NI Act में किसी इंस्ट्रूमेंट की पार्टी का अपनी जिम्मेदारी से डिस्चार्ज होना

Shadab Salim

11 April 2025 4:23 AM

  • NI Act में किसी इंस्ट्रूमेंट की पार्टी का अपनी जिम्मेदारी से डिस्चार्ज होना

    कुछ कंडीशन ऐसी हैं जिनमे किसी भी इंस्ट्रूमेंट के पक्षकार अपनी ज़िम्मेदारी से डिस्चार्ज हो जाते हैं फिर उन पर इंस्ट्रूमेंट की जिम्मेदारी नहीं होती है।

    (क) रचयिता एवं प्रतिग्रहीता-जहाँ धारक वचन पत्र के या विनिमय पत्र प्रतिग्रहीता को दायित्व से निर्मुक्त करता है, वहाँ इंस्ट्रूमेंट स्वयं में डिस्चार्ज हो जाता है, क्योंकि इंस्ट्रूमेंट में ये मुख्य ऋणी होते हैं।

    (ख) पृष्ठांकक/पृष्ठांककों को-जहाँ धारक किसी पृष्ठांकक या पृष्ठांककों ने नाम को निर्मुक्त करता है वहाँ ऐसे धारक के अधीन हक व्युत्पन्न करने वाले सब पक्षकारों के प्रति हो जाता है। ऐसी दशा में स्वयं इंस्ट्रूमेंट डिस्चार्ज नहीं होगा।

    पेमेंट द्वारा उन्मोचन का सबसे प्रचलित तरीका पेमेंट होता है। चूंकि एक परक्राम्य इंस्ट्रूमेंट अन्तिम रूप से पेमेंट के लिए होता है, धारक को इंस्ट्रूमेंट की रकम का पेमेंट इंस्ट्रूमेंट के पक्षकारों को डिस्चार्ज करने का प्रभाव रखता है। वचन पत्र चेक या विनिमय पत्र को क्रमशः रचयिता लेखीवाल, प्रतिग्रहीता को पेमेंट इंस्ट्रूमेंट को डिस्चार्ज करता है अर्थात् सभी पक्षकार भी जो इंस्ट्रूमेंट के अधीन दायी होते हैं, उन्हें डिस्चार्ज बनाता है।

    अधिनियम की धारा 82 (ग) उपबन्धित करती है कि वाहक को देय इंस्ट्रूमेंट या तो मूलत: वाहक को देय बनाया गया है या निरंक पृष्ठांकन कर दिया गया है और इसमें देय रकम का उसके वाहक को सम्यक रूप में पेमेंट से इंस्ट्रूमेंट को डिस्चार्ज करता है। इसी प्रकार आदेशित देय इंस्ट्रूमेंट का सम्यक् अनुक्रम में धारक को या सम्यक् अनुक्रम में धारक को किया गया पेमेंट इंस्ट्रूमेंट को डिस्चार्ज करेगा। सम्यक् अनुक्रम में संदाय-विधिक शब्दों में एक विधिमान्य एवं प्रभावित पेमेंट सम्यक् अनुक्रम में पेमेंट होता है। अधिनियम की धारा 10 का विश्लेषण करने से यह स्पष्ट है कि एक सम्यक् अनुक्रम पेमेंट के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होगा।

    "सम्यक् अनुक्रम में संदाय" से इंस्ट्रूमेंट पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति को उस इंस्ट्रूमेंट के प्रकट शब्दों के अनुसार सद्भावपूर्वक बिना उपेक्षा के लिए बिना ऐसी परिस्थितियों में किया गया पेमेंट अभिप्रेत है, जिससे यह विश्वास करने के लिये युक्तियुक्त आधार नहीं उत्पन्न होता कि वह उसमें वर्णित रकम का पेमेंट पाने का हकदार नहीं है।" सम्यक् अनुक्रम में पेमेंट की शर्ते- सम्यक अनुक्रम में पेमेंट विधिक शब्दों में विधिमान्य एवं प्रभावी पेमेंट होता है।

