क्या Negotiable Instruments Act में हुई दोषसिद्धि को Compounding of Offences से खत्म किया जा सकता है?
Himanshu Mishra
4 Sept 2025 9:10 PM IST

भारत में चेक बाउंस (Cheque Bounce) से जुड़े मामले सबसे अधिक संख्या में अदालतों में लंबित हैं। भारतीय दंड न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) के सामने यह एक गंभीर चुनौती है।
Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 138 (Section 138) के अंतर्गत यह अपराध बनाया गया ताकि चेक जैसे वित्तीय साधनों (Financial Instruments) पर लोगों का विश्वास बना रहे। लेकिन समय के साथ अदालतों ने यह महसूस किया कि ऐसे मामलों में असली मकसद पीड़ित पक्ष को राशि की भरपाई (Compensation) दिलाना है, न कि केवल आरोपी को जेल भेजना।
सुप्रीम कोर्ट ने M/s New Win Export & Anr. v. A. Subramaniam (2024 INSC 535) में इसी मूलभूत मुद्दे (Fundamental Issue) पर विचार किया और यह स्पष्ट किया कि यदि पक्षकार आपस में समझौता कर लें, तो अदालत को Compounding of Offences (समझौते द्वारा अपराध का निपटारा) को प्राथमिकता देनी चाहिए।
Negotiable Instruments Act और Compounding of Offences (समझौते द्वारा अपराध का निपटारा)
इस मामले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 147 (Section 147) है। इस धारा में कहा गया है कि इस कानून के अंतर्गत आने वाले सभी अपराध Compoundable (समझौते योग्य) हैं। इसका मतलब यह है कि यदि दोनों पक्ष आपस में समझौता कर लेते हैं, तो अदालत अपराध को समाप्त मान सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस अपराध मूल रूप से एक Regulatory Offence है, यानी ऐसा अपराध जिसे केवल इसीलिए अपराध बनाया गया ताकि व्यापार और वित्तीय लेन-देन में विश्वास बना रहे। इसका मकसद आरोपी को कठोर दंड देना नहीं, बल्कि पीड़ित को उसका पैसा दिलाना है।
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) की धारा 320 (Section 320 CrPC) की भूमिका
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि CrPC की धारा 320(5) (Section 320(5)) के अनुसार, यदि Conviction (दोषसिद्धि) के बाद Compounding (समझौता) किया जाना हो, तो यह केवल अपीलीय अदालत (Appellate Court) की अनुमति से ही संभव है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि Conviction के बाद किया गया समझौता वास्तविक (Genuine) हो और धोखाधड़ी वाला न हो।
इस मामले में शिकायतकर्ता (Complainant) ने हलफनामा (Affidavit) दाखिल कर यह स्वीकार किया कि उसे पूरी राशि मिल गई है और उसे Conviction हटाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस हलफनामे की पुष्टि कर Compounding को मान्यता दी और दोषसिद्धि को खत्म कर दिया।
न्यायिक प्रणाली पर बोझ और सार्वजनिक नीति (Judicial Burden and Public Policy)
सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में यह भी माना कि चेक बाउंस मामलों की अत्यधिक संख्या भारतीय न्यायिक प्रणाली (Judicial System) पर भारी बोझ है। यदि इन मामलों में Settlement (समझौता) को प्रोत्साहन दिया जाए, तो अदालतों का बोझ घटेगा और न्याय जल्दी मिलेगा।
अदालत ने स्पष्ट किया कि इन मामलों में Compensatory Aspect (भरपाई का पहलू) को Punitive Aspect (दंडात्मक पहलू) से अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। यानी, यदि पीड़ित पक्ष को उसकी राशि मिल गई है तो आरोपी को जेल भेजने की आवश्यकता नहीं रह जाती।
महत्वपूर्ण न्यायिक मिसालें (Important Judicial Precedents)
सुप्रीम कोर्ट ने अपने तर्क को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया।
Damodar S. Prabhu v. Sayed Babalal H. (2010) – इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह सिद्धांत दिया कि चेक बाउंस मामलों में Compounding (समझौता) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इसके लिए समय-सीमा के अनुसार कुछ लागत (Costs) भी तय की गई।
Meters and Instruments Pvt. Ltd. v. Kanchan Mehta (2018) – इस फैसले में अदालत ने कहा कि चेक बाउंस मामलों को Quasi-Civil Nature का मानकर व्यावहारिक और लचीला (Flexible) दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
Gimpex Pvt. Ltd. v. Manoj Goel (2022) – इसमें अदालत ने पुनः Compensation (भरपाई) को दंड से अधिक महत्व दिया और आपराधिक कार्यवाही (Criminal Proceedings) को समाप्त कर दिया।
Raj Reddy Kallem v. State of Haryana (2024) – इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने Article 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग कर Conviction को समाप्त कर दिया, भले ही Complainant ने समझौते की सहमति नहीं दी थी, क्योंकि उसे पर्याप्त भरपाई मिल चुकी थी।
मौलिक मुद्दे (Fundamental Issues)
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मूलभूत बिंदुओं पर जोर दिया:
1. चेक बाउंस अपराध का उद्देश्य केवल Punishment (दंड) नहीं, बल्कि वित्तीय लेन-देन पर विश्वास बनाए रखना है।
2. Conviction के बाद Compounding (समझौता) केवल अपीलीय अदालत की अनुमति से ही संभव है।
3. बढ़ते मामलों की संख्या को देखते हुए अदालतों को Settlement (समझौते) को बढ़ावा देना चाहिए।
4. Compensation (भरपाई) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और Punishment (दंड) को द्वितीयक महत्व दिया जाना चाहिए।
अनुच्छेद 142 (Article 142) का महत्व
हालाँकि इस मामले में अनुच्छेद 142 सीधे लागू नहीं हुआ, लेकिन अदालत ने यह स्पष्ट किया कि पूर्व में कई मामलों में उसने इस शक्ति का उपयोग कर Complete Justice (पूर्ण न्याय) सुनिश्चित किया है। इसका मतलब यह है कि यदि Complainant (शिकायतकर्ता) समझौते से इंकार करे, तब भी अदालत के पास अधिकार है कि यदि भरपाई हो चुकी है तो Conviction को समाप्त कर सके।
सुप्रीम कोर्ट का M/s New Win Export & Anr. v. A. Subramaniam में निर्णय यह दर्शाता है कि चेक बाउंस अपराधों के संदर्भ में कानून का मूल उद्देश्य Compensation (भरपाई) है, न कि केवल Punishment (दंड)। इस दृष्टिकोण से अदालतों का बोझ कम होगा और शिकायतकर्ता को वास्तविक न्याय भी मिलेगा।
यह निर्णय उस विकसित होती न्यायशास्त्र (Jurisprudence) की ओर संकेत करता है जहाँ भविष्य में चेक बाउंस विवादों को आपराधिक अपराध (Criminal Offence) के बजाय अधिकतर सिविल विवाद (Civil Dispute) के रूप में देखा जाएगा।

