'लव जिहाद' शब्द का असल मतलब क्या है?: फिल्म 'हाल' पर आपत्तियों की सुनवाई के दौरान केरल हाईकोर्ट का सवाल
Praveen Mishra
4 Nov 2025 5:13 PM IST

सोमवार (3 अक्टूबर) को शेन निगम अभिनीत फिल्म 'हाल' पर दर्ज आपत्तियों की सुनवाई के दौरान केरल हाईकोर्ट ने यह सवाल उठाया कि “लव जिहाद” शब्द का वास्तव में अर्थ क्या है?
जस्टिस वी.जी. अरुण ने मौखिक रूप से पूछा, “लव जिहाद' शब्द का असल मतलब क्या है? जब यह एक विशेष धर्म से जुड़ा होता है, तो इसे 'जिहाद' क्यों कहा जाता है?”
यह शब्द केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा दायर काउंटर एफिडेविट में इस्तेमाल किया गया था। इसमें कहा गया था कि रीवाइजिंग कमेटी, जिसमें दो विषय विशेषज्ञ शामिल थे, ने यह पाया कि फिल्म में “अंतरधार्मिक संबंधों को गलत रूप में प्रस्तुत किया गया है — जिसे आम तौर पर 'लव जिहाद' कहा जाता है — और हिंदू व ईसाई नेताओं की वैध चेतावनियों को बेबुनियाद या असहिष्णु बताया गया है।”
इसी तरह के आरोप कैथोलिक कांग्रेस द्वारा दाखिल आपत्ति पत्र में भी दर्ज हैं, जिसमें कहा गया —
“फिल्म की कहानी और उसका विषय 'लव जिहाद' की अवधारणा को एक स्वीकार्य और प्रोत्साहित करने योग्य प्रथा के रूप में पेश करता है और थमरास्सेरी के बिशप को ऐसे अनुचित मामलों का समर्थक दिखाता है।”
सुनवाई के दौरान, कैथोलिक कांग्रेस (अतिरिक्त पाँचवें प्रतिवादी) की ओर से पेश वकील ने फिल्म के कुछ दृश्यों पर आपत्तियों की सूची का हवाला दिया, जिन्हें CBFC ने भी नोट किया था।
हालाँकि, अदालत ने यह राय दी कि उसे केवल CBFC द्वारा सुझाए गए कट्स और संशोधनों तक ही सीमित रहना चाहिए। अदालत ने कहा कि यदि फिल्म रिलीज़ होने के बाद किसी को आपत्ति होती है, तो वह केंद्रीय सरकार के समक्ष शिकायत दर्ज कर सकता है, जो सिनेमेटोग्राफ अधिनियम की धारा 6 के तहत अपने संशोधन अधिकारों (revisionary powers) का प्रयोग कर सकती है।
कुछ समय तक सुनवाई के बाद, अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए इसे बुधवार (5 नवंबर) तक के लिए स्थगित कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
शेन निगम अभिनीत फिल्म 'हाल' के निर्माता और निर्देशक ने CBFC के उस निर्णय को केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें फिल्म को 'A' सर्टिफिकेट (एडल्ट रेटिंग) दिया गया था और कुछ दृश्यों को हटाने का सुझाव दिया गया था।
इन दृश्यों में शामिल थे —
• बीफ़ बिरयानी खाने का दृश्य,
• बुर्का पहने नायिका का डांस सीन, आदि।
हाल ही में अदालत ने कैथोलिक कांग्रेस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एक पदाधिकारी को इस याचिका में पक्षकार बनने की अनुमति दी थी।
कैथोलिक कांग्रेस का कहना था कि फिल्म ईसाई समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाती है, क्योंकि इसमें थमरास्सेरी के बिशप को इस रूप में दिखाया गया है कि वे अंतरधार्मिक विवाहों को प्रोत्साहित करते हैं।
वहीं RSS पदाधिकारी का कहना था कि फिल्म में संगठन को एक “हिंसक, गुंडा और असामाजिक संगठन” के रूप में दिखाया गया है।
पहले, याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया था कि उन्होंने भारतीय सिनेमेटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5(सी) के तहत सांविधिक अपील दायर की है, लेकिन रजिस्ट्री ने बताया कि इस तरह की अपील के लिए कोई नामकरण या प्रक्रिया निर्धारित नहीं है।
इसके बाद अदालत ने रजिस्ट्रार जनरल से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी थी।
रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद अदालत ने कहा कि जब तक कोई विशेष नामकरण अधिसूचित नहीं होता, तब तक मामले की सुनवाई रिट याचिका के रूप में की जाएगी। इसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई करने की इच्छा जताई।
फिल्म की कहानी (As per Petitioners' Counsel)
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि फिल्म की कहानी एक मुस्लिम लड़के और एक ईसाई लड़की की प्रेम कहानी पर आधारित है।
दोनों परिवार उनके रिश्ते का विरोध करते हैं, परंतु लड़के का पिता इस शर्त पर विवाह के लिए तैयार होता है कि लड़की इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले।
लेकिन नायक (लड़का) इस शर्त को ठुकरा देता है।
इसके बाद लड़की खुद धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो जाती है, लेकिन परिवर्तन समारोह के दौरान वह अपना मन बदल लेती है, और इसी बीच पुलिस हस्तक्षेप करती है, जहाँ 'लव जिहाद' जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
फिल्म का अंत इस संदेश के साथ होता है कि दोनों परिवार यह समझ जाते हैं कि किसी को दूसरे के धर्म से लड़ने की ज़रूरत नहीं है, और दोनों अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए साथ रह सकते हैं।

