चेक बाउंस केस में कितनी स्टेज होते हैं?

Shadab Salim

22 July 2024 5:08 AM GMT

  • चेक बाउंस केस में कितनी स्टेज होते हैं?

    चेक का केस एक आपराधिक समरी ट्रायल का केस है अर्थात चेक बाउंस एक छोटा प्रकरण होता है जिसे कोर्ट जल्दी से जल्दी सुनकर अपना फैसला देती है। लेकिन वास्तविकता में यह केस भी लंबे समय तक अदालतों में चलने लगे हैं क्योंकि आजकल यह केस बहुत बड़ी संख्या में हो गए हैं।

    चेक बाउंस का केस निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 (NI Act) की धारा 138 के अंतर्गत संस्थित किया जाता है। जिस भी समय चेक प्राप्त करने वाला व्यक्ति अपने को भुगतान किए गए रुपए नकद या अपने बैंक खाते में प्राप्त करना चाहता है तो निर्धारित दिनांक को बैंक में चेक को भुनाने के लिए डालता है परंतु अनेक कारणों से चेक बाउंस हो सकता है। जैसे बैंक से खाता बंद कर दिया जाना, अकाउंट में पैसा नहीं होना, या फिर चेक को खाते में लगने से रोक दिया जाना। जब भी चेक अनादर होता है तो ऐसे अनादर पर चेक को प्राप्त करने वाले व्यक्ति के पास चेक बाउंस का प्रकरण दर्ज कराने का अधिकार होता है।

    चेक बाउंस का प्रकरण एक क्रिमिनल केस होता है जिसकी कार्यवाही एक क्रिमिनल कोर्ट मजिस्ट्रेट के कोर्ट द्वारा संपन्न की जाती है। लेनदेन के मामले सिविल होते हैं परंतु चेक बाउंस के प्रकरण को आपराधिक प्रकरण में रखा गया है।

    लीगल नोटिस-

    चेक बाउंस के प्रकरण की शुरुआत लीगल नोटिस के माध्यम से की जाती है। जब चेक बाउंस होता है तो इसके बाउंस होने के 30 दिनों के भीतर चेक देने वाले व्यक्ति को एक लीगल नोटिस देना होता है जिसे अधिकृत अधिवक्ता द्वारा भेजा जाता है। जिस लीगल नोटिस में चेक बाउंस हो जाने के कारण और अपना भुगतान नहीं हो पाने के कारण किए जाते हैं तथा 15 दिवस के भीतर अपनी राशि चेक देने वाले व्यक्ति से वापस लिए जाने का निवेदन किया जाता है।

    कोई भी चेक बाउंस के प्रकरण में लीगल नोटिस भेजने की अवधि चेक बाउंस होने की दिनांक से 30 दिन के भीतर करना होती है। 30 दिन के ऊपर लीगल नोटिस भेजा जाता है तो न्यायालय में चेक बाउंस प्रकरण को संस्थित किए जाने का अधिकार चेक को रखने वाला व्यक्ति खो देता है।

    जो 15 दिवस का समय भुगतान किए जाने के लिए या चेक बाउंस के संबंध में मध्यस्थता करने के लिए चेक देने वाले व्यक्ति को दिया जाता है उस समय के बीत जाने के बाद 30 दिवस के भीतर न्यायालय में चेक बाउंस का प्रकरण दर्ज कर दिए जाने का अधिकार चेक प्राप्त करने वाले पक्षकार को प्राप्त हो जाता है। किसी युक्तियुक्त कारण से न्यायालय इस 30 दिन की अवधि को बड़ा भी सकता है पर कारण युक्तियुक्त होना चाहिए।

    लीगल नोटिस स्पीड पोस्ट या रजिस्टर एडी के माध्यम से भेजा जाता है तथा इससे जो रसीद प्राप्त होती है वह रसीद चेक बाउंस का प्रकरण लगाते समय दस्तावेज का काम करती है। चेक देने वाले व्यक्ति का पता ठीक होना चाहिए और उसे उसी पते पर लीगल नोटिस दिया जाना चाहिए।

    मजिस्ट्रेट की कोर्ट का निर्धारण

    जिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत वह बैंक होती है जिस बैंक में चेक को भुनाने के लिए लगाया गया है और चेक बैंक में अनादर हो गया है, उस थाना क्षेत्र में है थाना क्षेत्र के मजिस्ट्रेट के न्यायालय में इस चेक बाउंस के प्रकरण को संस्थित किया जाता है।

    कोर्ट फ़ीस

    चेक बाउंस के प्रकरण में कोर्ट फीस महत्वपूर्ण चरण होता है। चेक बाउंस के प्रकरण में फीस के तीन स्तर दिए गए है। इन तीन स्तरों पर कोर्ट फीस का भुगतान स्टांप के माध्यम से किया जाता है।

