NI Act में किसी इंस्ट्रूमेंट में बदलाव करना

Shadab Salim

12 April 2025 3:22 AM

  • NI Act में किसी इंस्ट्रूमेंट में बदलाव करना

    यह सामान्य सिद्धान्त है कि कोई भी तात्विक बदलाव लिखत को, ऐसे बदलाव के समय उसका पक्षकार है, के विरुद्ध शून्य बनाने का प्रभाव रखता है। परन्तु ऐसा लिखत बदलाव के पूर्व के पक्षकारों में विधिमान्य बना रहेगा।

    यह नियम इस सिद्धान्त पर आधारित है कि ऐसे बदलाव से लिखत की पहचान नष्ट होती है और पक्षकारों को ऐसी परिस्थिति में दायी ठहराना होगा जिसके लिए उन्होंने कभी करार न किया हो। लिखत का बदलाव उसके कूटरचना से भिन्न होता है कूटरचना लिखत को निष्प्रभावी एवं शून्य बनाता है।

    इस धारा के अधीन बदलाव के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए

    साशयित परिवर्तन

    बदलाव का तात्विक होना

    मूल पक्षकारों के सामान्य आशय को पूरा करने के लिए न हो

    अन्य पक्षकार उसके प्रति सम्मत नहीं है

    जहाँ बदलाव दृश्यमान नहीं है।

    साशयित परिवर्तन- केवल साशय बदलाव लिखत की विधिमान्यता को प्रभावित करती है।

    बदलाव साशय होना चाहिए। दूसरे शब्दों में यह सिद्धान्त घटनावश पर प्रयोज्य नहीं होता है। इस बिन्दु पर सूचक प्राधिकारी प्रिवी कौंसिल ने हांग कांग एण्ड संघई बैंकिंग कार्पोरेशन बनाम लीली शी में धारित किया है :

    ली ली शी (प्रत्यर्थी) को पति ने £500 का प्रत्येक दो चेक दिया। उसने चेक को अपने वस्त्र के पाकेट में रखकर भूल गई। वस्त्र को उसने धोया, सुखाया और माड़ों लगाया। जब वह इसे प्रेस करने चली तो उसने पाकेट में कागज का लुगदी पायी। इसके पश्चात् उसने चेक को कुछ समय तक चेक को स्थापित किया सिवाय नम्बर को छोड़कर बैंकर ने पेमेंट करने से मना कर दिया। बैंक पेमेंट के लिए आबद्ध माना गया।

    बदलाव का तात्विक होना- द्वितीय यह कि बदलाव तात्विक होना चाहिए। यह धारित किया गया है कि बदलाव तात्विक है, यदि वह लिखत के कारोबार प्रभाव को परिवर्तित करता है, यदि उसका कारोबार प्रभाव है।

    एक वाद में कहा गया है-

    "बदलाव के प्रकृति का परीक्षण किया जाना चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि क्या यह लिखत को पूर्णता में या उसके मर्म में है या नहीं। यदि ऐसा है तब लिखत नष्ट हो जाता है, परन्तु यह उसके एक छोर को दूषित करता है, लिखत जीवित बना रहेगा, यद्यपि कि निःसन्देह दोषयुक्त होगा।"

    यह तथ्य का प्रश्न होगा कि क्या बदलाव सम्पूर्ण को दूषित करता है या यह केवल क्षतिकारक है। कलियन्ना गाउण्डर बनाम पलानी गाउण्डर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह धारित किया है कि तात्विक बदलाव का अर्थ है बदलाव जो लिखत के विधि पहचान, चरित्र, शर्तों को परिवर्तित करे या पक्षकारों के सम्बन्धों में मूल बदलाव करे, तात्विक बदलाव है।

    पुनः लूनकरन सेठिया बनाम इवान एण्ड जॉन में कोर्ट ने यह धारित किया है कि तात्विक बदलाव वह है जो लिखत के पक्षकारों का सम्बन्ध मूलतः अभिनिश्चित है उनके अधिकारों, दायित्वों एवं विधिक स्थिति में बदलाव करता है या पक्षकार जो मूल लिखत में निष्पादित है उनके आबद्धता में अन्यथा हानिकारक है।

