आरोपमुक्ति के लिए आवेदन करने के लिए। वहीं, धारा 263 मजिस्ट्रेट को यह निर्देश देती है कि पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय कर लिए जाएं। इससे न्याय में देरी से बचा जा सकता है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत धारा 261, 262 और 263 वॉरंट मामलों की सुनवाई के लिए एक सुव्यवस्थित और संतुलित प्रक्रिया प्रदान करती हैं। प्रारंभिक प्रक्रियाओं का पालन, आरोपमुक्ति का अवसर, और आरोप तय करने की स्पष्ट प्रक्रिया न्याय के सिद्धांतों को सुनिश्चित करती है।
इन प्रावधानों के माध्यम से, अदालतें न्यायपालिका में जनता का विश्वास बनाए रख सकती हैं, आरोपी के अधिकारों की रक्षा कर सकती हैं और समय पर न्याय प्रदान कर सकती हैं।