    धारा 10 के उपबन्धों के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि सम्यक् अनुक्रम पेमेंट के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए:-

    पेमेंट किया जाना चाहिए

    प्रकट शब्दों के अनुसार,

    सद्भावना पूर्वक,

    बिना किसी उपेक्षा के,

    कब्जा रखने वाले (धारक) को संदाय,

    ऐसे व्यक्ति को पेमेंट जो पेमेंट प्राप्त करने का हकदार हो।

    प्रकट शब्दों- एक प्रभावी पेमेंट के लिए प्रथम शर्त है कि इसे इंस्ट्रूमेंट के प्रकट शब्दों के अनुसार किया जाना चाहिए। इसके अन्तर्गत अनेक तत्व सम्मिलित है।

    इंस्ट्रूमेंट की प्रकृति अर्थात् वाहक या आदेशित खुला या रेखांकित चेक, यदि रेखांकित है तो सामान्य या विशेष रेखांकन, एकाउन्ट पेयी रेखांकन इत्यादि सबसे महत्वपूर्ण कारक है कि पेमेंट परिपक्वता पर या उसके पश्चात् होनी चाहिए। इस प्रकार जहाँ रेखांकित चेक का पेमेंट बैंक के काउन्टर, आदेशित चेक का पेमेंट वाहक के समान या सारभूत परिवर्तन के साथ इंस्ट्रूमेंट का संदाय, सम्यक् अनुक्रम में पेमेंट नहीं होगा।

    परिपक्वता के पूर्व पेमेंट परिपक्वता के पूर्व पेमेंट एक सम्यक् अनुक्रम पेमेंट नहीं होता है जब तक कि इंस्ट्रूमेंट को रद्द न कर दिया या पेमेंट के तथ्य को इंस्ट्रूमेंट के मुख्य पृष्ठ पर स्पष्ट अभिलिखित न हो। अतः एक विनिमय पत्र का लेखीवाल (प्रतिग्रहीता) इसके पेमेंट परिपक्वता के पूर्व करता है और इंस्ट्रूमेंट को रद्द नहीं करता है और विनिमय पत्र का धारक इसे किसी व्यक्ति को प्रतिफल या बिना प्रतिफल के अन्तरण (पृष्ठांकित) कर देता है, पृष्ठांकन विधिमान्य होगा एवं पृष्ठांकिती प्रतिग्रहीत से पुन: पेमेंट पाने से का हकदार होगा यद्यपि कि उसके द्वारा पूर्व में इंस्ट्रूमेंट का पेमेंट किया जा चुका है।

    बिल का पुनः जारी किया जाना किसी इंस्ट्रूमेंट का उसके परिपक्वता के पूर्व पेमेंट सम्यक् अनुक्रम में पेमेंट नहीं होता है जिससे इंस्ट्रूमेंट ऐसे पेमेंट से डिस्चार्ज नहीं होता है। वचन पत्र के रचयिता या विनिमय पत्र का प्रतिग्रहीता अपने दायित्व से ऐसे पेमेंट से डिस्चार्ज नहीं होता है। एक चेक लिखे जाने के हो तिथि से पेमेंट के लिए परिपक्व होता है अतः ऐसे स्थिति चेक की दशा में उत्पन्न नहीं होता है। एक वचन पत्र का रचयिता या विनिमय पत्र का प्रतिग्रहीता यदि वचनपत्र या विनिमय पत्र को परिपक्वता के पूर्व प्राप्त करता है तो उसे इंस्ट्रूमेंट का क्रेता समझा जाता है और उसे पुनः जारी कर सकता है।