    तात्विक बदलाव से मूल लिखत की पहचान नष्ट हो जाती है और पक्षकार जो मूल लिखत के अधीन दायित्व से करारित थे परिवर्तित लिखत द्वारा दायी नहीं बनाए जा सकते जिसके लिए उन्होंने कभी भी सहमति नहीं दी थी। यदि कोई लिखत जिसे एक पक्षकार ने कोई तात्विक बदलाव किया है उससे दूसरे पक्षकार को बाध्य बनाना है, तो यह सामान्य सहमति से संविदा के निबन्धनों में एक पक्षीय कार्यवाही से परिवर्तित करना होगा या दूसरे के किए गए निबन्धनों में बिना दूसरे को सहमति से बदलाव होगा। इस प्रकार जो व्यक्ति लिखत में तात्विक बदलाव करता है या अपने अधिकारों को लिखत के अधीन खोने का जोखिम रखता है।

    हाल्सबरी लॉज ऑफ इंग्लैण्ड में यह सम्प्रेक्षित किया गया है कि: "ऐसे बदलाव आबद्धकारी पक्षकार को सहमति के बिना किया गया जैसा कि लिखत को रद्द करने से है।"

    वही प्रभाव उत्पन्न करेगा रंगास्वामी बनाम गनेसन के मामले में यह धारित किया गया है कि कैलेण्डर वर्ष के अनुसार माह और वर्ष में बदलाव तात्विक बदलाव नहीं होगा।

    तात्विक बदलाव के उदाहरण निम्नलिखित के सम्बन्ध में बदलाव तात्विक बदलाव हैं:-

    तिथि, (चेक को विधिमान्य बनाने को छोड़कर)

    पेमेंट का समय,

    पेमेंट का स्थान,

    धनराशि,

    व्याज दर

    पेमेंट का माध्यम,

    नए पक्षकार/पक्षकारों को जोड़ने,

    पाने वाला के नाम, और

    जहाँ चेक संक्षेपित चेक का कोई इलेक्ट्रानिक प्रतिरूप है यहाँ ऐसे इलेक्ट्रानिक प्रतिरूप और संक्षेपित चेक के प्रकट शब्दों में कोई अन्तर तात्विक बदलाव होगा।

    इंग्लिश लॉ बिल आफ एक्सचेंज, 1882 के अनुसार निम्नलिखित तात्विक बदलाव है

    तिथि सम्बन्धी,

    धनराशि सम्बन्धी,

    पेमेंट का समय,

    पेमेंट का स्थान,

    जहाँ विनिमय पत्र को सामान्य रूप में प्रतिग्रहीत किया जाता है, परन्तु प्रतिग्रहीता के सहमति के बिना पेमेंट स्थान जोड़ना।

    एक वचन पत्र बिना समुचित स्टाम्प का निष्पादित था। वादी ने इसके पश्चात् इस कमी को पूरा करने के लिए आवश्यक स्टाम्प लगाया। यह धारित किया गया कि वचन पत्र में बदलाव था जिससे धारक (वादी) को वाद संस्थित करने के लिए परिवर्तित लिखत में हकदार नहीं माना गया।

    कोच बनाम डिक्स में द ने लन्दन में लिखे गये विनिमयपत्र को प्रतिग्रहीत किया। एक पृष्ठांकिती ने लेखीवाल के समझौते के साथ लिखत के लिखने के स्थान को लन्दन से जर्मनी में एक स्थान "डीसलोनजेन" परिवर्तित किया। कोर्ट ऑफ अपील ने यह धारित किया कि द बिल के अधीन दायी नहीं था, क्योंकि यह तात्विक रूप में बदलाव था। लार्ड जस्टिस स्कूटान ने संगत सिद्धान्त को स्पष्ट किया : "लिखत के स्थान लन्दन को हटाकर डोसलीनजन लिखना एक तात्विक बदलाव है, क्योंकि इससे यह एक विदेशी बिल हो जाता है। आंग्ल विधि में देशी बिल एवं विदेशी बिल में बिना किसी सन्देह के उत्तर है, इसका एक भिन्न विधिक लक्षण होगा।

