NI Act में चेक पर खींची जाने वाली लाइन्स का मतलब
Shadab Salim
19 April 2025 10:02 AM

चेक पर जो लाइन खींची जाती है उसे क्रॉस कहा जाता है। उसके अलग अलग मतलब होते हैं। चेकों के क्रॉस सम्बन्धी प्रावधान परक्राम्य लिखत अधिनियम की धाराएं 123 से 131 तक उपबन्धित हैं। 1974 में अधिनियम 33 की धारा 2 से इन उपबन्धों को ड्राफ्ट पर भी प्रयोज्य किया गया।
चेकों को क्रॉस की प्रथा बहुत अद्यतन प्रारम्भ की है। मि० इरविन एक बैंक कर्मचारी जिन्होंने समाशोधन गृह के विचार को प्रस्तुत किया था, क्रॉस को भी प्रारम्भ किया था, इसलिए उन्हें क्रॉस के पिता के रूप में कहा जा सकता है। प्रारम्भ में चेकों पर बैंकर्स अपने नाम का ठप्पा लगाते थे। इससे समाशोधन गृह में चेकों को जाने में सुरक्षा प्राप्त होती थी। इस क्रॉस के फायदों को देखकर व्यापारिक व्यक्तियों ने चेकों को रेखांकित करना प्रारम्भ किया और यह इतना प्रचलित हो गया कि इसे विधिक मान्यता प्राप्त हो गयी।
क्रॉस की विधिक मान्यता- इंग्लैण्ड में 1856 के पूर्व इसे सामान्य रूप से बैंकर्स को एक निर्देश माना जाता था जो चेक का तात्विक भाग नहीं माना जाता था और 1856 में यह विधायन का विषय बना। बेलामी बनाम मरजोरी बक्स, यह नियम स्थापित किया गया कि क्रॉस स्वयं चेक का भाग नहीं होता है और इसे परिवर्तित नहीं करता है। पुनः साइमन्स बनाम टेलर में यह धारित किया गया कि क्रॉस चेक का अभिन्न अंग नहीं होता है और इसे मिटाना कूटरचना नहीं होता है। परन्तु 1859 के अधिनियम से उक्त सभी निर्णय उलट दिए गए और यह स्थापित किया गया कि क्रॉस चेक का अभिन्न अंग होता है, और इसका मिटाना या परिवर्तन कूटरचना होता है। जिससे चेक दूषित होता है।
इंग्लिश विधि का विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 उपबन्धित करता है-
"इस अधिनियम द्वारा अधिकृत क्रॉस चेक का तात्विक भाग होता है और यह किसी व्यक्ति के लिए विधिपूर्ण नहीं होगा कि वह इसे मिटा दे या इस अधिनियम से अधिकृत के सिवाय क्रॉस में कुछ जोड़े या परिवर्तन करे।"
हालांकि भारतीय विधि में उक्त दोनों बिन्दुओं पर कोई विहित प्रावधान नहीं है, लेकिन अब यह विधि का मान्य सिद्धान्त है कि क्रॉस चेक का तात्विक भाग होता है। हालांकि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 89 में क्रॉस का परिवर्तन एवं भुगतानी बैंक की आबद्धता उपबन्धित है।
क्रॉस का उद्देश्य- क्रॉस क्यों एक चेक के द्वारा निश्चित बैंक को एक निश्चित धनराशि संदाय करने का आदेश अन्तर्निहित करता है एवं चेक का लेखीवाल बैंक पर संदाय करने की कोई शर्त आरोपित नहीं कर सकता है। बैंक सामान्यतया अपनी संदाय करने की अपनी आबद्धता को चेक के धारक को कारबार दिवस पर बैंकिंग समय में संदाय द्वारा पूरा करता है। चेक का संदाय गलत व्यक्ति को हो सकता है एवं विशेषकर वाहक चेक का क्योंकि वाहक चेक के संदाय में बैंकर वाहक की पहचान अपेक्षित नहीं करता है। केवल आदेशित चेक के संदाय में केवल बैंक धारक के पहचान से आश्वस्त होकर संदाय करता है। इस प्रकार खुले चेक का दुरुयोग हो सकता है एवं अवांछनीय व्यक्ति कपट एवं कूटरचना से सभी बैंकों के सम्बन्ध में बैंक एवं ग्राहक को नुकसान कारित कर सकते हैं।