    पुनः जारी करने से आशय इंस्ट्रूमेंट का अन्तरण करने से है। यदि वह ऐसे इंस्ट्रूमेंट का परक्रामण करता है तो यह माना जाता है कि उसने नया वचन पत्र या विनिमय पत्र लिखता है जिसे इंस्ट्रूमेंट का पुनः लिखा जाना कहा जाता है एवं ऐसा इंस्ट्रूमेंट परिपक्वता तक प्रचलन के लिए एक नया जीवन प्राप्त कर लेता है। यह ध्यान में रखना चाहिए कि जहाँ रचयिता या प्रतिग्रहीता इंस्ट्रूमेंट के परिपक्वता के पश्चात् उसका धारक बन जाता है तो इंस्ट्रूमेंट डिस्चार्ज हो जाता है। यदि एक धारक परिपक्वता के पूर्व पेमेंट प्राप्त करता है तो वह उस इंस्ट्रूमेंट को पुनः परक्रामित कर उसे पुनः जारी कर सकता है। यदि इंस्ट्रूमेंट को ऐसे संदायोपरान्त रद्द नहीं किया गया है।

    श्रीनिवास बनाम गाउन्डर के मामले में एक माँग पर देय वचन पत्र का रचयिता ने परिपक्वता के पूर्व पेमेंट कर दिया और वह वचन पत्र को वापस नहीं ले सका और न तो रद्द किया मूल पाने वाले ने उसे पुनः एक सम्यक् अनुक्रम धारक को अन्तरित कर दिया। यह धारित किया गया कि रचयिता पुनः पेमेंट करने के लिए आबद्ध था।

    मलें बनाम कलवरवेल के मामले में यदि प्रतिग्रहीता ने विनिमय पत्र के परिपक्वता के पूर्व पेमेंट कर दिया है, वहाँ धारक विनिमय पत्र को किसी व्यक्ति को पृष्ठांकित कर सकेगा और तब सभी पक्षकार पेमेंट के लिए आवद्ध रहेंगे।

    सद्भावना पूर्वक पेमेंट सम्यक् अनुक्रम में पेमेंट को दूसरी अपेक्षा सद्भाव पूर्वक पेमेंट होता है। वस्तुत: इसके अन्तर्गत विधिमान्य पेमेंट की सभी अपेक्षाएं सम्मिलित होतो हैं अर्थात् इमानदारी से, प्रतिफल सहित सावधानी और सतर्कता के साथ इंस्ट्रूमेंट को प्राप्त करना।

    बिना किसी उपेक्षा इंस्ट्रूमेंट का पेमेंट सद्भाव पूर्वक एवं बिना उपेक्षा के किया जाना चाहिए। इंस्ट्रूमेंट को देखने या व्यक्ति जिसने पेमेंट के लिए प्रस्तुत किया है कि अन्तरण से उसके इंस्ट्रूमेंट के स्वत्व सम्बन्धी कोई सन्देह एक सामान्य आदमी के लिए न हो।

    जहाँ चेक आदाता के खाते में जारी किया गया, परन्तु बैंक ने इसे वाहक को पेमेंट कर दिया और चेक को देखने से यह प्रकट होता था कि इरेजर द्वारा चेक में छेड़-छाड़ करके वाहक को देय बनाया गया था। यह धारित किया गया है कि बैंक वाहक को पेमेंट कर उपेक्षा किया है और बैंक ग्राहक को क्षतिपूर्ति करने के लिए आवद्ध है।

    कब्जाधारी और हकदार व्यक्ति को पेमेंट इस सम्बन्ध में अधिकारिक धारक को पेमेंट करने पर जोर दिया गया है धारा के उपबन्धों के अनुसार किसी भी व्यक्ति जो इंस्ट्रूमेंट का कब्जाधारी अर्थात् धारक को पेमेंट किया जाना चाहिए। पुनः जो व्यक्ति इंस्ट्रूमेंट के अधीन पेमेंट पाने के हकदार हो, उसे पेमेंट किया जाना चाहिए। पेमेंट की परिस्थितियों से ऐसा कोई सन्देह नहीं होना चाहिए कि पेमेंट प्राप्त करने वाला व्यक्ति पेमेंट पाने का हकदार नहीं है।