    यह तीन स्तर निम्न है-

    ₹100000 राशि तक के चेक के लिए चेक में अंकित राशि की 5% कोर्ट फीस देना होती है।

    ₹100000 से ₹500000 तक के चेक के लिए राशि की 4% कोर्ट फीस देना होती है।

    ₹500000 से ऊपर के चेक के लिए राशि की 3% कोर्ट फीस देना होती है।

    दस्तावेज-

    परिवाद पत्र

    परिवाद पत्र महत्वपूर्ण होता है। चेक बाउंस के प्रकरण में परिवाद पत्र मजिस्ट्रेट की कोर्ट के नाम से तैयार किया जाता है। इस परिवाद पत्र में भुगतान के संबंध में कुल लेनदेन का जो व्यवहार हुआ है उस व्यवहार से संबंधित सभी बिंदुओं पर मजिस्ट्रेट को संज्ञान दिया जाता है तथा इस परिवाद पत्र में परिवादी का शपथ पत्र भी होता है जो शपथ आयुक्त द्वारा रजिस्टर होता है।

    चेक की ओरिजिनल कॉपी

    अनादर स्लीप

    लीगल नोटिस के प्रति

    लीगल नोटिस भेजे जाते समय एक स्लीप प्राप्त होती है जिसे सर्विस स्लीप कहा जाता है,जिसमें लीगल नोटिस भेजे जाने की दिनांक अंकित होती है।वह स्लीप दस्तावेजों में लगानी होती है।

    गवाहों की सूची

    अगर प्रकरण में कोई गवाह है तो गवाहों की सूची भी डाली जाएगी।

    प्रकरण रजिस्टर होना-

    जब सारे दस्तावेज प्रस्तुत कर दिए जाते है तो केस कोर्ट द्वारा रजिस्टर कर दिया जाता है और एक केस नंबर कोर्ट द्वारा अलॉट कर दिया जाता है।

    समन

    प्रकरण के पक्षकारों को कोर्ट द्वारा सम्मन किया जाता है तथा कोर्ट में उपस्थित होने हेतु आदेश किया जाता है।

    पुनः समन

    यदि आरोपी कोर्ट में उपस्थित होकर प्रकरण में अपने लिखित अभिकथन नहीं कर रहा है तो ऐसी परिस्थिति में पुनः समन कोर्ट द्वारा भेजा जाता है।

    वारंट

    विदित रहे कि यह प्रकरण एक आपराधिक प्रकरण होता है जिसे मजिस्ट्रेट के कोर्ट द्वारा सुना जाता है। इस प्रकरण में आरोपी को बुलाने के लिए वारंट भी किए जाते है यदि आरोपी समन के द्वारा कोर्ट में उपस्थित नहीं हो रहा है तो कोर्ट अपने विवेक के अनुसार जमानत या गैर जमानती किसी भी भांति का वारंट आरोपी के नाम संबंधित थाना क्षेत्र को जारी कर सकता है।

    क्रॉस एक्समिनेशन

    आरोपी जब कोर्ट में उपस्थित होता है तो वह निगोशिएबल एक्ट की धारा 145(2) का आवेदन देकर कोर्ट से क्रॉस करने का निवेदन करता है तथा कोर्ट द्वारा आरोपी पक्षकार का क्रॉस करने की अनुमति दी जाती है।

    उपधारणा करना

    इस प्रकरण में कोर्ट अवधारणा करता है कि चेक देने वाला व्यक्ति दोषी ही होगा अर्थात उसने चेक दिया ही है। चेक प्राप्त करने वाला व्यक्ति कहीं ना कहीं सही है। अब यहां पर आरोपी पक्षकार यह सिद्ध कर रहेगा कि उसके द्वारा कोई चेक नहीं दिया गया है यहां सिद्ध का भार आरोपी पर होता है।

    समरी ट्रायल

    यह एक समरी ट्रायल होता है जिसे कोर्ट द्वारा शीघ्र निपटाने का प्रयास किया जाता है।

    समझौता योग्य-

    यह अपराध समझौता योग्य होता है यदि दोनों पक्षकार आपस में समझौता कर कोर्ट से इस प्रकरण को खत्म करना चाहते है तो समझौता कर दिया जाता है तथा अपराध का शमन हो जाता है।

    2018 में संशोधन किया गया है। यह संशोधन धारा 143 ए है जो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की है। इस धारा के अंतर्गत परिवादी पक्षकार एक आवेदन के माध्यम से आरोपी से अपने संपूर्ण धनराशि जो चेक में अंकित की गई है उसका 20% हिस्सा कोर्ट द्वारा दिलवाए जाने के लिए निवेदन कर सकता है और न्यायालय अपने आदेश के माध्यम से आरोपी से ऐसी धनराशि परिवादी को दिलवा सकता है।

    अंतिम बहस

    यदि आरोपी प्रकरण में समझौता नहीं करता है और मुकदमे को आगे चलाना चाहता है ऐसी परिस्थिति में कोर्ट द्वारा आरोप तय कर मामले को अंतिम बहस के लिए रख दिया जाता है तथा दोनों पक्षकारों द्वारा आपस में अंतिम बहस होती।

    निर्णय

    अंत में मामला निर्णय पर आता है तथा कोर्ट इस प्रकरण में दोषसिद्धि होने पर आरोपी को 2 वर्ष तक का सश्रम कारावास दे सकती है।

    जमानती अपराध

    यह एक जमानती अपराध है जिसमें यदि आरोपी की दोषसिद्धि हो जाती है और उसे न्यायालय द्वारा कारावास कर दिया जाता है। ऐसी परिस्थिति में वह ऊपर के न्यायालय में अपील कर जमानत ले सकता है।

    इस अपराध में किसी भी स्तर पर समझौता किया जा सकता है।

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