    अत: यह केवल विचार करने के लिए बचता है कि क्या एक बदलाव जो लिखत के पक्षकारों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है, क्या तात्विक बदलाव है। इस मत का हूँ कि ऐसा कोई परिवर्तन, चाहे जो पक्षकारों के लिए लाभकारी हो या हानिकारक हो किया गया परिवर्तन, ऐसा बदलाव है जो लिखत को शून्य बनाता है। इस सम्बन्ध में प्रतिभूतियों के विधि के समान हो विधि है जैसा कि मुख्य न्यायाधीश लार्ड कम्पबेल ने गार्डेनर बनाम वाश में स्पष्ट किया है। परन्तु हम यह पाते हैं कि वह दायित्व से उन्मोचित हो जाता है यदि परिवर्तित लिखत मूल लिखत से भिन्न प्रवर्तित होता है, चाहे बदलाव हानिकारक हो या न हो जहाँ वचन पत्र की तिथि परिवर्तित होती है जिससे लिखत के अधीन कार्यवाही परिसीमा अवधि के अन्दर बना रहे, लिखत शून्य था।

    एक मुद्रित वचन पत्र में सभी प्रविष्टियां सिवाय ब्याज कालम के भरी हुई थी वचनग्रहीता ने बिना रचयिता के परामर्श से 11/2 अंक भर दिया। यह धारित किया गया कि यह तात्विक बदलाव था और वचन पत्र के रचयिता को उन्मोचित करता है। पी० एल० एस० चेट्टियार बनाम पी० एल० यू० चेट्टियार, के मामले में वचन पत्र जारी करने के पश्चात् वादी ने प्रतिवादी के सहमति के बिना ब्याज दर में बदलाव किया ऐसा बदलाव तात्विक बदलाव धारित किया गया अतः धारा 87 के अधीन शून्य अप्रवर्तनीय माना गया।

    राम खिलोना बनाम सरदार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णीत किया है कि बदलाव जो किसी भी तरह से लिखत की वैधता या प्रवर्तनीयता को प्रभावित नहीं करता है, यद्यपि कि पश्चात्वर्ती किया गया है, तात्विक बदलाव नहीं होता है।

    नारायन स्वामी बनाम मदन लाल के मामले में जो दूसरे पक्षकार को हानिकारक ढंग से उसके निवेदन को प्रभावित करता है, तात्विक बदलाव है। पुनः एम० एम० अनिरूधन बनाम धामकोस बैंक लि० में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णीत किया है कि कोई गैर-तात्विक बदलाव तात्विक बदलाव नहीं हो सकता है, परन्तु बदलाव जो दूसरे पक्षकार के अधिकारों को हानिकारक ढंग से प्रभावित करता है, तात्विक बदलाव है।

    मूल पक्षकारों के आशय को पूरा करने वाले बदलाव नहीं होना- ऐसा बदलाव जो मूल पक्षकारों के आशय को पूरा करने के लिए किया गया है, तात्विक बदलाव नहीं होता है और लिखत की विधिमान्यता को प्रभावित नहीं करता है। यह भी उल्लेखनीय है कि सहमतिजन्य बदलाव लिखत की वैधता को प्रभावित नहीं करते हैं।

    ये पक्षकार जो बदलाव पर सहमति नहीं देते- तात्विक बदलाव दो पक्षकारों के बीच किया जाता है, जिससे पक्षकारों के अधिकार एवं आबद्धता प्रभावित होते हैं, परन्तु ऐसे बदलाव पर जो पूर्विक पक्षकार अपनी सहमति नहीं देते हैं। लिखत के अधीन अपनी आवद्धता से उन्मोचित हो जाते हैं।

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