एक खुला चेक सदैव जोखिम के अधीन होता है, क्योंकि इसका नकदीकरण कोई भी अनधिकृत व्यक्ति कर सकता है और इसे भी पता नहीं लगाया जा सकता है कि किसने इसे नकदीकरण कराया है। हालांकि एक खुला चेक धारक के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के खाते में भी जमा किया जा सकता है। जहाँ एक खुला चेक खो जाता है या चोरी चला जाता है तो पाने वाला या चोर ऊपरवाल बैंक से नकदीकरण करा सकता है जब तक कि लेखीवाल ने उसके संदाय को रोका नहीं है। इससे बचने के लिए व्यापारिक समुदाय ने चेकों का क्रॉस प्रारम्भ किया और यह इतना प्रचलित हो गया कि इसे विधि द्वारा मान्यता दी गयी एवं विधि की शास्ति भी रखता है। यह चेक को सुरक्षा एवं संरक्षण को सुनिश्चित करता है।
चेक का क्रॉस इसके परक्रामणीयता को प्रभावित नहीं करता है, परन्तु यह सही स्वामी को सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान करता है, क्योंकि ऐसे चेकों का संदाय किसी बैंक के माध्यम से ही किया जाता है। इस प्रकार यह अनधिकृत व्यक्ति द्वारा संदाय लेने के खतरे को कम करता है। रेखांकित चेक के संदाय में इसे आसानी से पता लगाया जा सकता है कि इसका संदाय किसे और किसके खाते से किया गया है।
अत: चेकों को रेखांकित किया जाता है जिससे खुले चेकों के गलत व्यक्तियों के हाथ में चले जाने से होने वाली हानियों को बचाया जा सके। रेखांकित चेकों का कार्य है कि ऐसे चेकों का संदाय बैंक के खिड़की पर नहीं किया जा सकता एवं इन्हें एक बैंक के माध्यम से संग्रहण द्वारा जमा किया जाता है और ऐसे धनराशि का संग्रहण कर चेक जमा करने वाले अर्थात् धारक के खाते में क्रेडिट (जमा) किया जाता है।
रेखांकित चेकों के सम्बन्ध में निम्नलिखित दो बैंकों की भूमिका रहती है-
भुगतानी बैंक, अर्थात् ऊपरवाल बैंक, और
संग्राहक बैंक, अर्थात् वह बैंक जो चेक की धनराशि को संग्रहण करता है। विशेष रेखांकित चेक की दशा में संग्राहक बैंक केवल वही बैंक होगा जिसके नाम से विशेष क्रॉस किया गया है।
क्रॉस क्या है?
एक चेक खुला हो सकता है या रेखांकित जहाँ चेक के मुख भाग (चेहरे) पर दो आड़ी समानान्तर रेखाएं बायीं तरफ ऊपरी भाग पर खिंची रहती है, उसे रेखांकित चेक कहते हैं। "चेक के मुख भाग पर दो आड़ी समानान्तर रेखाओं को खींचना ही चेक का क्रॉस होता है। धारा 123 एवं 124 के अध्ययन से चेकों के क्रॉस का सामान्य अर्थ में चेक के मुख भाग पर दो आड़ी समानान्तर रेखाओं को खींचना और इनके बीच कुछ संक्षेपाक्षर जैसे "एण्ड कं०" आदि लिखना या बिना इसके ही चेकों का क्रॉस होता है।
चेक का क्रॉस भुगतानी बैंक को यह निर्देश होता है कि ऐसे चेकों का संदाय केवल बैंक को हो किया जाए और जब यह कर दिया जाता है तो क्रॉस का सम्पूर्ण प्रयोजन पूरा हो जाता है। क्रॉस का प्रयोजन चेक का संदाय एक बैंकर को करने से होता है, जिससे इसे सुविधापूर्वक पता लगाया जा सकता है कि किसके प्रयोग के लिए रकम प्राप्त की गई है और धारक को विवश करना है कि वह इसे बैंक के ही माध्यम से उपस्थापित करे। क्रॉस भुगतानी बैंक के लिए एक चेतावनी होता है।
क्रॉस होने के लिए ऐसी रेखाएं होनी चाहिए-
चेक के मुख भाग पर बायों तरफ ऊपरी भाग पर,
समानान्तर,
आड़ी, एवं
कुछ संक्षेपाक्षर जैसे "एण्ड कं०". "अपरक्रामणीय" आदि के साथ या बिना इसके। "एकाउण्ट पेयी" क्रॉस बिना आड़ी समानान्तर रेखाओं के किया जाता है।
यह कोई आवश्यक नहीं है ज्यामिति भाव में ऐसी समानान्तर रेखाएं चेक के मुख भाग पर खींची जाए। अब यह स्थापित सिद्धान्त हो गया है कि इसे चेक के मुखभाग बायीं तरफ ऊपर, क्रॉस किया जाना चाहिए।
हालांकि इस प्रकार के चिन्हों के प्रयोग से चेक की विधिमान्यता प्रभावित हो सकती है।
क्रॉस के प्रकार एवं तरीका
क्रॉस के दो प्रकार होते हैं
प्रथम, सामान्य रेखांकन, और द्वितीय, विशेष रेखांकन, परन्तु प्रत्येक क्रॉस कई रूपों में हो सकता है।