    पी० एम० दास बनाम सेण्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया के मामले में, यह धारित किया गया है कि जहाँ बैंक के इंस्ट्रूमेंट के प्रकट शब्दों के अनुसार सद्भाव पूर्वक बिना उपेक्षा के सद्भाव पूर्वक पेमेंट करता है और परिस्थितियों से स्पष्ट है कि पेमेंट प्राप्त करने वाला व्यक्ति ऐसा संजय पाने का हकदार नहीं है, में कोई सन्देह नहीं है, पेमेंट सम्यक् अनुक्रम में माना जाएगा। में पेमेंट किसको किया जाना चाहिए अधिनियम की धारा 78 भी यह उपबन्धित करती है कि वचन पत्र विनिमय पत्र या चेक के रचयिता, प्रतिग्रहीता या ऊपरवाल को डिस्चार्ज करने के लिए पेमेंट इंस्ट्रूमेंट के धारक को किया जाना चाहिए।

    धारा 82 (ग) कहती है कि यदि इंस्ट्रूमेंट वाहक या निरंक पृष्ठांकित है वहाँ पेमेंट इसका सही उन्मोचन होगा यदि इसे सम्यक् अनुक्रम में किया गया है।

    पाने वाला या चोर को पेमेंट वाहक को देय इंस्ट्रूमेंट अधिनियम की धाराएँ 10, 78 एवं 82 (ग) का दबाव है कि इंस्ट्रूमेंट के अधीन देय धनराशि का पेमेंट केवल विधिमान्य धारक को ही किया जाए। चूँकि पता करना कठिन है कि कब्जेदार व्यक्ति ने इंस्ट्रूमेंट को परिदान द्वारा अथवा अन्यथा रूप में अर्थात् चोरी या पाने से प्राप्त किया है। धारा 10 के अधीन यह उपबन्धित है कि यदि यह दिखाने के लिए कोई व्यक्ति पेमेंट पाने का हकदार नहीं है तो पेमेंट इंस्ट्रूमेंट के कब्जेदार व्यक्ति को किया जाना चाहिए। इस प्रकार यहाँ तक चोर या पाने वाले व्यक्ति को भी पेमेंट किया जा सकता है यदि विवेकी व्यक्ति को सन्देह उत्तेजित करने के लिए कुछ न हो। परन्तु यहाँ पर यह महत्वपूर्ण है कि किसी चोर या पाने वाले को किसी सन्देह की परिस्थितियों में किया गया पेमेंट सद्भावपूर्ण या सम्यक् अनुक्रम में पेमेंट को नकारने का प्रभाव रखता है।

    तल्ला मल्ला बनाम केशव दास में यह धारित किया गया है कि किसी चोर द्वारा चुराई गई इंस्ट्रूमेंट को उमस्थापित करने में यदि प्रतिग्रहीता द्वारा सद्भाव पूर्वक एवं यह विश्वास रखते हुए कि वह एक सद्भावी धारक है, किया गया पेमेंट विधिमान्य होगा। यह वाहक चेक पर भी प्रयोज्य होगा।

    भटोरिया ट्रेडिंग कं० बनाम इलाहाबाद बैंक में जहाँ चेक किसी कम्पनी को था जिसे कम्पनी का तात्पर्यिंत प्रबन्धक पेमेंट के लिए उपस्थापित किया, और वहाँ सन्देह उत्पन्न करने के लिए कुछ नहीं था, बैंक ने पेमेंट कर दिया, पेमेंट को सम्यक् अनुक्रम में मान्य किया गया एवं भुगतानी बैंक को दायित्व से डिस्चार्ज मान्य किया गया।

    जोश पॉल बनाम जोरा पॉल के बाद में यह धारित किया गया कि पेमेंट इंस्ट्रूमेंट के धारक को न कि किसी हिताधिकारी को किया जाना चाहिए।

