क्या आरोपी को Default Bail मिल सकती है जब पहली Extension उसकी गैर-मौजूदगी में दी गई हो लेकिन उसने उसे चुनौती नहीं दी?

Himanshu Mishra

21 May 2025 1:46 PM

  • क्या आरोपी को Default Bail मिल सकती है जब पहली Extension उसकी गैर-मौजूदगी में दी गई हो लेकिन उसने उसे चुनौती नहीं दी?

    सुप्रीम कोर्ट ने क़मर ग़नी उस्मानी बनाम गुजरात राज्य [2023 LiveLaw (SC) 297] के फैसले में Code of Criminal Procedure (CrPC) की धारा 167(2) की व्याख्या करते हुए Default Bail (डिफॉल्ट ज़मानत) से जुड़ा एक महत्वपूर्ण सवाल सुलझाया। इस धारा के तहत, अगर जांच तय समय सीमा में पूरी नहीं होती और Chargesheet (चार्जशीट) दाख़िल नहीं होती, तो आरोपी को डिफॉल्ट ज़मानत का अधिकार मिल जाता है।

    इस मामले में कोर्ट को यह तय करना था कि क्या आरोपी को सिर्फ़ इस आधार पर डिफॉल्ट ज़मानत मिल सकती है कि जांच की अवधि बढ़ाने का पहला आदेश उसकी मौजूदगी के बिना पारित हुआ, जबकि उसने उस आदेश को चुनौती भी नहीं दी और चार्जशीट बढ़ी हुई समयसीमा के भीतर ही दाख़िल कर दी गई।

    CrPC की धारा 167(2) की समझ (Understanding Section 167(2) of CrPC)

    CrPC की धारा 167(2) कहती है कि पुलिस किसी आरोपी को ज़्यादा से ज़्यादा 90 दिन (कुछ मामलों में 60 दिन) तक हिरासत में रख सकती है, अगर जांच पूरी नहीं हुई हो। अगर इस समय सीमा के भीतर चार्जशीट दाख़िल नहीं होती है, तो आरोपी को डिफॉल्ट ज़मानत पाने का अधिकार मिल जाता है, बशर्ते वह इस अधिकार को प्रयोग में लाए यानी समय रहते आवेदन दे।

    यह भी प्रावधान है कि अगर जांच एजेंसी उचित कारण बताए तो Magistrate (मजिस्ट्रेट) इस समय को बढ़ा सकता है। लेकिन यह Extension (विस्तार) कानूनी प्रक्रिया के अनुसार ही दी जा सकती है।

    Extension के समय आरोपी की मौजूदगी का महत्व (The Role of Presence of the Accused During Extension Hearings)

    इससे जुड़े कई मामलों में यह सवाल उठा है कि क्या आरोपी को Extension के समय Court में पेश किया जाना चाहिए। पहले हितेन्द्र विष्णु ठाकुर बनाम महाराष्ट्र राज्य (1994) 4 SCC 602 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि Extension देने से पहले आरोपी को Notice (सूचना) देना ज़रूरी है ताकि वह इसका विरोध कर सके। लेकिन बाद में इस फैसले में बदलाव हुआ।

    संजय दत्त बनाम राज्य (CBI) (1994) 5 SCC 410 में सुप्रीम कोर्ट की Constitution Bench ने कहा कि लिखित Notice जरूरी नहीं है, लेकिन आरोपी को कम से कम Court में उपस्थित होना चाहिए ताकि उसे पता चले कि Extension मांगी जा रही है। यानी आरोपी की मौखिक उपस्थिति ही पर्याप्त मानी जाएगी।

    सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणी (Key Clarification by the Supreme Court in the Present Case)

    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर आरोपी को Extension दिए जाने की जानकारी थी और उसने समय रहते उस आदेश को चुनौती नहीं दी, तो वह बाद में Default Bail का दावा नहीं कर सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर पहली Extension बिना आरोपी की उपस्थिति के दी गई थी, लेकिन उसे अगले दिन इसकी जानकारी मिल गई और उसने उस पर आपत्ति नहीं की, तो उसे Default Bail नहीं दी जा सकती।

