NI Act में किसी भी इंस्ट्रूमेंट में किसके द्वारा पेमेंट होता है?

Shadab Salim

10 April 2025 3:52 AM

  • NI Act में किसी भी इंस्ट्रूमेंट में किसके द्वारा पेमेंट होता है?

    किसी लिखत का विधिमान्य एवं लिखत के उन्मोचन के लिए पेमेंट रचयिता या प्रतिग्रहीता या उसकी ओर से किया जाना चाहिए। रचयिता या प्रतिग्रहीता अपनी आबद्धता से उन्मोचित नहीं होगा यदि पेमेंट लेखीवाल या किसी पृष्ठांकक या किसी अजनबी का अपने खाते में किए गए पेमेंट से किया जाता है। यदि कोई अजनबी लिखत के अधीन रकम का पेमेंट धारक को करता है तो उसे लिखत का क्रेता कहा जाएगा, परन्तु एक अजनबी यदि लिखत के किसी पक्षकार की ओर से पेमेंट करता है तो ऐसे पेमेंट का वही प्रभाव होगा जैसा कि उसे पक्षकार के द्वारा पेमेंट के लिए अधिकृत किया गया हो।

    यदि लिखत के अधीन देय रकम का पेमेंट लेखीवाल या पृष्ठांकक के द्वारा किया जाता है, लिखत उन्मोचित नहीं होगा और उसका पुनः परक्रामण किया जा सकेगा। एक सौकर्य लिखत में भी सौकर्य प्राप्त व्यक्ति के द्वारा किए गए पेमेंट से सौफर्य लिखत उन्मोचित हो जाता है।

    इसी प्रकार धारा 113 के अनुसार आदरणार्थ पेमेंट की दशा में भी लिखत का उन्मोचन हो जाता है। इस प्रकार निम्न व्यक्तियों के द्वारा पेमेंट लिखत को उन्मोचित बनाने का प्रभाव रखता है

    वचन पत्र का रचयिता एवं विनियम पत्र का प्रतिग्रहीता, या

    किसी अन्य व्यक्ति जो रचयिता या प्रतिग्रहोता की ओर से पेमेंट करता है, या

    रचयिता या प्रतिग्रहीता का अभिकर्ता या अन्य अधिकृत व्यक्ति, या

    सोकर्य विनियम पत्र में सौर्य प्राप्त व्यक्ति,

    आदरणार्थ पेमेंट की दशा में उक्त के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति द्वारा पेमेंट अजनवी द्वारा पेमेंट माना जाएगा एवं लिखत उन्मोचित नहीं होगा।

    इस अधिनियम की धारा धारा 78 एवं 82 दोनों लिखत के अधीन पक्षकारों की आबद्धता के उन्मोचन और एतद्वारा लिखत के उन्मोचन से है। परन्तु इन दोनों धाराओं में निम्नलिखित अन्तर है:-

    धारा 78 वचन पत्र के रचयिता एवं विनिमय पत्र के प्रतिग्रहीता के उन्मोचन से सम्बन्धित है। परन्तु धारा 82 अधिक व्यापक है और यह लिखत के रचयिता, प्रतिग्रहीता एवं पृष्ठांकक के उन्मोचन से सम्बन्धित है।

    धारा 78 का सम्बन्ध वचन पत्र एवं विनियम से है, जबकि धारा 82 का सम्बन्ध वचन पत्र, विनिमय पत्र एवं चेक सभी लिखतों से है।

    धारा 78 का विषय रचयिता एवं प्रतिग्रहोता के दायित्व के उन्मोचन से है, परन्तु धारा 82 का विषय लिखत के कुछ पक्षकारों के उन्मोचन एवं लिखत के उन्मोचन दोनों से सम्बन्धित है।

    धारा 78 के अधीन पक्षकारों का उन्मोचन केवल पेमेंट द्वारा, जबकि धारा 82 के अधीन पक्षकारों एवं लिखत का उन्मोचन, रद्दकरण निर्मुक्तिकरण एवं पेमेंट से भी हो सकता है। चेक के अधीन लेखीवाल की आबद्धता का उन्मोचन चेक के अधीन लेखीवाल की प्रमुख आबद्धता होती है एवं बैंक केवल पेमेंट करने का एक माध्यम होता है जिसके द्वारा पेमेंट किया जाता है।

    जब कोई चेक का उपस्थापन बैंक के समक्ष किया जाता है जिसे वह संदत्त कर देता है, लेखीवाल की आवद्धता चेक के अधीन समाप्त हो जाती है एवं चेक का उन्मोचन हो जाता है। यदि बैंक चेक को बिना पेमेंट किए वापस कर देता है तो इसे चेक का अनादर कहते हैं धारा 138 अब इसे इसके अन्तर्गत शर्तों के अधीन एक अपराध कारित होती है जिसके लिए लेखीवाल दण्डित किया जा सकता है। चेक का धारक बैंक के विरुद्ध कोई उपचार नहीं रखता है चाहे चेक का अनादर समुचित तरीके या गैर-समुचित तरीके से किया गया है। परन्तु अब 1986 के पश्चात् धारक बैंक के विरुद्ध भी सेवाओं में कमी के लिए जो उसके द्वारा दी जाती है, उभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अधीन वाद ला सकता है।

    गैर-समुचित तरीके से पेमेंट को मना करने की दशा में निम्नलिखित उपचार उपलब्ध हैं

    लेखीवाल बैंक के विरुद्ध प्रतिकर के लिए वाद ला सकता है जो ऐसे पेमेंट न करने से उसे नुकसान एवं क्षति हुई है।

    धारक अब बैंक के विरुद्ध सेवाओं में कमी के लिए वाद ला सकता है।

    धारक धारा 138 के अधीन अपराध कारित करने के लिए लेखीवाल पर वाद ला सकता है।

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