BNSS की धारा 223 | शिकायत के आधार पर मजिस्ट्रेट के आरोप तय करने से पहले अभियुक्त को सुनवाई का मौका देना अनिवार्य: केरल हाईकोर्ट
Amir Ahmad
29 July 2025 4:19 PM IST

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी शिकायत के आधार पर किसी अपराध पर विचार (Cognizance) लिया जाना है तो मजिस्ट्रेट को पहले अभियुक्त को सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है। यह प्रावधान भारत के नए दंड प्रक्रिया कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 223 की पहली व्याख्या में शामिल है।
जस्टिस बदरुद्दीन ने अपने फैसले में कहा,
“धारा 223(1) का महत्वपूर्ण पहलू इसका पहला प्रावधान है, जो स्पष्ट रूप से यह अनिवार्य करता है कि मजिस्ट्रेट तब तक अपराध पर संज्ञान नहीं ले सकते, जब तक अभियुक्त को पहले सुनवाई का अवसर न दिया जाए। यह आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के प्रावधानों से एक बड़ा बदलाव है, जिसमें ऐसी पूर्व-संज्ञान सुनवाई का प्रावधान नहीं था।”
इस मामले में याचिकाकर्ता उन व्यक्तियों में शामिल हैं, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (VACB) द्वारा आपराधिक कार्रवाई शुरू की गई।
आरोप है कि पहले याचिकाकर्ता ने अपने 14 वर्षों की सरकारी सेवा के दौरान अपनी ज्ञात आय से लगभग 1.5 करोड़ (113.45% अतिरिक्त) की संपत्ति अर्जित की।
इस पर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(e), 13(2) और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 की धाराओं 3 और 4 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
याचिका में यह दलील दी गई कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर शिकायत पर मजिस्ट्रेट ने बिना धारा 223 के तहत नोटिस दिए संज्ञान ले लिया। साथ ही यह भी कहा गया कि BNSS की धारा 218 के तहत आवश्यक अनुमति भी नहीं ली गई थी।
कोर्ट ने BNSS की धारा 223 की तुलना CrPC के समकक्ष प्रावधानों से करते हुए कहा,
“BNSS की धारा 223(1) का मुख्य नवाचार यह है कि मजिस्ट्रेट को आरोप तय करने से पहले अभियुक्त को सुनवाई का अवसर देना होगा… यदि शिकायत किसी लोक सेवक द्वारा अपने आधिकारिक कर्तव्यों के अंतर्गत या किसी न्यायालय द्वारा की गई तो शिकायतकर्ता और गवाहों की पूर्व-परीक्षा की आवश्यकता नहीं होगी। इसी तरह यदि कोई मामला धारा 212 के तहत स्थानांतरित किया गया हो तो नए मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता और गवाहों की पुनः परीक्षा नहीं करनी होगी यदि वे पहले से जांचे जा चुके हों।”
कोर्ट ने Kushal Kumar Agarwal v. Directorate of Enforcement मामले का हवाला देते हुए कहा कि BNSS के तहत जो प्रक्रिया-संबंधी सुरक्षा है, वह प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर मनी लॉन्ड्रिंग मामलों पर भी लागू होती है।
कोर्ट ने Tarsem Lal v. Directorate of Enforcement, Jalandhar Zonal Office का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि PMLA के तहत दायर शिकायतों पर भी CrPC या BNSS की प्रक्रिया लागू होती है।
अंततः केरल हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए मामला पुनः पूर्व-संज्ञान चरण में भेज दिया और विशेष अदालत को निर्देश दिया कि वह अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दे तथा यह भी जांच करे कि आरोप तय करने से पहले अनुमति की आवश्यकता है या नहीं।
टाइटल: Saji John and Anr. v. State of Kerala and Anr.