    अगर दूसरी Extension आरोपी की मौजूदगी में दी गई और चार्जशीट उस बढ़ी हुई समयसीमा के भीतर दाख़िल कर दी गई, तो फिर Default Bail का कोई अधिकार नहीं बनता। कोर्ट ने माना कि अगर आरोपी Extension की जानकारी होते हुए भी चुप रहा और कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की, तो वह उस आदेश के खिलाफ बाद में कोई हक नहीं जता सकता।

    जिगर आदित्य मामले का उल्लेख (Reference to the Case of Jigar Adatiya)

    अपीलकर्ता ने जिगर उर्फ़ जिमी प्रविणचंद्र आदित्य बनाम गुजरात राज्य (2022 SCC OnLine SC 1290) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर Extension आरोपी की गैर-मौजूदगी में दी गई हो, तो वह अवैध मानी जाएगी और आरोपी को Default Bail मिलनी चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि जिगर के मामले में परिस्थिति अलग थी क्योंकि वहां आरोपी ने समय रहते आदेश को चुनौती दी थी, जबकि क़मर ग़नी उस्मानी वाले मामले में ऐसा नहीं हुआ।

    अन्य महत्वपूर्ण फैसलों की स्थिति (Applicability of the Rulings in Other Precedents)

    आरोपी ने सैयद मोहम्मद अहमद काज़मी बनाम राज्य (2012) 12 SCC 1 का भी हवाला दिया, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह मामला अलग था क्योंकि वहां Magistrate की अधिकारिता को चुनौती दी गई थी और Extension पिछली तारीख से दी गई थी, जो कि CrPC के अनुसार मान्य नहीं थी।

    इसी तरह रामबीर शौकीन बनाम राज्य (2018) 4 SCC 405 में अदालत ने यह कहा था कि जब Extension का आवेदन लंबित हो और उसी बीच आरोपी Default Bail मांगे, तो पहले Extension के आवेदन को तय किया जाना चाहिए। लेकिन क़मर ग़नी उस्मानी केस में Extension पहले ही दी जा चुकी थी और उस पर कोई आपत्ति नहीं की गई थी।

    स्वीकृति और मौन की कानूनी मान्यता (Principle of Waiver and Acquiescence)

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दोहराया कि अगर कोई व्यक्ति समय रहते किसी आदेश का विरोध नहीं करता और खामोश रहता है, तो उसे यह माना जाता है कि उसने आदेश को स्वीकार कर लिया। इसी सिद्धांत के आधार पर, जब आरोपी ने पहली Extension का विरोध नहीं किया और दूसरी Extension उसकी उपस्थिति में दी गई, तो अब वह पहली Extension को गैरकानूनी बताकर Default Bail नहीं मांग सकता।

    Default Bail के अधिकार को वापस पाने की संभावना नहीं (No Retrospective Default Bail Rights)

    कोर्ट ने साफ़ कहा कि Default Bail का अधिकार एक निश्चित समयसीमा में प्रयोग किया जाना चाहिए। अगर उस अवधि में Extension दी जा चुकी है और उस पर कोई आपत्ति नहीं की गई, तो बाद में यह अधिकार स्वतः समाप्त हो जाता है। जब चार्जशीट भी उसी Extension की समयसीमा में दाख़िल हो जाती है, तो Default Bail का दावा टिक नहीं सकता।

    इस दृष्टिकोण से यह सुनिश्चित होता है कि आरोपी कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग न करे और जांच में देरी के नाम पर बेवजह ज़मानत की मांग न करे।

    क़मर ग़नी उस्मानी बनाम गुजरात राज्य का यह फैसला Default Bail को लेकर न्यायसंगत संतुलन प्रस्तुत करता है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह अधिकार केवल एक सुरक्षा उपाय है, कोई कानूनी रास्ता नहीं जिससे प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जा सके। आरोपी की उपस्थिति आवश्यक है, लेकिन यदि उसे Extension की जानकारी हो और फिर भी वह चुप रहे, तो उसे बाद में लाभ नहीं मिल सकता।

    यह फैसला संजय दत्त, हितेन्द्र ठाकुर, जिगर आदित्य जैसे मामलों की व्याख्या के साथ एक स्पष्ट और संतुलित दिशा देता है, जिसमें आरोपी के अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया दोनों की रक्षा होती है।

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