    उक्त से यह स्पष्ट है कि वाहक इंस्ट्रूमेंट का पेमेंट एक चोर या पाने वाले को भी किया जा सकता है, बशर्ते कि पेमेंट सद्भावपूर्वक किया जाना चाहिए। परन्तु आदेशित इंस्ट्रूमेंट का पेमेंट आदाता (पाने वाला) या पृष्ठांकिती को किया जाना चाहिए जो उसका धारक/ सम्यक् अनुक्रम धारक है। अतः एक पृष्ठांकिती को यह विश्वास करते हुए कि वह सही पृष्ठांकिती है, को सद्भावनपूर्वक एवं बिना किसी उपेक्षा के किया गया संदाय, विधिमान्य पेमेंट होगा।

    जहाँ पेमेंट किसी ऐसे व्यक्ति को किया गया है जिसका स्वत्व कूटरचित पृष्ठांकन के द्वारा बनाया गया है. यह डिस्चार्ज नहीं करेगा, पेमेंट करने वाला और वह इंस्ट्रूमेंट के सही स्वामी के प्रति आबद्ध बने रहेंगे। यहाँ तक कि जहाँ पृष्ठांकन में कूटरचना नहीं है और इंस्ट्रूमेंट किसी अनाधिकृत व्यक्ति द्वारा कब्जा प्राप्त किया गया है और वह व्यक्ति परिवर्तन द्वारा पेमेंट प्राप्त कर लेता है। पेमेंट करने वाला व्यक्ति डिस्चार्ज नहीं होगा।

    प्रतिग्रहीता को विनिमय पत्र का धारक बनने पर [ धारा 90] - धारा 90 के अनुसार यदि एक विनिमय पत्र जो परक्रामित किया गया है, परिपक्वता के समय या पश्चात् यदि वह प्रतिग्रहीता द्वारा स्वयं अपने अधिकार से धारित है तो उस पर कार्यवाही करने के सब अधिकार निर्वासित हो जाते हैं।

    इस प्रकार एक विनिमय पत्र जब प्रतिग्रहीता के हाथों में परिपक्वता पर या उसके पश्चात् आ जाता है। अर्थात् आदेशित बिल की दशा में पृष्ठांकिती या वाहक को देय की दशा में कब्जाधारी होने पर विनिमय पत्र डिस्चार्ज हो जाता है। इसे "निगोसिएशन बैंक" कहते हैं। ऐसी दशा में ये सभी पक्षकार को इंस्ट्रूमेंट के अधीन आबद्ध हैं, अपनी आबद्धता से उन्मुक्त हो जाते हैं।

    यहाँ पर "निगोसिएशन बैंक", एवं "बिल या इंस्ट्रूमेंट को पुनः जारी करना" दो महत्वपूर्ण सिद्धान्त धारा 90 के प्रभाव से उद्भूत होते हैं। (इन्हें धारा 90 में स्पष्ट किया गया है)।

    जबकि चेक सम्यक् रूप में उपस्थापित नहीं किया गया और लेखीवाल को तदद्वारा नुकसान हुआ [ धारा 84]

    चेक उपस्थापन में विलम-चेक के धारक का यह कर्तव्य है कि वह इसे जारी किए जाने की तिथि से युक्तियुक्त समय के अन्तर्गत उपस्थापित करे। यदि वह ऐसा करने में व्यतिक्रम करता है और जब वह वास्तव में उपस्थापित करता है चेक किसी घटना के घटने पर उदाहरण के लिए, बैंक ही फेल हो जाता है जो बैंक को पेमेंट करने से रोकता है, तब चेक का लेखीवाल धारक के विरुद्ध दायित्व से डिस्चार्ज हो जाता है, परन्तु यह कि जिस समय चेक उपस्थापित किया जाता उस समय उसके खाते में चेक के पेमेंट के लिए पर्याप्त अधिशेष था।

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