मजिस्ट्रेट द्वारा शिकायत खारिज करने की प्रक्रिया - भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 226
Himanshu Mishra
14 Oct 2024 9:57 AM IST
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) ने 1 जुलाई 2024 से दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code - CrPC) को प्रतिस्थापित कर दिया है। इस नई संहिता के तहत न्यायिक प्रक्रिया में कई सुधार और प्रावधान लाए गए हैं। इसमें धारा 226 के माध्यम से यह व्यवस्था की गई है कि किस स्थिति में मजिस्ट्रेट किसी शिकायत को खारिज कर सकता है।
यह प्रावधान, धारा 223 से 225 में वर्णित प्रक्रियाओं के बाद लागू होता है और यह तय करता है कि शिकायत को ट्रायल (Trial) के लिए आगे बढ़ाने से पहले उसकी वैधता को कैसे परखा जाए।
धारा 226: शिकायत खारिज करने के आधार
धारा 226 के अनुसार, अगर मजिस्ट्रेट यह पाता है कि शिकायतकर्ता और गवाहों के शपथ पर दिए गए बयान, या धारा 225 के तहत की गई जांच के परिणाम, इस बात की पुष्टि नहीं करते कि मामला आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त आधार हैं, तो वह शिकायत को खारिज कर सकता है। शिकायत खारिज करने के हर मामले में मैजिस्ट्रेट को इसके कारणों को संक्षेप में दर्ज करना होगा।
यह प्रावधान इस बात की गारंटी देता है कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो और केवल वही शिकायतें ट्रायल के लिए आगे बढ़ें जिनके पास ठोस आधार हो।
धारा 226 के उपयोग के उदाहरण
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति किसी पर चोरी का आरोप लगाता है, तो मजिस्ट्रेट सबसे पहले धारा 223 के तहत शिकायतकर्ता और गवाहों के शपथ पर बयान लेगा। अगर धारा 225 के तहत की गई जांच में यह पता चले कि आरोपी घटना के समय उस स्थान पर मौजूद नहीं था और उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है तो मजिस्ट्रेट यह निर्णय ले सकता है कि मामला आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है।
इस स्थिति में शिकायत खारिज कर दी जाएगी और मैजिस्ट्रेट द्वारा खारिज करने के कारण दर्ज किए जाएंगे, जैसे कि सबूत की कमी या गवाहों की गवाही में विरोधाभास।
धारा 223 से 225 के साथ संबंध: कदम-दर-कदम विवरण
धारा 226 के तहत शिकायत खारिज करने का निर्णय धारा 223, 224, और 225 की प्रक्रियाओं से जुड़ा हुआ है, जो कि खारिज किए जाने के निर्णय से पहले उठाए जाने वाले कदमों को स्पष्ट करते हैं।
धारा 223: शिकायतकर्ता और गवाहों की जांच (Examination of Complainant and Witnesses)
धारा 223 में प्रावधान है कि जब मजिस्ट्रेट किसी अपराध की शिकायत पर संज्ञान लेता है तो उसे शिकायतकर्ता और गवाहों से शपथ पर साक्ष्य लेना होगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि शिकायत के आधार को पहले ही जांचा-परखा जाए, ताकि केवल ठोस आधार वाली शिकायतें ही आगे बढ़ें।
उदाहरण के तौर पर, अगर किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ दुर्व्यवहार की शिकायत की जाती है तो मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता के बयान और गवाहों की गवाही को पहले परखेगा ताकि यह तय किया जा सके कि मामला ट्रायल के लिए पर्याप्त है या नहीं।
धारा 224: मैजिस्ट्रेट की क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) नहीं होने की स्थिति में प्रक्रिया
धारा 224 के तहत, अगर शिकायत किसी ऐसे मजिस्ट्रेट के पास की जाती है, जिसके पास उस अपराध का अधिकार नहीं है, तो वह शिकायतकर्ता को सही अदालत में पेश होने का निर्देश देगा। जैसे ही सही अदालत में शिकायत पहुंचेगी, धारा 223 और 225 के तहत वही प्रक्रियाएँ लागू होंगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शिकायत की जांच हो और आगे की कार्रवाई के लिए पर्याप्त आधार हैं या नहीं।
धारा 225: मजिस्ट्रेट द्वारा जांच या जाँच का आदेश (Inquiry or Investigation)
धारा 225 यह प्रावधान करता है कि मजिस्ट्रेट स्वयं मामले की जांच कर सकता है या किसी पुलिस अधिकारी या अन्य योग्य व्यक्ति से जांच का आदेश दे सकता है। यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब आरोपी क्षेत्र से बाहर रहता है या मामले में अधिक विस्तृत जांच की आवश्यकता होती है।
उदाहरण के लिए, अगर किसी धोखाधड़ी के मामले में दस्तावेजों की सत्यता की जांच करनी हो तो मजिस्ट्रेट धारा 225 के तहत विस्तृत जांच का आदेश दे सकता है ताकि यह तय किया जा सके कि मामला आगे बढ़ाने योग्य है या नहीं।
शिकायत खारिज करने का महत्व और इसके परिणाम (Importance and Implications)
धारा 226 न्यायिक प्रक्रिया को कुशल बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह बिना किसी ठोस आधार वाली शिकायतों को खारिज करने का प्रावधान करती है।
यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि केवल वे मामले ही ट्रायल के लिए आगे बढ़ें, जिनके पास अभियोजन के लिए एक उचित आधार हो। इससे न्यायालय का समय और संसाधन बचते हैं और मुकदमेबाजी के दुरुपयोग को रोका जाता है।
जांच के परिणाम के आधार पर खारिज करने का उदाहरण
मान लीजिए, एक व्यक्ति अपने पड़ोसी पर मारपीट का आरोप लगाता है। मैजिस्ट्रेट, धारा 223 के तहत शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान लेता है और फिर धारा 225 के तहत जांच का आदेश देता है।
अगर जांच के परिणाम से यह पता चले कि शिकायतकर्ता का आरोप किसी व्यक्तिगत विवाद से प्रेरित था और मारपीट के कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं, तो मैजिस्ट्रेट शिकायत को धारा 226 के तहत खारिज कर देगा। खारिज करने का कारण दर्ज किया जाएगा, जैसे कि सबूत की कमी या गवाहों के बयान में विसंगति।
धारा 226 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो और केवल उन मामलों को आगे बढ़ाया जाए जिनके पास ठोस आधार हो। धारा 223, 224, और 225 की प्रक्रियाओं के बाद, मैजिस्ट्रेट यह तय करता है कि शिकायत ट्रायल के लिए आगे बढ़ेगी या नहीं।
इन धाराओं का संयुक्त उपयोग यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया संपूर्ण, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण हो। जो शिकायतें बिना किसी ठोस आधार के होती हैं, उन्हें छानकर बाहर किया जा सके, जबकि वास्तविक शिकायतें ट्रायल के लिए आगे बढ़ें।
पाठक Live Law Hindi पर पिछले लेखों को पढ़ सकते हैं, जहाँ धारा 223, 224 और 225 की प्रक्रियाओं की और भी विस्तृत जानकारी दी गई है, जो कि धारा 226 में शिकायत खारिज करने की प्रक्रिया के साथ कैसे संबंधित हैं।